बढ़ता प्रदूषण समय पर पहल की ज़रूरत

आज देश के समक्ष प्रदूषण की समस्या बहुत गम्भीर बनी हुई है। विगत दो दशकों से इस संबंध में लापरवाही और अनदेखी की जाती रही है। प्रदूषण के मनुष्य एवं वातावरण पर नुकसान के संबंध में अधिकतर लोग एवं सरकारें सचेत नहीं थीं परन्तु जैसे-जैसे यह समस्या गम्भीर होती गई, जिस प्रकार इसने मानव शरीर को खोखला करना शुरू कर दिया, जिस प्रकार पानी में भी विष घुलने लगा, विषाक्त हवाओं से फेफड़ों, आंखों आदि की बीमारियां बढ़ने लगीं तो इसके प्रति चेतना बढ़ने लगी, परन्तु इसके बावजूद कोई बड़े एवं प्रभावशाली पग नहीं उठाये गये। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एवं राज्यों ने अपने-अपने आधार पर यत्न अवश्य किये परन्तु उनमें बड़ी सफलता इस कारण उपलब्ध होते दिखाई न दी, क्योंकि प्रदूषण निरन्तर बढ़ता ही गया।
यह समस्या गम्भीर से गम्भीर होती रही। आज अधिकतर बीमारियों की जड़ सभी प्रकार के प्रदूषण को माना जा रहा है। जो हम खाते हैं, पीते हैं, सांस लेते हैं, उसमें बड़ी सीमा तक गंदलापन होता है। मनुष्य के अपने व्यवसायों जैसे कि उद्योग, कृषि एवं अन्य कारोबार चलाने के समय अनदेखी बरतने एवं मिलावटखोरी ने इस समस्या में निरन्तर वृद्धि ही की है। फैक्टरियों से निरन्तर उठता विषाक्त धुआं, वाहनों से निकलता घातक धुआं, फसलों के अवशेष जलाये जाने के कारण दूषित होती हवा एवं अनेक अन्य कारणों के दृष्टिगत पानी के भी दूषित होते जाने ने देश को एक प्रकार से नरक  कुंड में बदल दिया है। समाज एवं सरकारों के अब तक किये गये यत्न सफल क्यों नहीं हुये, इस संबंध में भी गम्भीरता से सोचने की आवश्यकता है। हम इसे समाज के भीतर समूचे ज़ाब्ते के खत्म होने की निशानी मानते हैं। जिन देशों ने प्रत्येक दृष्टिकोण से ऐसा ज़ाब्ता बना लिया है, वे अपने स्वास्थ्य मिशन में काफी सीमा तक सफल भी हो गये हैं। जो देश यह ज़ाब्ता नहीं बना सके, उनके लोग ऐसा संताप भोगने के लिए विवश हो चुके हैं। त्यौहारों के दिनों में खास तौर पर इस समस्या को लेकर बातचीत होती है। इन दिनों में व्यापक स्तर पर अनेक प्रकार के रासायनिक तत्वों वाले पटाखे तैयार करके चलाये जाते हैं, जो पहले ही दरपेश समस्या में और भी वृद्धि कर देते हैं। वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संबंध में कड़ी टिप्पणियां की थीं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने भी निरन्तर इस संबंध में चेतावनियां दी हैं। हर बार त्यौहारों के अवसर पर पटाखों से दूषित होते वातावरण की बात होती है। इस बार हरित प्राधिकरण की ओर से अधिक प्रदूषित शहरों में पटाखों पर पाबन्दी लगाने के भी आदेश दिये गये हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इस श्रेणी में देश के 22 राज्यों को शामिल किया है। जहां प्रदूषण की हालत बहुत बुरी है, वहां पटाखे चलाने की पूरी पाबन्दी लागू की गई है।
पंजाब में चाहे लुधियाना, अमृतसर, जालन्धर एवं खन्ना में पटाखों को बेचने एवं चलाने पर पाबन्दी लगाने की घोषणा की गई है, परन्तु पंजाब सरकार ने दीवाली वाले दिन प्रदेश में रात 8 से 10 बजे के बीच दो घंटे के लिए प्रदूषण रहित पटाखे चलाने की स्वीकृति दी है। अधिकतर राज्यों ने परम्परागत पटाखे न चलाने के निर्देश दिये हैं। हम समझते हैं कि इस समस्या के संबंध में हरित प्राधिकरण की ओर से भी बढ़िया एवं ठोस योजनाबंदी नहीं की जा सकी। सरकारें एवं प्राधिकरण प्राय: त्यौहारों के  अवसर पर ऐसी पाबन्दियों की घोषणा करते हैं जबकि पहले से ही इस संबंध में योजनाबंदी की जानी चाहिए। देश में पटाखों का लगभग एक हज़ार करोड़ रुपये का व्यापार होता है। इन्हें बनाने के संबंध में पहले से ही निर्देश दिया जाना ज़रूरी है। जब ये बन कर बाज़ारों में आने शुरू होते हैं तो व्यापारियों एवं लोगों का करोड़ों रुपया इनके बनाने पर खर्च हो जाता है। उस समय सरकारी निर्देश बड़ी ज्यादती प्रतीत होने लगते हैं। 
इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ देखा जा रहा है, जिससे सम्बद्ध वर्गों का निराश एवं नाराज़ होना स्वाभाविक है। आगामी समय में सभी प्रकार के प्रदूषण के संबंध में अग्रिम तौर पर पेशबन्दियां किया जाना ज़रूरी है, क्योंकि कोरोना महामारी ने पहले ही हालात खराब कर रखे हैं। प्रदूषण के बढ़ने से इस बीमारी के अधिक प्रसार का  ़खतरा बढ़ जाता है। नि:सन्देह इस गम्भीर समस्या के लिए प्रत्येक स्तर पर कड़ी योजनाबंदी की आवश्यकता होगी ताकि मनुष्य जीते जी कम से कम सांस तो स्वच्छ हवा में लेने के समर्थ हो सके। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द