खान-पान की गलत आदतों से होता है पेप्टिक अल्सर

पेप्टिक अल्सर पाचनतंत्र में होने वाला एक प्रकार का फोड़ा है। अल्सर दो तरह के होते हैं-आमाशय में होने वाला आमाशयी फोड़ा तथा ग्रहणी (इओडिनल) में होनेवाला ग्रहणी का फोड़ा। ग्रहणी का फोड़ा पेट के उत्तरार्द्ध में होता है। आमाशयी फोड़ा यानी गैस्ट्रिक अल्सर पेट में होता है।
लंबे समय तक इलाज न होने पर अल्सर क्र ॉनिक हो जाता है। तब इसका इलाज दवाइयों से मुश्किल होता है। हर बीमारी की तरह ही इसका इलाज भी बीमारी की शुरूआत में आसान होता है और मरीज लंबे खर्च और तकलीफों से बच सकता है।
आज फास्टफूड का जमाना है। डिब्बाबंद खाने की चीजें, आर्टिफिशियल फ्लेवरयुक्त आइसक्र ीम, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, आए दिन की पार्टियां और उनमें गलत तरह का तेज मिर्च मसाले युक्त तला हुआ भोजन आधुनिक जीवन का तौर तरीका बन गया है।
यह रोग ऊंचे तबके में अधिक पाया जाता है। आम तौर पर शारीरिक श्रम न करने वाले बड़े अधिकारी, बिजनेसमैन, डॉक्टर, दुकानदार आदि इस रोग को ज्यादा आमंत्रित करते हैं। फिर भी कोई निश्चित नियम यहां लागू नहीं होता। कई बार नीचे तबके के लोग जैसे मजदूर व निम्नवर्गीय आम आदमी भी इसके शिकार पाए जाते हैं। दरअसल गहरा मानसिक तनाव, कार्यबोझ, जिम्मेदारियों से होने वाली चिंता (फिक्र ) भी पेप्टिक अल्सर का कारण बन जाती है। 
लक्षण : पेट में हल्का या तेज दर्द जो घटता बढ़ता प्रतीत हो सकता है। यह दर्द कभी-कभी रीढ़ की ओर लहर सी मारता प्रतीत होता है। कभी-कभी दर्द के साथ उल्टी भी होती है। गैस्ट्रिक अल्सर के रोगियों को खाना खाते ही दर्द महसूस होने लगता है। इसके मरीज मिर्च या तला हुआ खाना नहीं ले सकते, न ही कोई हार्ड ड्रिंक क्योंकि उससे तकलीफ और भी बढ़ जाती है। अल्सर फट जाने पर आंतों का गंद पूरे पेट में फैल जाने पर स्थिति नाजुक हो सकती है।
रोग की जांच और उपचार : जांच की पारंपरिक विधि है बेरियम पाउडर पिलाकर पेट का एक्स-रे लिया जाना क्योंकि इसी से पेप्टिक अल्सर देखा जा सकता है। एक आधुनिक विधि है गैस्ट्रो एंडोस्कोपी। इसमें मुखमार्ग से एक पतली नली रोगी के पेट में डालकर लैंस द्वारा जांच की जाती है। इस उपकरण को गैस्ट्रोस्कोप कहते हैं। (स्वास्थ्य दर्पण)