प्रवासी पंजाबी हाकी को उत्साहित करने हेतु आगे आएं

प्रवासी पंजाबी खेलों के क्षेत्र में जो अपना योगदान दे रहे हैं, उसे एक सही दिशा देने की आवश्यकता है। कोई भी मदद, कोई भी सहायता तभी प्रशंसनीय बनती है, यदि उसके परिणाम अच्छे हों। पूरे विश्व में पंजाबियों ने इस खेल के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई। दशकों से हाकी के क्षेत्र में पंजाबी उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं, पंजाब हाकी प्रतिभा से भरपूर प्रदेश है, परन्तु रास्ते में कई रुकावटें व मुश्किलें हैं। हमारे उभर रहे हाकी खिलाड़ी अपने खेल करियर के शुरू में ही जिन समस्याओं का सामना करते हैं, वे हैं एस्ट्रोटर्फ मैदानों की कमी, हाकी स्टिकों और हाकी किटों की कमी, अच्छी खुराक नहीं, अच्छे क्लबों का न होना, अच्छी अकादमियों की कमी। कोई बताये विदेशों में रहते हमारे प्रवासी पंजाबियों ने इस पक्ष से कितनी मदद की अपने प्यारे पंजाब की। पंजाब के कई ज़िलों में हाकी दम तोड़ती चली गई। हम पूछते हैं कि खेलों को उत्साहित करने का ढिंडोरा पीटने वाले हमारे प्यारे प्रवासी पंजाबी अब तक कहां रहे? हमने सुना है कि प्रवासी पंजाबी देश वासियों के खेल संसार को बुलंदी पर पहुंचाने के लिए लाखों करोड़ रुपये खर्च करते आ रहे हैं। दोस्तो! जिस प्रदेश की खेल संस्कृति भी खत्म हो गई, फिर किस खेल संसार को बुलंदी पर पहुंचाना था। अकेली कबड्डी ही तो पंजाब की खेल संस्कृति नहीं। 
कबड्डी की तरह पंजाबी यदि कहीं अपने देश की राष्ट्रीय खेल हाकी को भी ऊंचा उठाने का संकल्प लेते तो ग्रास रूट से फिर आज भी भारत की हाकी का पूरे विश्व में विजयी बिगुल बजता। पंजाब में 60 के दशकों जैसी हाकी संस्कृति मौजूद होती परन्तु इसके विपरीत हाकी तो अपनी दुर्दशा के कारण चर्चा में रही। जिस खेल ने पंजाबियों को सम्मान दिया हमारे प्रवासी पंजाबियों ने उसी को ही नज़रअंदाज़ किया। कई स्थानों पर पंजाब में प्रवासी खेल मेले करवाते हैं और कहीं भिन्न-भिन्न मेलों में भी वे बड़ी दिलचस्पी से अपना अमूल्य योगदान डालते हैं। अफसोस की बात यह है कि उन खेल मेलों में भी हाकी गायब है। सच तो यह है कि  प्रवासी पंजाबियों को हाकी खेल को भी उत्साहित करने की आवश्यकता है, जो कि एक ओलम्पिक खेल है। प्रवासी पंजाबी हाकी को नया उत्साह देने के लिए अब भी प्रयोजकों के रूप में आगे आए। ग्रास रूट पर भी हाकी खेल को मज़बूत करने के लिए प्रयास करें। पंजाबी मूल का खिलाड़ी जब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करता स्वर्ण पदक जीतता है तो प्रवासी पंजाबियों को खुशी होती है, जैसे जूनियर वर्ल्ड कप की जीत भी खुमारी से वे झूमे। इसलिए हाकी उनको सच्ची खुशी दे सकती है। उन्हें पंजाब के गांवों में हाकी अकादमियां स्थापित करवानी चाहिएं और अपने बुज़ुर्गों या खिलाड़ियों के नाम पर। हाकी मैदान एस्ट्रोटर्फ या घास वाले बनवाएं। भारतीय हाकी टीम के खराब प्रदर्शन से निराश होने वाले विदेशों में रहते पंजाबी यदि हाकी के भले के लिए कुछ करना चाहते हैं तो पंजाब में हाकी संस्कृति पैदा करें। गांवों में जाकर स्वयं हाकियां, हाकी किटें बांटें। बड़े-बड़े टूर्नामैंटों के लिए ईनामी राशि का योगदान प्रवासी पंजाबियों द्वारा बंद होना चाहिए। उनकी मदद एक आम खिलाड़ी के घर तक सीधी पहुंचनी चाहिए ताकि पहले हाकी संस्कृति पैदा हो जो कि दम तोड़ रही है, पैसे की कमी के कारण। 

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