श्यामा प्रसाद मुखर्जी—संयुक्त भारत के प्रबल समर्थक

मानवतावादी संस्कृति के प्रतीक के रूप में भारत की अनुकरणीय यात्रा की गाथा, इस पवित्र भूमि में जन्म लेने वाले महान व दूरदर्शी व्यक्तियों के विचारों को दर्शाती है। उत्तर आधुनिक युग में जब भारत का विचार आकार ले रहा था, तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अभियान, कार्यों व उनकी दृष्टि ने सही अर्थों में एक संयुक्त भारत के निर्माण के लिए राष्ट्रीय चेतना को बहुत प्रभावित किया। हम उनकी 120वीं जयंती मना रहे हैं। यह हम सभी और आने वाली पीढ़ी के लिए एक उपयुक्त क्षण की तरह लगता है, जब हम उनके ज्ञान को और अधिक सूक्ष्म रूप में समझ सकते हैं।   
ब्रिटिश काल में एक बंगाली परिवार में जन्मे डॉ. मुखर्जी ने अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के सामाजिक एवं आर्थिक परिणामों और भारतीय संस्कृति तथा अन्य अंतर्निहित मूल्यों पर इसके परिणामों को नज़दीक से देखा व समझा था। इन असाधारण परिस्थितियों और राष्ट्रीय चेतना जगाने के प्रति उनके दृढ़ संकल्प ने डॉ. मुखर्जी के जेहन में राष्ट्रवादी मूल्यों का संचार किया। शुरुआती दिनों से ही डॉ. मुखर्जी के पास भारत के संबंध में उच्चस्तरीय स्पष्टता थी और उन्होंने सभी मंचों पर इसके समर्थन में आवाज़ उठाई और सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करते हुए आम लोगों के बीच देशभक्ति की भावना पैदा की।  26 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य विश्वविद्यालय सम्मेलन में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। 33 वर्षीय श्यामा प्रसाद 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति बने। भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के कोर्ट तथा कौंसिल के सदस्य के रूप में भी उनका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा। उनके प्रशासन संबंधी नवोन्मेषी तरीकों ने ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण किया जो सोचने के तरीके को बदलने और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों की आगामी पीढ़ी की आकांक्षा को पूरा करने में सक्षम हो।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, संयुक्त भारत के निर्माण के लिए राष्ट्रवाद की भावना को लोगों तक पहुंचाने और अंग्रेज़ों द्वारा जान-बूझकर फैलाये गए साम्प्रदायिक विभाजन को एक संस्थागत ढांचे के माध्यम से खत्म करने के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने 1941-42 के दौरान बंगाल के पहले मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। वह 1940 में हिंदू महासभा की बंगाल इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष बने और 1944 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्होंने सहिष्णुता और साम्प्रदायिक सम्मान पर आधारित हिंदू मूल्यों पर सबसे अधिक ज़ोर दिया। बाद में उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिक और अलगाववादी एजेंडे का मुकाबला करने की आवश्यकता महसूस की। 
डॉ. भीमराव अम्बेडकर और डॉ. एस.पी. मुखर्जी के कार्यों व विचारों में विशेषकर स्वतंत्र राष्ट्र की एकता और संप्रभुता की रक्षा के सन्दर्भ में समानता और तारतम्यता दिखाई पड़ती है। दोनों महान राजनेताओं ने योजना-निर्माण के प्रारंभिक चरणों से ही तात्कालीन सरकार की गलत आकलन पर आधारित नीतियों का विरोध किया। इन नीतियों के कारण स्वतंत्र भारत के राष्ट्रवादी प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई। राष्ट्रीय अखंडता के मुद्दों पर मतभेद होने के कारण दोनों गैर-कांग्रेसी कैबिनेट सहयोगियों ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस मतभेद का नेतृत्व डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते से ठीक पहले कैबिनेट को छोड़कर किया। उन्होंने स्वयं को शरणार्थियों के लिए समर्पित कर दिया और शरणार्थियों के राहत तथा पुनर्वास के लिए व्यापक दौरे किए।  बाद में उन्होंने 21 अक्तूबर, 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो अब भारतीय जनता पार्टी के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, धार्मिक रूप से उत्पीड़ित अवैध प्रवासियों जिनमें पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं, के लिए  ‘अधिकार और राहत प्रदान करने वाले’ एक कानून के रूप में उभरा।
जम्मू और कश्मीर पर दोनों राजनेताओं के स्पष्ट और सुसंगत विचार दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि दोनों ने भारत की संप्रभुता के लिए कोई समझौता न करने वाले रुख की वकालत की। 1951-52 में पहले आम चुनाव के दौरान प्रजा परिषद और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में राजनीतिक दल  जनसंघ ने डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की उन बातों का समर्थन किया, जिनमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने तथा राज्य को पूरी तरह से भारत के संविधान के अंतर्गत लाने संबंधी विचार रखे गए थे। यह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और मास्टर तारा सिंह के संघर्ष का ही परिणाम था कि आधा पंजाब और बंगाल भारत का अभिन्न अंग बना रहा।
राष्ट्रीय एकता के लिए डॉ. मुखर्जी शहीद हो गए। उनका नारा ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगा’ ने लाखों राष्ट्रवादियों के दिल, दिमाग और आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ी। राष्ट्र की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान उनकी देशभक्ति की भावना, राष्ट्रवादी चेतना को लगातार प्रज्ज्वलित करती रही जिसके परिणामस्वरूप मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया। डॉ. मुखर्जी का दृष्टिकोण मोदी सरकार के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश-पुंज के समान है। 
(केंद्रीय संसदीय कार्य, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री)