लव जिहाद का सवाल

उत्तर प्रदेश में आदित्य नाथ के नेतृत्वाधीन भाजपा सरकार ने 24 नवम्बर, 2020 को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिबंध अध्यादेश-2020 को स्वीकार कर राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेज दिया, जिसके अनुसार विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने पर दस साल की जेल और पचास हज़ार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। 
इससे कुछ ही दिन पहले मध्यप्रदेश की सरकार बढ़ते हुए लव जेहाद के मामलों को रोकने के लिए ‘धर्म स्वातंत्र्य बिल 2020’ विधानसभा के अगले सत्र में पास करवाने का निर्यण ले चुकी है। हरियाणा में भी लव जेहाद को रोकने के लिए कानून बनाने की शुरुआत कर दी गई है।  न्यायालय में जो कुछ घटा, वह भी देख लें ज़रा-इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सलामत अंसारी की अपील पर फैसला लेते हुए 24 नवम्बर को जो कुछ कहा, वह भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय संविधान में नागरिकों को दिये अधिकारों की फिर से समीक्षा करता है, जो आर्टीकल 21 के तहत नागरिकों को प्रदान किये गये हैं। न्यायालय का कथन है-हम प्रियंका खरवार और सलामत को हिन्दू या मुसलमान की तरह नहीं देखते हैं, बल्कि व्यस्कों की तरह देखते हैं जो अपनी इच्छा के और चुनाव के मुताबिक पिछले एक वर्ष से शांतिपूर्ण और हंसी खुशी से रह रहे हैं। न्यायालय और विशेषकर संवैधानिक न्यायालय की धारा 21 के तहत एक व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करने के साथ है। न्यायालय कह रहा है कि अपनी मनपसंद के पुरुष या महिला के साथ रहने का अधिकार उसी तरह समझा जाना चाहिए, जैसे सभी के जीने और स्वतंत्र रहने का अधिकार है। यहां विद्वान सज्जन प्रश्न यह उठा रहे हैं कि क्या हिन्दू समाज को अपनी बेटियों की प्रतिभा पर इतना भी भरोसा नहीं कि वे विवेकवान हैं, विवेकहीन नहीं। वे अंधे कुए ंमें छलांग नहीं लगाने वाली जब फैसला उनके जीवन और भविष्य का हो। मुस्लिम लड़कों के बहकावे में क्यों आकर वे अपना जीवन बर्बाद करेंगी? जिसके लिए मां-बाप को अदालत की शरण लेनी पड़े। 
इससे अलग हट कर देखा जाये तो हमारे समाज में प्रेम विवाह के प्रति कितने दिमाग रोशन हैं? कब हम किसी प्रेम विवाह को सहज रूप से स्वीकार करते हैं? हमारे सामने जाति, पद, रुतबे को लेकर इतने एतराज़ हैं कि हम हर समान्य मामले को जटिल बना देते हैं, जब तक बात पूरे विवाह या घर से भाग कर शादी करने तक नहीं आती, हम अपने बनाए किलों में कैद ही पसंद करते रहते हैं। ऐसे प्रेमी जोड़े के प्रति पूरे समाज का रवैया खाप पंचायत सा रहता है। मनमाने  फतवे जारी कर जीवन संकट में डाल रहे हैं। जब राज्य व्यवस्था से कुछ हिफाजत कुछ समर्थन की उम्मीद हो, वहां  अब लव जिहाद का मसला सामने आने लगा है, जो कानून अब बन रहे हैं उनमें यह होगा कि यदि अलग धर्म की लड़की अलग धर्म वाले लड़के से विवाह संबंध बनाने वाली हो और अपना धर्म (दोनों में से एक) बदलना चाहती हो तो इसके लिए पहले जिला मैजिस्ट्रेट को अर्जी देनी होगी। इसके बाद जिला मैजिस्ट्रेट और कलेक्टर इस मामले की पड़ताल  क रेंगे कि कहीं धर्म परिवर्तन किसी दबाव में तो नहीं किया जा रहा। अर्जी के स्वीकार या अस्वीकार किये जाने दोनों ही स्थिति में प्रशासन द्वारा लड़का-लड़की दोनों पक्षों को सूचित किया जाएगा। इस तरह की शादियों में अगर शादी के बाद भी लड़की के परिवार की तरफ से धर्म परिवर्तन जबरदस्ती किये जाने की शिकायत आती है तो कानून में इसकी गुंजाइश रहेगी। बिना अर्जी प्रस्तुत किये धर्मांतरण करवाने वाले धर्मगुरु, काज़ी, मौलवी या पादरी को पांच साल की सज़ा हो सकती है। 
बताया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में धर्म परिवर्तन निरोधक कानून काफी पहले से ही मौजूद है, जिसमें शिवराज सिंह चौहान सरकार ने संशोधन कर उसे और भी सख्त बनाया है, जिसके बाद प्रदेश का कोई भी नागरिक अगर अपना मज़हब बदलना चाहता है तो इसके लिए उसे ज़िला मैजिस्ट्रेट से अनुमति प्राप्त करनी होगी। नहीं तो सज़ा भोगने को तैयार रहें। 
इस बात को क्यों न लड़के-लड़की (जब दोनों व्यस्क हों) की अपनी मज़र्ी पर अपने फैसले पर छोड़ दिया जाए, क्योंकि वे अपने जीवन को लेकर फैसला करने में स्वतंत्र और समर्थ हैं। उनकी इस स्वतंत्रता को मान्यता मिलनी चाहिए। हां, जबरदस्ती होने पर कानूनी कार्यवाही हो।