भगवान विष्णु और सुदर्शन चक्र का अभिप्राय 

वैदिक समय से ही भगवान विष्णु संपूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति और नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। पुराणों में भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। उनके बारे में यह तो सब जानते हैं कि उनके चार हाथ हैं जिनमें वह अपने नीचे वाले बाएं हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी), ऊपर वाले बाएं हाथ में शंख और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र  धारण करते हैं। 
भगवान विष्णु के पास सुदर्शन चक्र  आने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को शिवजी का पूजन करने के लिए काशी आए जहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब भगवान विष्णु पूजा करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया।  अब चूंकि भगवान विष्णु को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए 1000 कमल के फूल चढ़ाने थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं, इसलिए तो मुझे कमल  नयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है।
 एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आंख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आंख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट होकर बोले, ‘हे विष्णु, आपके समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत-पूर्वक जो पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। तब प्रसन्न होकर शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र  प्रदान किया और कहा कि यह चक्र  राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा। ऐसा माना जाता है कि विष्णु जी के शेषनाग पर लेटे हुए रूप का अर्थ है कि मनुष्यों को सुख और खुशियों के साथ-साथ कई समस्याओं से भी उसी वक्त गुजरना पड़ता है यानि सुख के साथ दुख भी। इसीलिए जीवन के इस सच को वो सांपों के ऊपर लेटकर मुस्कुराते हुए दर्शाते हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु के मुकुट पर लगा मोर पंख, उनके कृष्ण अवतार को दर्शाता है। ऐसा भी माना जाता है कि यह मोर पंख विष्णु जी ने कृष्ण भगवान से ही लिया है। इसके अलावा विष्णु जी की छाती पर बना श्रीवस्ता लक्ष्मी जी के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। वहीं, उनका सुदर्शन चक्र  सात्विक अहंकार को दर्शाता है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के 10 अवतार हैं जिनमें मत्स्यावतार, कूर्मावतार, वराहावतार, नरसिंहावतार, वामनावतार, परशुरामावतार, रामावतार, कृष्णावतार, बुद्धावतार और कल्कि अवतार शामिल हैं हालांकि भगवान ने अभी कल्कि अवतार नहीं लिया है। 
ऐसा माना जाता है कि कलयुग का अंत नजदीक आ जाने पर जब पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ जाएंगे, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे और अधर्म का विनाश कर पुन: धर्म की स्थापना करेंगे। (उर्वशी)