पंजाब का रणनीतिक महत्त्व समझे केन्द्र सरकार

किसान आन्दोलन को लेकर भाजपा की श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने पंजाब के प्रति जो रुख अपनाया हुआ है, उसके कारण देश-विदेश में बसते समूह पंजाबियों में गंभीर चिन्ता तथा रोष पाया जा रहा है। पंजाबियों को इस संबंध में बड़ी आपत्ति यह है कि केन्द्र सरकार ने कृषि संबंधी दो कानून और कृषि वस्तुओं के भंडारण संबंधी एक कानून किसानों के किसी भी स्तर पर विश्वास में लिए बगैर ही संसद से पारित करवा कर लागू कर दिये, जो कि कृषि वस्तुओं के व्यापार तथा कृषि उत्पादन में कार्पोरेटों के प्रवेश के लिए रास्ता खोलते हैं और इससे भी आगे आपत्ति वाली बात यह भी है कि निजी मंडी बना कर व्यापारी राज्य सरकार को किसी भी तरह का कर दिए बगैर ही कृषि उत्पादन खरीद सकते हैं और इससे पंजाब, जिसे जी.एस.टी. कर प्रणाली लागू होने से पहले ही राजस्व के पक्ष से बड़ा घाटा पड़ रहा है, उसकी वार्षिक 3600 करोड़ की और आय कम हो जाएगी, जो कि उसे गेहूं एवं धान के मंडीकरण से मंडी फीस तथा सैस के रूप में प्राप्त होती है।
 पंजाब के किसान संगठनों ने लगभग पिछले डेढ़ महाने से इन नये कृषि कानूनों के खिलाफ व्यापक आन्दोलन आरंभ किया हुआ है। इसके बावजूद लम्बे समय तक केन्द्र सरकार ने किसानों को बुला कर गंभीरता से कोई बातचीत नहीं की और न ही मसले का समाधान निकालने के लिए किसी भी तरह की इच्छा शक्ति का प्रगटावा किया। हां, इस समय के दौरान एक बार 14 अक्तूबर को दिल्ली में किसान प्रतिनिधियों को बुलाया अवश्य  गया था परन्तु बातचीत कृषि मंत्री द्वारा नहीं की गई बल्कि कृषि सचिव ने ही किसानों के साथ बातचीत की थी, जिससे किसानों के प्रतिनिधि संतुष्ट नहीं हुए थे और यह बातचीत अधर में ही टूट गई थी। इसके बाद फिर से केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के साथ कोई सम्पर्क नहीं किया गया और इस दौरान यह समाचार भी आया कि केन्द्र सरकार ने पंजाब का एक हज़ार करोड़ का ग्रामीण विकास फंड रोक लिया है और राज्य का जी.एस.टी. कर में से बनता 10 हज़ार करोड़ का बकाया भी अदा नहीं किया। बात यहीं पर ही नहीं रुकी, गत लगभग एक सप्ताह से किसानों द्वारा रेलवे पटरियों से अपने धरने समाप्त कर दिए जाने के बावजूद राज्य में मालगाड़ियों की आवाजाही शुरू नहीं की गई, जबकि पंजाब सरकार तथा किसानों द्वारा भी गाड़ियां चलाने के लिए बार-बार कहा गया था, ताकि पंजाब को कोयले, खादों तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बहाल की जा सके और पंजाब से अनाज, औद्योगिक उत्पादन तथा अन्य वस्तुएं देश के अन्य हिस्सों में जा सकें। इस संबंध में गत दिनों कांग्रेस पार्टी के सांसदों ने भी दिल्ली में काफी सक्रियता दिखाई थी। उन्होंने रेल मंत्री पीयूश गोयल से मिल कर भी मालमाड़ियों की बहाली की मांग की थी। इससे पहले 4 नवम्बर को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना भी दिया गया था, जिसमें पंजाब के कांग्रेसी मंत्रियों, सांसदों तथा विधायकों ने शिरकत की थी। इस सब कुछ के बावजूद केन्द्रीय रेल मंत्रालय इस बात पर अडिग है कि यदि पंजाब में रेल यातायात शुरू किया जाएगा तो मालगाड़ियों के साथ-साथ यात्री गाड़ियां भी चलाई जाएंगी और उद्देश्य के लिए पंजाब सरकार को हर तरह की सुरक्षा की गारंटी देनी होगी।
 दूसरी तरफ पंजाब के आन्दोलनकारी किसान मालगाड़ियों की यातायात के लिए हर तरह का सहयोग देने के तैयार हैं परन्तु यात्री गाड़ियों संबंधी उनका विरोध बरकरार है। केन्द्र सरकार के इस तरह के व्यवहार के कारण राज्य में मालगाड़ियों की आमद न होने के कारण राज्य को प्रतिदिन आर्थिक तौर पर बहुत बड़ा नुक्सान हो रहा है। थर्मलों को कोयला न मिलने के कारण बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। बने हुए इस गतिरोध को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के पंजाब के नेताओं ने कोई अधिक प्रभावी भूमिका अदा नहीं की, बल्कि वे श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की यह  पहुंच ही दोहराते रहे हैं कि नये कृषि कानून किसानों के हित में हैं और इनसे किसानों की आय दोगुणा करने में मदद मिलेगी। हां, यह अवश्य हुआ है कि पंजाब भाजपा के कुछ नेताओं ने नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार के किसानों के प्रति व्यवहार के खिलाफ रोष व्यक्त करते हुए अपने पदों से त्याग-पत्र दे दिये थे, दूसरी तरफ इस सब के बावजूद आन्दोलनकारी किसानों ने अपने संघर्ष में कोई कमी नहीं आने दी, बल्कि उन्होंने 5 नवम्बर को देश भर में चक्का जाम करके और 25-26 नवम्बर को दिल्ली चलो का नारा देकर अपने आन्दोलन के देश व्यापी रूप देने की कोशिश की है। हालांकि यह लेख लिखे जाने तक दिल्ली पुलिस ने किसानों को 25 तथा 26 नवम्बर को दिल्ली के राम-लीला मैदान में इकट्ठे होने की अनुमति नहीं दी। 
