100 करोड़ को टीकाकरण मुश्किल तो है मगर असंभव नहीं

अब जबकि दुनियाभर में तीसरी लहर के कभी भी आने और इसके ज्यादा दुष्प्रभावी होने का अंदेशा जताया जा रहा है, तब भारत को अपेक्षाकृत अधिक सावधानी बरतने के लिए तैयार रहना होगा। इसमें सबसे ज्यादा ज़रूरत टीकाकरण में तेज़ी लाने की होनी चाहिए। जितने अधिक लोगों को टीके लगेंगे, उतने ही वे सुरक्षित हो पाएंगे। दूसरी प्राथमिकता बेहतर इलाज की होनी चाहिए। इसमें अस्पतालों में समुचित आईसीयू, बैड, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और ज़रूरी इंजेक्शन का प्रबंध आता है। इसकी समीक्षा समय रहते हो जानी चाहिए। हम जितनी जल्दी, जितनी अधिक आबादी को टीका लगा पाएंगे, उतने इस संभावित लहर से निजात पाने में कामयाब हो जाएंगे। हम दिसम्बर 2021 तक देश में 100 करोड़ टीके लगाने की स्थिति में हैं।
यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब हर हालत में आगामी महीनों तक ढूंढ लिया जाना चाहिए,वरना फिर से जितने मुंह, उतनी बातें होंगी। सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने से बेहतर है कि या तो सांप के बिल को ही बंद कर दिया जाए या पहले ही लट्ठ फटकार दिया जाए कि सांप दूसरी तरफ  का रुख कर ले। गौरतलब है कि अगले साल कई राज्यों में चुनाव होना है, जिनके लिए तमाम राजनीतिक गतिविधियां इसी साल अगस्त-सितम्बर से शुरू हो जाएंगी। तब एक बार फिर से वैसी स्थिति बन सकती है, जैसे इस साल पांच राज्यों के चुनाव के चलते हुई थी। निश्चित रूप से अगले साल होने वाले चुनाव कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण हैं। मसलन ये चुनाव महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि इनमें एक राज्य उत्तर प्रदेश भी है,जो देश में हलचल मचा देता है। उ.प्र. सहित 7 राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। इन चुनावों के दौरान फिर तेज़ी से कोरोना वायरस फैल सकता है। इस तरह की किसी आशंका को पहले ही पूरी तरह से खत्म करने के लिए कमर कस ली जानी चाहिए। 
जहां तक कोविड से निपटने की हमारी तैयारी की मौजूदा स्थिति की बात है तो वह ऐसी नहीं है कि हम आसानी से मान सकें कि आगामी दिसम्बर माह तक 100 करोड़ लोगों को सहजता से टीके लगाये जा सकते हैं लेकिन यह असंभव भी नहीं है। 3 जून तक हम 22.11 करोड़ टीके लगा चुके थे। इनमें से 17.57 करोड़ को पहला डोज़ तो 4.54 करोड़ को दोनों डोज़ लगा चुके हैं। यह उपलब्धि गर्व करने लायक भले न हो, निराश भी नहीं पैदा करती है। यदि इसे आबादी के अनुपात में देखेंगे तो पहला डोज 12.54 प्रतिशत को व दोनों डोज़ महज 3.17 प्रतिशत आबादी को ही लगे हैं। बस, अब इस पर ही सबसे ज्यादा ध्यान देने की दरकार है। केंद्र सरकार इसे सर्वोच्च प्राथमिकता से लेती दिखाई तो दे रही है। निर्भर इस पर करेगा कि साल खत्म होने पर जब समीक्षा की जाएगी, तब हम कहां खड़े रहेंगे? जितनी मुस्तैदी इस अकेले काम में दिखाएंगे, उतने ही हम सुरक्षित हो पाएंगे।
सरकार अब टीकाकरण की रफ्तार भी बढ़ा रही है तो दूसरी तरफ विदेशी टीकों को मंजूरी देने और देश में स्थानीय और विदेशी कम्पनियों को उत्पादन की अनुमति देने में भी तेजी लाते दिखाई दे रही है। इसी सप्ताह सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की दो कम्पनियों इंडियन इम्यूनोलॉजीकल्स लिमिटेड और बिबकोल तथा महाराष्ट्र सरकार की इकाई हफ्फकीन बायो फार्मास्यूटिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड को भारत बायोटेक के साथ तकनीक देने के अनुबंध को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ सरकार ने तीनों कम्पनियों को वित्तीय सहायता देना भी स्वीकृत किया है। इसमें से इम्यूनोलॉजीकल्स सितम्बर 2021 से और हफ्फकिन व बिबकॉल नवम्बर 2021 से उत्पादन प्रारंभ कर देंगी। हफ्फकिन की क्षमता सालाना 22 करोड़ टीके के उत्पादन की है। इसी के साथ भारत सरकार के दवा नियामक औषधि महानियंत्रक ने विदेशी टीकों को भारत में आने के लिए अनेक छूट की घोषणा कर दी है। इससे फाईज़र और मॉडर्ना को भारत आने का रास्ता साफ  हो गया है। रूसी वैक्सीन स्पूतनिक का आयात तो प्रारम्भ हो ही चुका है। इसी के साथ अनेक भारतीय फार्मा कम्पनियों को भी तकनीक देने की प्रक्रिया जल्द ही पूरी होने जा रही ही। ऐसा जान पड़ता है कि भारत सरकार वर्ष के अंत तक 200 करोड़ डोज़ का लक्ष्य हासिल कर लेगी। यदि ऐसा हो पाता है तो भारत कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने में कामयाब हो सकेगा। वैसे भारत सरकार की कोशिश यह है कि अगले वर्ष वह अपनी ज़रूरत पूरी करने के साथ ही अन्य देशों को भी वैक्सीन की आपूर्ति करे। खासकर उन देशों को जो ज्यादा ज़रूरतमंद हैं।
इस समय भारत में रोज़ाना औसतन 25 लाख टीके लगाए जा रहे हैं। अभी दस करोड़ टीकों का उत्पादन हो रहा है। जुलाई में यह 16 करोड़ हो जाना है और उसके बाद हर महीने चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी का दावा है। हम यदि साल के अंत तक 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण कर लेते हैं तो काफी हद तक संक्रमण से सुरक्षित हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में हमें 97 करोड़ को एक डोज़ लगा लेना होगा और 32 करोड़ को दोनों डोज़ लग जाना चाहिए। यह हमारे देश में इतना आसान नहीं है, क्योंकि अभी भी गांवों में टीके लगाने वाले अमले पर हमले हो रहे हैं। लोग झाड़-फूंक करवाकर समझ रहे हैं कि वे कोरोना से जीत जाएंगे। इस मानसिकता के चलते भारत में शत प्रतिशत टीकाकरण तो संभव ही नहीं है। इसके साथ ही हमारे जीवन मेें कोरोना प्रोटोकॉल को विदा करने की हड़बड़ी भी रहती है। यदि मार्च 2022 तक हम अनुशासित बने रहे और टीकाकरण युद्ध स्तर पर होता रहा तो कोई कारण नहीं कि हम यह जंग न जीत पाएं।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर