निन्दनीय घटना-क्रम 

ज़िला मुक्तसर के मलोट में पिछले दिनों जो कुछ घटित हुआ है, वह निन्दनीय भी है और लज्जित करने वाला भी। लोगों के एक निर्वाचित प्रतिनिधि के साथ किये गये ऐसे व्यवहार का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता। किसान आन्दोलन के दौरान लगभग पिछले 6 महीनों से पंजाब में जिस प्रकार भाजपा के नेताओं के साथ आन्दोलनकारियों की ओर से व्यवहार किया जाता रहा है, वह शोभनीय नहीं है। उनके घर आकर निरन्तर धरने देकर उन्हें निकलने न देना, कठोर भाषा का प्रयोग करना, भाजपा को कोई सम्मेलन अथवा एकत्रता न करने देना आदि ऐसी घटनाएं हैं जो पिछले महीनों से निरन्तर घटित हो रही हैं। 
पुलिस भी अपनी नीयत एवं नीति के कारण कोई प्रभावशाली भूमिका अदा करने में असमर्थ दिखाई देती रही है। ऐसा माहौल तनाव एवं घृणा को जन्म देता है। भिन्न-भिन्न वर्गों  में हिंसकटकराव के हालात पैदा करता है। ऐसा पहले अनेक बार घटित हो चुका है। नगर निगमों के चुनावों में भी प्राय: यही कुछ देखा जाता रहा है। किसान संगठनों की ओर से राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को अपने मंचों पर चढ़ने से रोका जाता रहा है। चाहे परोक्ष रूप में कुछ ऐसी राजनीतिक पार्टियां भी हैं जो इस आन्दोलन की आड़ में अपने एजेंडे पर काम कर रही हैं। यह भी एक बड़ा कारण रहा है कि सरकार के साथ किसान संगठनों का कोई समझौता सम्पन्न नहीं हो सका। चाहे कई बार इसकी सम्भावनाएं अवश्य उजागर होती रही हैं परन्तु कुछ पक्षों की ओर से माहौल ही ऐसा सजित किया जाता रहा है जो इन सम्भावनाओं को सदैव मद्धम करने में सहायक हुआ है। हमें इस बात की भी शिकायत है कि बड़ी राजनीतिक पार्टियों का इस संबंध में अपना-अपना एजेंडा है। कोई समझौता न होने जैसा माहौल सृजित करने में उनका भी बड़ा हाथ रहा है। कोई भी समझौता बातचीत के माध्यम से मसले को आधार बना कर स्थिति को समझते हुये ले-दे की भावना से ही पूर्ण होता है। किसी प्रकार का हठ ऐसे सम्भावित समझौते के रास्ते में भारी बाधाएं खड़ी कर देता है। राजनीतिक पार्टियों की बड़ी ज़िम्मेदारी अपने प्रदेश के हितों के प्रति भी होनी चाहिए। अब तक इस आन्दोलन में एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक पक्ष से एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। उद्योग की गाड़ी बहुत धीमी पड़ गई है। सभी प्रकार का व्यापार जूं की चाल से चलने लगा है। बड़े दुख की बात यह है कि सृजित किये जा रहे ऐसे माहौल में विरोध शत्रुता में बदलने लगे हैं जो प्रदेश के लिए हानिकारक हैं। पहले ही यहां  कमियां एवं त्रुटियां बेहद बढ़ चुकी हैं। पहले ही यहां बेरोज़गारी का विस्तार है। पहले ही नित्य-प्रति भिन्न-भिन्न संगठनों की ओर से धरने-प्रदर्शन किये जा रहे हैं। ऐसे सृजित किये जा रहे माहौल में कल को यहां कोई बड़ी-छोटी कम्पनी अपना कोई उद्योग लगाने का साहस नहीं करेगी। 
पिछले समय में हमारे तत्कालीन मुख्यमंत्री बड़े योजनाबद्ध ढंग से देश के बड़े उद्योगपतियों के पास जाकर प्रदेश में निवेश करने के अनुरोध करते रहे हैं परन्तु कल को ऐसे सृजित हालात में वे किस प्रकार प्रदेश में आकर कोई उद्यम स्थापित करके अपना काम-धंधा शुरू कर सकेंगे? अब भी पार्टियों सहित अधिकतर पक्षों को इस बात का एहसास नहीं हुआ प्रतीत होता कि प्रदेश के हालात किस दिशा की ओर जा रहे हैं। कुछ दशक पहले ही यहां बड़ी त्रासदियां घटित हुई थीं। यहां ऐसा कुछ हुआ था कि जो इतिहास के पन्नों से कभी मिटाया नहीं जा सकेगा। तब भी यह प्रदेश कई दशक पिछड़ गया था जिसकी पूर्ति आज तक भी नहीं हो सकी। प्रदेश की सरकार के सिर पर लदा कई लाख करोड़ रुपये का ऋण इस बात का साक्षी है। उत्पन्न हुई घृणा एवं असंतोष विकास को तो रोकते हैं, इसके साथ ही विनाश ही ओर भी संकेत करते हैं। हम समझते हैं कि यदि आगामी समय में पंजाब को पुन: पहले जैसा संताप भोगना पड़ा तो इसके लिए आज के सभी बड़े पक्ष ज़िम्मेदार होंगे। अब भी यह प्रदेश कई दशक पीछे चला गया प्रतीत होता है। आगामी समय में इस संबंध में और सोचने से भी चिन्ता बढ़ती है। हम इन पक्षों को यह सचेत करना चाहते हैं कि यदि उन्होंने भावुकता के प्रवाह में बह कर संतुलित सोच एवं संयम से काम न लिया तो पुन: यह प्रदेश ऐसी भट्ठी बना दिखाई देगा जिसका सेंक किसी न किसी प्रकार से आज के सभी पक्षों को इतना पहुंचेगा जिसकी अभी कल्पना नहीं की जा सकती।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द