यूक्रेन से आए मेहमानों की यह कैसी हाज़िर-जवाबी !

मुझे कतई हैरत और अफसोस नहीं हुआ, जब यूक्रेन से लौटे कुछ बहादुर छात्रों ने फरमाया कि सरकार ने उन्हें वापस अपने मुल्क लाकर कोई अहसान नहीं किया। उनके शब्दों पर अगर गौर करें तो वे कह रहे हैं कि सरकार हमें लाने को इवेक्यूट (खतरे वाले स्थान से निकाल कर लाना) करना प्रचारित कर रही है, जो उचित नहीं है, क्योंकि हमें तो पड़ोसी देशों से लाया गया है। सोशल मीडिया पर प्रसारित एक न्यूज़ चैनल के लोगों वाले माइक पर यह छात्रा बड़ी बेरुखी से ऐसा कह रही है। सही है, सरकार ने तो उन्हें सोने की खदान ढूंढने भेजा था, अब नहीं मिली तो क्या करें बेचारे! तरस भी आता है और गुस्सा भी, लेकिन कोई फायदा नहीं, क्योंकि यही तो भारतीय चरित्र बनता जा रहा है। यहां रहो,यहां से धन-सम्पदा-प्रतिष्ठा अर्जित करो और जब मौका मिले, तब कभी कॅरियर के लिये, कभी धनार्जन के लिये, कभी आतंक फैलाने के लिये तो कभी हमारे बैंकों को लूटकर विदेशी जमीन पर बसने के लिए चले जाओ और वहां का सब मीठा-मीठा हमारा और कड़वा-कड़वा थू करने लगो।
इस समय सोशल मीडिया पर यूक्त्रेन संबंधी वीडियो, पोस्ट, किस्से-कहानियां, घटनाएं बिखरी पड़ी हैं। पूरी दुनिया देख रही है कि जिस तत्परता और हिकमत से भारत सरकार ने कूटनीतिक तौरपर अपने देशवासियों को निकालने का अभियान चलाया, वैसा दूसरे देश नहीं कर पाये। चीन ने तो बाकायदा अपने लोगों से टिकट के पैसे वसूले, फिर लेकर आया। लेकिन कुछ भारतीय छात्रों का रवैया बेहद अजीब सामने आ रहा है। उनमें देश प्रेम और अपनी सरकार के प्रति कृतज्ञता तो दूर, शिष्टता तक की कमी नज़र आई है। एक वीडियो सामने आया है जिसमें आधी रात को एक विमान शायद चैन्नई आया है, जहां एक केंद्रीय मंत्री छात्रों की अगवानी कर रहे हैं, किंतु उनमें से ज्यादातर उनकी तरफ  देखे बिना दरवाज़े से बाहर निकल रहे हैं। वे हल्की सी मुस्कराहट तक नहीं बिखेर रहे, न नमस्ते का जवाब दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे वे किसी शादी के बाराती हों, जिनका स्वागत घर के दरवाज़े पर दुल्हन का पिता कर रहा हो। शर्मनाक है इन नौनिहालों की यह हरकत। इस संस्कारहीनता ने हमारा सिर नीचे किया है।
एक छात्रा कह रही है कि भारतीय दूतावास में उनसे शौचालय की सफाई करवाई गई, फिर विमान में बैठने दिया गया। तो इसमें क्या कहर ढा दिया? इक्का-दुक्का शौचालय वाले किसी कार्यालय भवन में आप हजार-पांच सौ लोग रुके हैं, युद्ध काल है, कर्मचारी तो ठीक, परिंदे भी नहीं फड़फड़ा रहे। फिर भी आपको शरण दी गई है। अतिरिक्त दबाव के चलते गंदगी मची है। यह गंदगी आपकी भी है तो साफ  कर देना कौन-सा जुल्म हो गया? क्या आप जहां विदेश में पढ़ने गये हैं, वहां खुद का शौचालय साफ  नहीं करते? क्या अपने घरों पर सफाई नहीं की कभी? क्या आपसे यह कह दिया गया था कि आप तो दिशा-मैदान के लिये चले जायें, क्योंकि सफ ाई की व्यवस्था नहीं है? युद्ध काल में तो वह भी जायज़ है।
