घुटनों का दर्द आयुर्वेदिक उपचार

आस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों की बीमारी है जिसे हम जोड़ों का दर्द या संधिवान कह सकते हैं। जोड़ों के दर्द के इलाज के पहले आवश्यक है हम जोड़ या संधि के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करें।
आस्टियोआर्थराइटिस के कारण:- किन्हीं कारणों से लिगामेंटस, कार्टिलेज और मेनिस्कस में विकृति होने पर व्यक्ति को जोड़ में दर्द, सूजन व अकड़न होती है जिनके कारण निम्नलिखित हैं।
1. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे कार्टिलेज का प्राकृत स्राव कम होकर चिकनाई की कमतरता से जोड़ घिसने लगते हैं। इसी विकृति को आस्टियोआर्थराइटिस कहते हैं। 2. आघात 3. मोटापा: शरीर का वजन बढ़ने से जोड़ पर ज्यादा दबाव पड़कर कार्टिलेज घिसने के फलस्वरूप वेदना होती है। 4. गलत उठने-बैठने की आदतों से आस्टियोआर्थराइटिस की संभावना होती है। 5. शरीर में विषैले पदार्थों के संचय से जोड़ खराब होने की संभावना होती है जैसे शरीर में यूरिक एसिड, कोलेस्ट्राल, शुगर, वात प्रकोप से। 6. व्यायाम न करना व ज्यादा समय तक लगातार खड़े रहना। 7. भोजन में विटामिन ए, डी व पौष्टिक पदार्थों की कमी से। 8. वृद्धावस्था में जोड़ों की कमजोरी के कारण। आयुर्वेदानुसार इसे जानुशूल कहा है। इसमें वात दोष की प्रधानता कही है। इसका कारण वातवर्धक आहार-विहार कहा है। य
घुटनों के दर्द के लक्षण
 इसमें मुख्यत: घुटने में तीव्र दर्द, उठने-बैठने चलने में वेदना की अनुभूति, जकड़न, कठोरता, जड़ता, एक प्रकार का खिंचाव आता है। सबसे मुख्य लक्षण घुटने में सूजन होता है। हाथ का स्पर्श भी असहनीय, कभी-कभी चलते व उठते समय घुटने से कट-कट आवाज भी आती है।
इस तरह कुल मिलाकर मामूली सा दिखने वाला घुटने का दर्द मनुष्य के दैनिक कार्यों में काफी अड़चन पैदा करता है। मनुष्य विवश हो जाता है। एक बार जमीन में बैठने पर उठने में असमर्थ होता है। घुटना मोड़ने में तकलीफ होती है। इस रोग के उग्र रूप धारण करने पर रोगी को जलन भी महसूस होती है, नींद न आना, दर्द की वजह से तनावग्रस्त होना, लंगड़ाकर चलना, पैरों में कमजोरी महसूस होना, पालथी मारकर बैठने में रोगी असमर्थ होता है।
कभी-कभी लम्बर स्पांडिलाइटिस के रुग्ण में भी घुटनों का दर्द होता है। इसमें चिकित्सक व रुग्णों को संदेह होता है कि जानुगत आस्टियोआर्थराइटिस है परंतु लम्बर स्पांडिलाइटिस में इसके साथ कमरदर्द, खिंचाव, भारीपन इत्यादि लक्षण मिलते हैं।
चिकित्सा:- घुटने के दर्द या आस्टियोआर्थराइटिस की चिकित्सा करते समय मुख्यत: स्थानिक चिकित्सा की जाती है। स्थानिक चिकित्सा में जिस घुटने में दर्द है, उस घुटने की नित्य सुबह-शाम  तेल की हल्के हाथ से  15-2० मिनट मालिश करके गर्म पानी की थैली से करना चाहिए। औषधियों से आराम न होने पर रोगी को ऑपरेशन की सलाह दी जाती हैं परंतु यह गारंटी नहीं रहती  । इस तरह के ऑपरेशन के पश्चात रोगी को जमीन पर न बैठने की सलाह दी जाती है और ऐसे में यदि मरीज ने बात न मानी तो दुबारा ऑपरेशन करवाना पड़ता है। 
आखिर रोगी कब तक ऑपरेशन करवाएगा। इससे बेहतर है खान-पान पर नियंत्रण, नियमित व्यायाम, औषधि, नेचरोपैथी व पंचकर्म से धीरे-धीरे इस तकलीफ से छुटकारा पाया जाए।                        

  (स्वास्थ्य दर्पण)