केन्द्र का पंजाब विरोधी एक और निर्णय

केन्द्र सरकार की ओर से भाखड़ा-ब्यास प्रबन्ध बोर्ड में पंजाब की अनिवार्य मौजूदगी एवं प्रतिनिधित्व को खत्म कर देने के निर्णय से एक ओर जहां केन्द्र की भाजपा नीत सरकार की ओर से पंजाब के प्रति अपनाये जाते भेदभावपूर्ण नीति-व्यवहार का पता चलता है, वहीं इससे देश के संघीय ढांचे में केन्द्र एवं राज्यों के बीच संबंधों की गरिमा भी प्रभावित होते प्रतीत होती है। इस मामले में यह बात और भी चिन्ताजनक हो जाती है कि यह निर्णय नितांत एकपक्षीय रूप से लिया गया है, और कि केन्द्र सरकार की ओर से पंजाब के किसी भी पक्ष के साथ इस सन्दर्भ में कोई बातचीत अथवा परामर्श नहीं किया गया। यह मुद्दा इसलिए भी गहन चिन्तना का विषय हो जाता है कि विशेषज्ञों की ओर से यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस फैसले से जहां पंजाब और पंजाबियों के हित प्रभावित होंगे, वहीं भविष्य में केन्द्र के साथ अन्य राज्यों के संबंध  भी विपरीत रूप से प्रभावित होंगे। यह भी एक अहम बात है कि भाखड़ा बांध से उपजने वाली बिजली और पानी पर नीतिगत रूप से पंजाब का अधिकार रहा है। भाखड़ा-ब्यास प्रबन्ध बोर्ड के अधिकतर बड़े पदों पर पंजाब और हरियाणा का वर्चस्व रहा है, किन्तु इस नये परिवर्तन के बाद बोर्ड के उच्च पदों पर नियुक्ति हेतु पंजाब से बाहरी राज्यों के अधिकारियों की भी नियुक्ति की जा सकती है। इससे पंजाब और हरियाणा के विशाल हित विपरीत रूप से प्रभावित होंगे। अब तक के अतीत के अनुसार बोर्ड के सिंचाई एवं बिजली आपूर्ति सदस्यों की नियुक्ति प्राय: पंजाब और हरियाणा से ही होती रही है। नये नियमों के अनुसार जहां बोर्ड की कार्य-प्रणाली प्रभावित होगी, वहीं इन दोनों राज्यों के कृषि, सिंचाई, पानी और बिजली के हितों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। देश में सिंचाई के बढ़ते साधनों एवं नहरों का जाल बिछने के बावजूद पंजाब एवं हरियाणा की कृषि सिंचाई भाखड़ा बांध की उपयोगिता पर ही बहुत अधिक निर्भर रहती है।
केन्द्र सरकार के इस फैसले से पंजाब और हरियाणा की कृषि पर तो प्रभाव पड़ेगा ही, केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों के हितों को छीनने की एक नई प्रथा की भी शुरुआत होगी। स्थितियों की इस गम्भीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि पंजाब के राजनीतिक एवं सामाजिक धरातल पर इसके विरुद्ध आवाज़ें उठना भी शुरू हो गई हैं। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने केन्द्र सरकार के इस निर्णय को एक सुनियोजित ढंग से पंजाब के हितों और अधिकारों को छीने जाने की प्रक्रिया करार दिया है। उन्होंने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए यह भी कहा कि केन्द्र सरकार, इससे पूर्व भी चंडीगढ़ के मुद्दे पर पंजाब के साथ अन्यायपूर्ण एवं भेदभावपूर्ण व्यवहार कर चुकी है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने भी केन्द्र सरकार की इस कार्रवाई को पंजाब प्रदेश एवं यहां के लोगों के हितों एवं अधिकारों पर प्रत्यक्ष प्रहार करार दिया है। आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रदेश के अध्यक्ष भगवंत मान ने इस निर्णय को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि यह निर्णय देश के संघीय ढांचे को कमज़ोर करने हेतु प्रत्यक्ष प्रहार है। इससे भाखड़ा-ब्यास प्रबन्धन ढांचे में पंजाब की स्थिति कमज़ोर होगी, और कि इससे देश को खाद्यान्न के मोर्चे पर आत्म-निर्भर बनाने वाले पंजाब राज्य की कृषि एवं कृषि उत्पादन भी प्रभावित होंगे। उन्होंने इस निर्णय को स्पष्ट रूप से केन्द्र सरकार का पंजाब-विरोधी रुख करार दिया।
हम समझते हैं कि नि:सन्देह केन्द्र सरकार की ओर से पंजाब के प्रति इस प्रकार के निर्णय प्रदेश के साथ सौतेली मां जैसे व्यवहार के समान हैं। चंडीगढ़ के पंजाब का हिस्सा होने के बावजूद, उसे प्रदेश से अलग कर देने की साज़िशों की कहानी बहुत लम्बी है। अब भाखड़ा-ब्यास प्रबन्ध बोर्ड में से पंजाब के अनिवार्य प्रतिनिधित्व को खत्म करने का अन्तिम लक्ष्य भी इस महत्त्वपूर्ण कृषि इकाई को पंजाब से छीन लेना ही समझा जा सकता है। भाखड़ा बांध का निर्माण पंजाब एवं हरियाणा जो उस समय वृहत्तर पंजाब का ही हिस्सा था, की कृषि को उन्नत करने के लिए किया गया था। भाखड़ा-ब्यास प्रबन्धन बोर्ड पंजाब की धरती से गुज़रने वाली दो बड़ी नदियों सतलुज और ब्यास के पानियों एवं इससे उत्पन्न की जाने वाली बिजली पर नियंत्रण रखता है। इससे पूर्व इसका सम्पूर्ण अधिकार क्षेत्र पंजाब के हाथों में रहा है, किन्तु अब नये फैसले से इसके दो अहम सदस्य-पदों बिजली और सिंचाई पर बाहरी राज्यों को सौंप दिये जाने से पंजाब के अधिकार स्वत: शून्य हो जाएंगे। पंजाब प्रदेश बिजली बोर्ड की इंजीनियर्स एसोसिएशन द्वारा इस सन्दर्भ में पंजाब के मुख्य सचिव को लिखे गये पत्र से भी पंजाब के हितों के साथ हो रहे इस खिलवाड़ की गम्भीरता का पता चल जाता है।
हम समझते हैं कि भारत एक ओर जहां विश्व का महानतम लोकतांत्रिक देश है, वहीं इसका संघीय गणतांत्रिक ढांचा भी विश्व भर में एक अनुपम उदाहरण है। इस हेतु केन्द्र सरकार और इसके राज्यों की सरकारों के बीच एक निर्धारित प्रक्रिया के अन्तर्गत संबंधों को सूचिबद्ध किया गया है। यह ढांचा विगत सात दशकों से विधिपूर्वक संचालित किया जाता आ रहा है, किन्तु विगत कुछ वर्षों से इस नियम-प्रक्रिया से छेड़छाड़ की जाने लगी है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण भाखड़ा-ब्यास प्रबन्धन बोर्ड की पंजाब आधारित इकाइयों पर इसके आधारभूत अधिकार से इसे वंचित कर देने के केन्द्र सरकार के निर्णय से मिल जाता है। हम समझते हैं कि एक ओर केन्द्र सरकार को जहां ऐसे एकाधिकारवादी निर्णयों से बचना चाहिए, वहीं खास तौर पर पंजाब के साथ हो रहे इस भेदभावपूर्ण व्यवहार को रोक कर उसे उसके विधि-सम्मत अधिकार लौटाये जाने चाहिएं। इस हेतु केन्द्र को न केवल इस एकपक्षीय निर्णय को वापिस लेना चाहिए, अपितु देश के अन्न भंडार को भरने वाले पंजाब को अतिरिक्त अधिकारों से सम्पन्न किया जाना चाहिए। इससे केन्द्र सरकार पर राज्यों के साथ संबंधों के धरातल पर एकपक्षीय रवैया अपनाने जैसे आरोपों की गम्भीरता भी कम होगी।