सोशल मीडिया पर ही चटखारे लेकर एक पोस्ट चल रही है कि पूर्व थल सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह जिस दल को लेकर लौट रहे थे, उसमें उन्होंने भारत माता की जय के नारे लगवाये तो लग गये, किंतु नरेंद्र मोदी ज़िंदाबाद के वक्त ज्यादातर चुप रहे। क्या अपने प्रधानमंत्री के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना इतना नागवार लगता है आपको? समझा जा सकता है कि ऐसे बच्चे अपने अभिभावकों के प्रति क्या भावनाएं रखते होंगे और बुजुर्गों के प्रति उनके मन में कितना सम्मान रहता होगा। इस मसले को तो कुछ मीडिया संस्थानों ने भी खूब चटनी लगाकर पेश किया। कुछ छात्रों ने भारत आ जाने के बाद अपने गांव, शहर तक न छोड़ने के लिये भी सरकार को कोस दिया।
मुझे लगता है, ये सारे वाक्यात बताते हैं कि आज भी हमारे मुल्क के लोगों में देश के प्रति लगाव अपेक्षाकृत कम है। हम छोटे-छोटे देशों के ऐसे अनगिनत मसले देखते हैं, जिनमें वे राष्ट्र की अस्मिता से जुड़े तमाम पहलुओं पर बेहद संजीदा रुख रखते हैं और तमाम असहमतियों के बावजूद सरकार के साथ खड़े नज़र आते हैं। ऐसे ही किसी मौके पर हममें राष्ट्रीयता प्रदर्शित करने का कतई उत्साह क्यों नहीं रहता। उल्टे सरकार को आड़े हाथों लेकर हम यह जताते हैं कि देखिये, हम सरकार के पिट्ठू नही हैं। जो लोग अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिये विदेश भेजते हैं, वो देश सेवा के लिये तो कतई नहीं होता। न तो वे लौटकर मुफ्त जनसेवा करते हैं, न विदेश में बसने के बाद देश का कर्ज चुकाने की ज़ेहमत उठाते हैं। उसके बाद भी इनके मिज़ाज देखकर तकलीफ  होती है।
यूक्त्रेन त्रासदी से वहां फंसे छात्रों को उबारने में भारत सरकार ने जो किया, वो उसने अपनी सन्तानों के हित में और अपने राष्ट्रधर्म के तौर पर किया और बदले में किसी से उसे कुछ चाहिये भी नहीं, लेकिन इतना याद रखिये, संकट के हर ऐसे दौर में आपके लिये दौड़ पड़ने वाली सरकार देश में  हमेशा हो, ज़रूरी नहीं। फिर, इस मुश्किल घड़ी ने भारतीयों के चरित्र की कुछ वैसी परतें उजागर कर दीं,जो अरसे से परदे में थीं। दुख तो इस बात का है कि इसने हमारी वर्तमान पीढ़ी की वो कलई खोल दी, जो संकेत दे रही है कि संस्कार, शिष्टाचार, सदाशयता से कुछ लोग कितनी दूर हो रहे हैं। इसके लिये ऐसे बच्चों के अभिभावक भी कम जवाबदार नहीं, क्योंकि किसी एक ने भी उसी सोशल मीडिया पर आकर अपने बच्चे को लताड़ नहीं लगाई और देश से माफी नहीं मांगी। आज आपके बच्चे की उद्दंडता कल यदि आपके साथ घटित होगी, तब तक काफी देर हो चुकी होगी।
यूक्रेन  से लौटे देश के कतिपय होनहारों ने चार दिन में ही एहसान-फरामोशी की हद को समझा दिया। चंद घंटों पहले जान के लाले पड़ने से जिनकी हड्डी तक बज रही थी, वे भारत सरकार द्वारा लौटा लाने के बाद फरमा रहे हैं कि इसमें सरकार ने उन पर कौन-सा अहसान कर दिया।      
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर