पानी की बचत और ज़मीन की सेहत के लिए गर्म ऋतु में मूंगी की काश्त

धान-गेहूं फसली चक्र में गर्म ऋतु की मूंगी का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी बिजाई का सही समय 20 मार्च से 10 अप्रैल है। चाहे बिजाई अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक भी की जा रही है। गेहूं की कटाई कर किसान गर्म ऋतु की मूंगी की फसल ले सकते हैं। जिन किसानों ने मटर और आलू लगाए हैं, उनमें से अधिकतर इन फसलों के बाद बहार ऋतु की मक्की की काश्त करते हैं। जबकि मक्की की पानी की ज़रूरत गर्म ऋतु की मूंगी से बहुत ज़्यादा है। 
गर्म ऋतु की मूंगी लगाने से बिजली और पानी दोनों की बचत होती है। ट्यूबवैलों के माध्यम से कम पानी देना पड़ता है। बहार ऋतु की मक्की गर्म ऋतु से साढ़े चार-पांच गुणा अधिक पानी मांगती है। मूंगी 60-62 दिन की फसल है और इसे लगभग 3000 क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यता है जबकि मक्की की पानी की ज़रूरत 13500 क्यूबिक मीटर तक है। मक्की पैदा करने का खर्च मूंगी से बहुत अधिक है। पीएयू द्वारा किये गए सर्वेक्षण और विश्लेषण के अनुसार एक हैक्टेयर मक्की पैदा करने पर 42553 रुपये खर्च आते हैं जबकि मूंगी का खर्चा 23857 रुपये प्रति हैक्टेयर है। किसान मक्की की हाईब्रिड किस्में लगाते हैं जिनकी उत्पादकता अधिक है। परन्तु उन किस्मों को पानी की ज़रूरत बहुत ज़्यादा है। 
भूमिगत पानी का स्तर प्रत्येक वर्ष नीचे जाना पंजाब के लिए खतरे की घंटी है। गत 25 वर्षों में पानी का स्तर 50 फीट नीचे चला गया है। फिर मूंगी लैगूम परिवार से संबंध रखती है और वातावरण से नाइट्रोजन लेती है। सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि इसके बाद जिस फसल की बिजाई की जाती है, उसके लिए भी नाइट्रोजन छोड़ जाती है। इसमें प्रोटीन एवं फाइबर तथा उच्च किस्म के पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं और कैलेस्ट्रोल बिल्कुल ही नहीं होता। गर्म ऋतु की मूंगी को ‘हाई-वेल्यू कैश क्राप’ माना जाता है, जिस की खाद, पानी और अन्य कृषि सामग्री की ज़रूरतें बहुत कम हैं। गर्म ऋतु की मूंगी लगाने का सबसे अधिक लाभ यह भी है कि धान की ट्रांस्सप्लांटिंग जिसके लिए सरकार ने पंजाब प्रीज़र्वेशन आफ सब स्वाइल वाटर एक्ट 2009 बनाया है, किसान अगेती नहीं करेंगे और न ही पौध अगेती लगाएंगे। 
पीएयू और आईसीएआर -भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से सम्मानित इनोवेटिव किसान बलबीर सिंह जड़िया, धर्मगढ़ (अमलोह) कहते हैं कि अब गर्म ऋतु की मूंगी की फसल की संभाल बहुत आसान हो गई है। इस पर अब खर्च बहुत कम आता है। अब फसल कम्बाईन से काटी जाने लगी है, जिसकी कटाई लेबर के मुकाबले बड़ी सस्ती पड़ती है। मूंगी की फसल को तो सिर्फ तीन-चार पानी ही चाहिएं। पहला पानी बिजाई से 25 दिन बाद लगाने की सिफारिश है। मूंगी के बीज को कप्तान या थिरम से शोध लेना चाहिए और जीवाणु खाद का टीका लगाना चाहिए जिससे खादों की और बचत होगी और उत्पादकता भी बढ़ेगी। आलू निकालने के बाद तो कोई भी खाद गर्म ऋतु की मूंगी को डालने की आवश्यकता नहीं।
गर्म ऋतु की मूंगी की संशोधित किस्में एस.एम.एल. 832, एस.एम.एल. 668 और टी.एम.बी. 37 हैं, जिनका औसत उत्पादन 4.5 से 5 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। टी.एम.बी. 37 किस्म पकने के लिए 60 दिन लेती है जबकि दूसरी किस्में 62-65 दिन लेती हैं परन्तु इन सभी किस्मों की मूंगी को सट्ठी मूंगी कहा जाता है। एस.एम.एल. 668 किस्म का एकड़ में 15 किलो बीज तथा टी.एम.बी. 37 और एस.एम.एल. 832 किस्मों का 12 किलो बीज डालना चाहिए। बिजाई का फासला 22.5 सैं.मी. बीज ड्रिल को 4 6 सैंटीमीटर गहरा रखना चाहिए। गेहूं काट कर बिना ज़मीन तैयार किये ज़ीरो ड्रिल से बिजाई की जा सकती है और कम्बाईन से काटी गेहूं में बिजाई के लिए हैपी सीडर भी प्रयोग किया जा सकता है। मूंगी का फसल पर नदीनों की काफी समस्या है, जिन पर अधिक उत्पादन लेने हेतु, समय पर दवाईयां के द्वारा या हाथ से निकाल कर काबू पाने की आवश्यकता है।