विवाद बरकरार पर आस बाकी

यह चिंता वाली बात है कि केन्द्र सरकार के मंत्रियों एवं किसान संगठनों के नेताओं के मध्य पिछले दिनों सम्पन्न हुए वार्ताओं के 9 दौरों के बाद आज 10वां दौर भी विफल हो गया है। आस वाली बात यह है कि किसान नेताओं एवं केन्द्र सरकार के मध्य वार्ता टूटी नहीं। अगली बैठक 22 जनवरी को होनी तय हुई है, परन्तु आज की वार्ता के जो विवरण सामने आए हैं, उनके अनुसार केन्द्रीय मंत्रियों ने किसान संगठनों को फिर स्पष्ट कर दिया है कि केन्द्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी तथा इस मुद्दे को लेकर किसान संगठन सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते हैं। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप किसान संगठनों के नेताओं ने भी केन्द्रीय मंत्रियों को स्पष्ट रूप से कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय नहीं जाएंगे तथा केन्द्र सरकार से कृषि कानून रद्द करवाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे। बातचीत के अंत में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने किसान नेताओं को यह पेशकश भी की  कि सरकार समस्या के हल हेतु किसानों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों एवं केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों पर आधारित एक समिति बनाने के लिए भी तैयार हो सकती है तथा डेढ़-दो वर्ष के लिए कानूनों पर रोक भी लगाई जा सकती है, परन्तु किसान नेताओं ने कहा कि उनकी मांग तो कानूनों को रद्द करने की है परन्तु सरकार की नई पेशकश के संबंध में किसान नेता 21 जनवरी को अपनी बैठकों में विचार करेंगे। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी बैठक के बाद इसे सकारात्मक बताया है।
दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय ने 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के संबंध में स्पष्ट कर दिया है कि इस सन्दर्भ में कोई भी फैसला लेने का अधिकार दिल्ली पुलिस को है। वह स्वयं फैसला करे कि उसने दिल्ली में किसे प्रवेश करने देना है या किसे नहीं। इसका सर्वोच्च न्यायालय से कोई संबंध नहीं है। उसने दिल्ली पुलिस को यह भी कहा है कि वह इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका वापिस ले ले। उल्लेखनीय है कि किसान संगठनों ने 26 जनवरी को आऊटर रिंग रोड पर ट्रैक्टर परेड करने की घोषणा की हुई है तथा 26 जनवरी की गणतंत्र दिवस की परेड के दृष्टिगत किसानों को इस परेड से रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख धारण किया था परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कोई भी आदेश देने से इन्कार करके इसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी दिल्ली पुलिस पर ही डाल दी है।  चाहे दिल्ली पुलिस ने अभी तक किसानों को 26 जनवरी को मार्च करने अथवा न करने देने संबंधी कोई फैसला नहीं दिया परन्तु किसान संगठन 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के लिए दृढ़ दिखाई दे रहे हैं। दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानूनों के संबंध में सुनवाई करते हुये यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी तरफ से पिछले दिनों विशेषज्ञों की जो समिति बनाई गई थी, वह अपना कार्य जारी रखेगी। इस समिति में शामिल सदस्यों की चाहे कुछ भी राय हो, उसके आधार पर उनकी आलोचना करना उचित नहीं है। किसानों को उस समिति के समक्ष अपनी राय रखनी चाहिए परन्तु यदि किसान ऐसा नहीं चाहते तो सर्वोच्च न्यायालय उन्हें विवश नहीं करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि उक्त समिति के पास कृषि कानूनों संबंधी फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है। वह केवल सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए बनाई गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने समिति के सदस्य भूपिन्द्र सिंह मान के स्थान पर कोई अन्य कृषि विशेषज्ञ समिति में शामिल करने के लिए भी सम्बद्ध पक्षों को नोटिस जारी किये हैं। 
आज के दिन घटित इस समूचे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि तीनों कृषि कानूनों के संबंध में चल रहे किसान आन्दोलन एवं इस संबंधी केन्द्र सरकार एवं किसान संगठन चाहे अपने-अपने रुख पर कायम हैं, परन्तु सरकार की ओर से आई पेशकश से तनाव कुछ कम होते दिखाई दे रहा है। दोनों पक्ष अपने दृष्टिकोण में कुछ नरमी लाने के लिए तैयार होते नज़र आ रहे हैं। चाहे इस संबंध में पूरी स्थिति 21 जनवरी को किसान संगठनों की होने वाली बैठकों के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।  हम पिछले समय में कई बार इस मुद्दे पर अपनी यह राय स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर कर चुके हैं  कि केन्द्र सरकार एवं किसान संगठनों, दोनों को इस मामले पर लचकदार रुख धारण करना चाहिए। इस सन्दर्भ में ही आज केन्द्र सरकार की ओर से किसान संगठनों को जो बड़ी पेशकश की गई है, उस पर खुले मन के साथ अपनी बैठकों में विचार करके इस दिशा में सार्थक मत धारण करना चाहिए। ऐसे दृष्टिकोण से ही इस गम्भीर मामले का कोई समुचित हल निकल सकता है।
 

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