इस संबंध में ताज़ा समाचार यह है कि श्री सुरजीत ज्याणी तथा पंजाब भाजपा के एक अन्य नेता सुरजीत सिंह ग्रेवाल ने पहलकदमी करके कुछ दिन पहले दिल्ली में किसान आन्दोलन का कोई सुखद समाधान निकालने के लिए केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र तोमर के साथ मुलाकात की है और उन पर आन्दोलनकारी किसानों के साथ बातचीत आरंभ करने के लिए ज़ोर डाला है, इससे कुछ दिन पहले श्री ज्याणी ने केन्द्र सरकार के किसान आन्दोलन के प्रति व्यवहार की भी कड़ी आलोचना थी। इस संदर्भ में भी अब यह खबर आई है कि 13 नवम्बर को दिल्ली में राजनाथ सिंह के गृह पर किसान प्रतिनिधियों के साथ सरकार द्वारा बातचीत की जाएगी और इसमें राजनाथ सिंह, केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेलवे मंत्री पीयूश गोयल तथा पंजाब भाजपा के अध्यक्ष श्री अश्विनी कुमार शर्मा शामिल होंगे। इस बारे किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने यह कहा है कि वे केन्द्र सरकार के साथ बातचीत करने के तो समर्थक हैं परन्तु इस संबंधी कोई भी फैसला निमंत्रण-पत्र आने के बाद ही लिया जाएगा। 
इस समूचे घटनाक्रम के संबंध में हमारी यह राय है कि अब तक श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने किसान आन्दोलन और विशेषकर पंजाब के किसान आन्दोलन संबधी जो व्यवहार अपनाया हुआ है, वह बेहद निंदनीय है। पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और दशकों तक केन्द्रीय अनाज भंडार में 40 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक हिस्सा डालता रहा है। इस कारण पंजाब की भूमि उपजाऊ शक्ति भी कम हुई है। अधिक कीटनाशक तथा नदीननाशक प्रयोग किये जाने से पर्यावरण की समस्याएं भी पैदा हुई हैं और भूमिगत पानी का अधिक प्रयोग होने के कारण उसका स्तर भी बहुत ज़्यादा नीचे चला गया है और 117 के लगभग ब्लाक इस पक्ष से काले ज़ोन करार दिए गए हैं। गत लम्बे समय से गेहूं एवं धान का न्यूनतर समर्थम मूल्य घोषित किये जाने के बावजूद किसान यह कहते रहे हैं कि उन्हें कृषि उत्पादन के लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण भी वे कज़र् के जाल में फंस गए हैं और इसी कारण अधिकतर किसान आत्महत्याएं करने के मजबूर भी होते रहे हैं। हज़ारों किसान कृषि के लगातार घाटे में रहने के कारण कृषि व्यवसाय से बाहर भी हो गए हैं। 
यदि देश की सुरक्षा के पक्ष से देखा जाए तो भी पंजाब को आर्थिक तौर पर मज़बूत रखना और यहां अमन तथा कानून को बनाए रखना देश की समूची सुरक्षा के लिए अहम है क्योंकि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और पाकिस्तान तथा देश विरोधी ताकतें लगातार पंजाब को अस्थिर करके लाभ उठाने की ताक में रहती हैं। अब जबकि पंजाब को डेढ़ महीने से भी अधिक समय से मालगाड़ियों की आमद रुकी हुई है तो पंजाब सहित जम्मू-कश्मीर की सीमाओं पर देश की सुरक्षा के लिए अहम भूमिका अदा कर रहे सैनिकों को आवश्यक वस्तुओं तथा हथियारों की सप्लाई भी प्रभावित हो रही है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर को भी रेलगाड़ियां पंजाब से होकर ही जाती हैं। हम जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर हालात सामान्य नहीं हैं। इसी तरह लद्दाख में चीन के साथ लगती सीमा पर भी तनाव बना हुआ है। ऐसी स्थितियों में जहां पंजाब को जल्द रेल यातायात बहाल करने की आवश्यकता है, वहीं किसान आन्दोलन का भी बातचीत करके उचित समाधान करने की आवश्यकता है। 
हमारी यह स्पष्ट राय है कि केन्द्र सरकार पंजाब को लोकसभा की 13 सीटों वाला एक छोटा-सा राज्य न समझे, बल्कि इसकी ऐतिहासिक तथा रणनीतिक अहमियत को समझती हुई किसान आन्दोलन के सम्मानजनक ढंग से समाप्त करवाने हेतु तुरंत पहलकदमी करे और लगभग डेढ़ महीने तक लम्बित रहने से राज्य को आर्थिक तौर पर जो नुक्सान हुआ है उसकी पूर्ति करने के साथ-साथ पंजाबियों की भावनाओं को जो ठेस लगा है, उसे भी दूर करने की आवश्यकता है। देश के हित यह मांग करते हैं कि पंजाब को देश की मुख्यधारा में सम्मानजनक ढंग से बना कर रखा जाए और पंजाब के अधिकारों-हितों को किसी भी स्तर पर दृष्टिविगत न किया जाए। अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार पंजाब तथा विशेष तौर पर किसान आन्दोलन के प्रति क्या रुख अपनाती है?