कोरोना की चुनौती और टीकाकरण

भारत में वर्ष भर से फैली कोरोना महामारी ने एक बार तो हालात को पूरी तरह उलट-पुल्ट कर रख दिया था। बड़े मानवी और आर्थिक नुकसान के अलावा इसने हर पक्ष से नुकसान किया था। पूरा समाज संकट में घिर गया था। करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए थे, जीवन की गति थम गई थी। डर एवं सहम का साया बहुत गहरा  हो गया था।   आज चाहे सोची-समझी योजना के तहत हर पक्ष से छूटें प्रदान की जा रही हैं। जीवन को सामान्य बनाने के लिए यत्न हो रहे हैं परन्तु जितना बड़ा आर्थिक नुकसान इस महामारी ने किया है, उसकी इतनी शीघ्र पूर्ति होना मुश्किल है। प्रत्येक पक्ष से आर्थिकता को मजबूत बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है, परन्तु दूसरी ओर चिंता वाली बात यह है कि इस बीमारी का देश के भिन्न-भिन्न प्रांतों में  पुन: उभार देखने को मिल रहा है। 
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने स्थिति को देखते हुये पुन: सख्ती करने की घोषणा की है। उनकी ओर से एक मार्च से सभी प्रकार के सार्वजनिक समूहों को सीमित रखने के निर्देश दिये गये हैं। इसी तरह ज़िला के उपायुक्त स्थिति के अनुसार रात्रिकालीन कर्फ्यू भी लगा सकेंगे। महाराष्ट्र  एवं कुछ अन्य राज्यों में भी इस महामारी के बढ़ने के समाचार मिल रहे हैं, जिससे एक बार पुन: सहम बढ़ना शुरू हो गया है परन्तु पूरे काल के दौरान यह भी परिणाम निकाला जा चुका है कि इस बीमारी के होते हुये भी जीवन को गतिमान बनाये रखना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति नहीं हो सकती। पाबन्दियों से मनुष्य का जीवन हाल से बेहाल हो जाता है। इसे किसी न किसी रूप में हर हालत में सक्रियता देना बेहद ज़रूरी है। विश्व भर में इस बीमारी के फैलने से हो रहे बड़े नुकसान के दौरान यह भी महसूस किया जाने लगा था कि जब तक इसके लिए कोई प्रभावशाली दवाई या टीका ईजाद नहीं होता, तब तक इसके पड़े काले साये को दूर नहीं किया जा सकेगा। वैज्ञानिक इसके लिए दिन-रात यत्न करते रहे हैं। इस संबंध में अलग-अलग देशों ने टीका तैयार करने का दावा किया था, जिनमें से कुछ देशों के टीके प्रभावशाली भी दिखाई दिए थे। इनमें रूस, अमरीका और चीन आदि देशों के साथ-साथ भारत को भी इस बात पर गर्व होना चाहिए कि यहां की कुछ कम्पनियों ने भी दूसरे देशों के साथ भागीदारी करके टीके तैयार करने की पहल की थी। अपने देश में इन टीकों का उत्पादन शुरू हो चुका है तथा यह टीके बेहद प्रभावशाली भी सिद्ध हुए हैं। इन कम्पनियों में सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के कार्य की बड़ी सीमा तक सराहना की जा सकती है। अब कोविशील्ड और कोवैक्सिन नामक टीके भी तैयार हो चुके हैं जिन्हें लगाने के लिए व्यापक स्तर पर देश भर में योजनाबंदी की गई है। इसलिए हम केन्द्र सरकार की प्रशंसा करते हैं  कि टीकाकरण के इस अभियान में अब तक बड़ी सफलता प्राप्त कर ली गई है। केन्द्र द्वारा देश के सभी राज्यों की शमूलियत से इस विशाल कार्य को प्रारम्भ किया जा चुका है। इसको चरणबद्ध ढंग से पूर्ण करने के लिए भी बड़ी योयनाबंदी की गई है। 
इस योजनाबंदी में पहले देश के प्रत्येक स्तर के करोड़ों स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगाए गए हैं। प्रत्येक को कुछ समय के अन्तराल के बाद चरणबद्ध ढंग से खुराकें दी जानी हैं। अब तक सवा करोड़ के लगभग लोगों को टीके लगाए जा चुके हैं। शीघ्र ही दूसरे चरण के लक्ष्य को पूर्ण करने के बाद जल्द ही तीसरे चरण की शुरुआत की जाएगी जिसमें 50 वर्ष से अधिक अथवा प्रभावित लोगों को शामिल किया जाएगा। शुरुआत में तो लोगों के मन में पैदा हुई हिचकिचाहट के कारण टीकाकरण की प्रक्रिया की रफ्तार कुछ धीमी थी परन्तु अब यह बल पकड़ने लगी है। कोवैक्सिन की शीशी में 10 खुराकें और कोविशील्ड में 20 खुराकें होती हैं। प्रत्येक शीशी के खुलने के कुछ घंटे के भीतर यह टीका लगाया जाना आवश्यक है। टीकाकरण की इस प्रक्रिया को और आगे बढ़ाने के लिए प्रिंट, इलैक्ट्रानिक और सोशल मीडिया की मदद भी ली जा रही है। एक शीशी की अवधि 6 महीने तक होती है परन्तु इसके साथ भी यह बात सोचने वाली अवश्य है कि 130 करोड़ की बड़ी जनसंख्या वाले देश में टीकाकरण प्रक्रिया काफी समय ले सकती है। 
इस हेतु निजी क्षेत्र और अस्पतालों को भी टीकाकरण की प्रक्रिया में शामिल किया जाना आवश्यक है। इस संबंधी भारत की बड़ी शख्सियत विप्रो कम्पनी के मालिक अज़ीम प्रेमजी ने भी यह कहा है कि निजी क्षेत्र को इस प्रक्रिया में शामिल करने से दो माह में ही 50 करोड़ लोगों को टीका लगाये जाने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि टीके की खुराक को हर हाल में बहुत कम कीमत पर दिया जाना चाहिए ताकि यह आम लोगों की पहुंच में आ सके। नि:सन्देह इन टीकों में लोगों का विश्वास बढ़ा कर एवं टीकाकरण अभियान को तेज़ करके इस बीमारी के प्रभाव को बड़ी सीमा तक कम किया जा सकेगा, जिससे जीवन की धड़कन पूर्व की भांति बनाई जा सकेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द