ऑस्ट्रेलिया में कोहली के बिना क्या टैस्ट शृंखला जीत पायेगी भारतीय टीम ?

भारत की क्रिकेट टीम 2018-19 में जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी, तो उसने पहला टैस्ट 31 रन से जीता, जिससे उसकी ऐसी लय बनी कि उसने चार मैचों की शृंखला 2-1 से जीतकर इतिहास रच दिया। भारत ने अपने अब तक के टैस्ट क्रिकेट इतिहास में पहली बार ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में हराया। इस विजय में कप्तान विराट कोहली के नेतृत्व व बल्लेबाजी के एतबार से जबरदस्त भूमिका थी। लेकिन इस बार पहला टैस्ट खेलकर कोहली स्वदेश लौट आयेंगे। इस पृष्ठभूमि में दो प्रश्न प्रासंगिक हैं- एक, क्या इस बार भी कोहली पहले टैस्ट में अपनी टीम का टेम्पो बनाने में सफल रहेंगे? दूसरा यह कि अगर कोहली लय बनाने में कामयाब हो गये तो उनकी अनुपस्थिति में टीम उसे बनाये रख सकेगी और लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया में टैस्ट शृंखला जीत सकेगी? ऑस्ट्रेलिया में परंपरा यह है कि गर्मियों के सत्र की शुरुआत ब्रिसबेन टेस्ट से की जाये, लेकिन इस बार पहला टैस्ट एडिलेड में खेला जायेगा और वह भी डे-नाईट के तौर पर पिंक बॉल से। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में पहले कभी डे-नाईट टैस्ट नहीं खेला है। डे-नाईट टैस्ट सामान्य डे टैस्ट से काफी भिन्न होता है क्योंकि इसमें इस बात पर अधिक ध्यान देना होता है कि किस समय पर किस प्रकार कि गेंदबाजी या बल्लेबाजी की जाये। कई बार सपाट विकेट ज्यों ज्यों खेल आगे बढ़ता है, अचानक जीवंत हो उठता है और बल्लेबाजी करना अति कठिन हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूज़ीलैंड डे-नाईट टैस्ट ड्रा की तरफ  बढ़ रहा थी कि अचानक विकेट पर बल्लेबाजी करना कठिन हो गया, न्यूज़ीलैंड ने थोड़े से ही समय में अपने छह विकेट गंवा दिए और मैच हार गया। उस समय अगर ऑस्ट्रेलिया बल्लेबाजी कर रहा होता तो शायद उसका भी यही हाल होता। ऐसे कठिन समय में विकेट बचाना व समय निकालना ज़रूरी हो जाता है। अगर पहला टैस्ट ब्रिसबेन में होता तो निश्चितरूप से मनोवैज्ञानिक लाभ भारत के पक्ष में होता, क्योंकि पिछली सीरीज़ की यादें दोनों टीमों के जहन में होतीं। एडिलेड में जहां भारत इस मनोवैज्ञानिक लाभ से वंचित रहेगा वहीं पिंक बॉल व डे-नाईट का समय भी उसके पक्ष में नहीं होंगे लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विपरीत स्थितियों से संघर्ष करना व उन पर विजय पाना कोहली की खास अदा है। दूसरा यह कि पेस व बाउंस के एतबार से ऑस्ट्रेलिया की पिचें अब पहली जैसी नहीं रही हैं, हालांकि भारत की तुलना में वह अब भी तेज व उछाल वाली हैं।  ध्यान रहे कि 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की हर पिच का अपना एक अलग चरित्र था- वाका (पर्थ) में तेजी व उछाल थी, सिडनी में गेंद घूमती थी, एडिलेड में चौथे व पांचवें दिन गेंद कभी ऊपर तो कभी नीचे रहती थी, गाबा में रिवर्स स्विंग होती थी और एमसीजी का अपना चरित्र था। इसके कारण भ्रमणकारी टीमों को एडजस्ट करने में कठिनाई होती थी और ऑस्ट्रेलिया एक मजबूत टीम के रूप में सामने आती थी। अब पिचों की यह स्थिति नहीं है, इसलिए मुकाबला लगभग बराबर का हो गया है। तीसरा व सबसे महत्वपूर्ण यह कि अब भारत के पास भी ऐसे गेंदबाज हैं, जो टैस्ट मैच में 20 विकेट चटकाने में सक्षम हैं। यही कारण है कि भारत के पूर्व तेज गेंदबाज जहीर खान का कहना है कि भारत व ऑस्ट्रेलिया शृंखला का नतीजा गेंदबाज तय करेंगे क्योंकि दोनों टीमों के पास विश्वस्तरीय गेंदबाज हैं -जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, मिशल स्टार्क, पैट कम्मिंस आदि।  टैस्ट के लिहाज से भारत को एक लाभ यह भी है कि उसके पास चेतेश्वर पुजारा जैसे बल्लेबाज हैं, जो क्रीज़ पर जमे रहने का फन जानते हैं, तेज़ी से रन स्कोर करने के दबाव को महसूस नहीं करते, जोकि फटाफट क्रिकेट के इस आधुनिक दौर में विशेष बात है। सवाल यह है कि जब बाकी तीन टैस्टों में कोहली नहीं होंगे क्या तब भी भारतीय टीम अपना दबदबा बनाये रखने में कामयाब रहेगी? इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कोहली के नेतृत्व, फील्ड में टीम को प्रोत्साहित करने की क्षमता, क्षेत्ररक्षण व बल्लेबाजी की कमी को टीम शिद्दत से महसूस करेगी।  

        -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर