गेहूं का उत्पादन कम होने से गांवों का चेहरा उदास

मार्च में पड़ी गर्मी तथा जनवरी में हुई बेमौसमी बारिश के कारण गेहूं  के उत्पादन में बड़ी गिरावट आई है। इससे गावों की आर्थिकता डावांडोल हो गई है। क्या किसान, क्या भूमिहीन कृषक एवं खेत मज़दूर, क्या दुकानदार एवं रेहड़ियों पर सामान बेच कर जीवन यापन करने वाले, सभी गेहूं का उत्पादन कम होने का बुरी तरह शिकार हुये हैं। गेहूं एक ऐसी फसल है जिसकी प्रत्येक किसान बिजाई करता है तथा प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से इस पर निर्भर है। 
आम किसानों तथा किसान नेताओं का कहना है कि उत्पादन 20 से 25 प्रतिशत तक कम हुआ है। अब तक किये गए क्राप कटिंग एक्सपैरिमैंटों के आधार पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने 2 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन कम होने का ही अनुमान ही लगाया है। आई.सी.ए.आर-भारतीय कृषि खोज संस्थान ने निदेशक तथा उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार समूचे तौर पर कुल मिला कर लगभग 12 प्रतिशत तक गेहूं का उत्पादन कम हुआ है। इस प्रतिनिधि द्वारा किये गए सर्वेक्षण तथा किसानों से की गई बातचीत से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्पादन में 12 से 15 प्रतिशत तक की कमी आएगी। पंजाब सरकार ने 177 लाख टन गेहूं का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा था। यह अब लगभग 150 लाख टन पर रहता दिखाई दे रहा है। चाहे अब तक मंडियों में गेहूं की आमद संतोषजनक है, परन्तु आखिरी सांसों पर है क्योंकि कटाई का कार्य पूरा होने वाला है। हरियाणा सरकार ने 124 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा था। अब 105 लाख टन के आसपास गेहूं के उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है। गेहूं की सरकारी खरीद भी पंजाब में 135 लाख टन से काफी कम हो जाएगी। हरियाणा में भी सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो रहा। हरियाणा में 50-55 लाख टन सरकारी खरीद का अनुमान है। काफी रकबा सरसों की काश्त अधीन जाने के कारण भी गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है। 
इस बार रूस एवं यूक्रेन के मध्य युद्ध होने के कारण दूसरे देशों जैसे मिस्र, तुर्की, फिलपाइन तथा कुछ अफ्रीकन देशों से भारत की गेहूं की मांग बढ़ रही है। निर्यात करने के लिए निजी व्यापारी भी मंडियों में से गेहूं का समर्थन मूल्य 2015 रुपये प्रति क्ंिवटल से कुछ अधिक देकर मंडियों से गेहूं खरीद रहे हैं, परन्तु पंजाब के किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं हो रहा क्योंकि पंजाब में मंडी फीसें सभी राज्यों से अधिक हैं। ये 8.5 प्रतिशत हैं (3 प्रतिशत ग्रामीण विकास फंड, 3 प्रतिशत मार्किट फीस तथा 2.5 प्रतिशत आढ़त) जबकि हरियाणा में 6.5 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 1.7 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 3 प्रतिशत तथा राजस्थान में 3.25 प्रतिशत हैं। गत वर्षों में तो निजी व्यापारी नाममात्र ही गेहूं खरीदते रहे हैं। गत 8 वर्षों में व्यापारियों द्वारा सबसे अधिक गेहूं की मात्रा इस वर्ष खरीदी गई है। चाहे सरकारी खरीद कीमम पर ऐसे ही मामूली उत्साह देकर खरीद की गई हो। इससे सरकारी खरीद में और भी कमी आ गई तथा खरीद की मात्रा कम हो गई।
इसके अतिरिक्त किसानों को तूड़ी में भी बड़ा घाटा पड़ा रहा है। गत वर्षों में एक एकड़ खेत में से 3 ट्रालियां तूड़ी निकलती थीं। इस वर्ष डेढ़ ट्राली मुश्किल से ही निकल रही है। जो किसान पशु पालन का कार्य करते हैं, उन्हें अपने पशुओं के लिए भी तूड़ी उपलब्ध नहीं हो रही। वह खड़ी मक्की के खेत खरीद रहे हैं ताकि वह उसका अचार डाल लें। खड़ी मक्की का प्रति एकड़ 35000 रुपये तक चला गया है जो पहले 25000 प्रति एकड़ होता था। तूड़ी की राजस्थान तथा हरियाणा की गौशालाओं के लिए भी बड़ी मांग आ ही है। उन राज्यों में तूड़ी की बड़ी कमी हो गई है।
किसान बड़ी मुश्किल में हैं। आत्महत्याओं की ओर रूझान देखा जा रहा है। किसान बैंक के कज़र् तथा आढ़तियों से ली राशि भी लौटाने में समर्थ नहीं। परिणामस्वरूप बैंक तथा आढ़ती उन्हें खरीफ की फसल या घरेलू ज़रूरतों के लिए कज़र् नहीं दे रहे। उन्हें खरीफ की फसल के खर्च के लिए डीज़ल, खाद, बीज तथा मशीनरी की बढ़ी कीमतों के कारण अधिक खर्च करना पड़ रही है। कज़र् माफी संबंधी किये गए सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब का किसान दूसरे सभी राज्यों से जिनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं, से अधिक कज़र् लेता है। औसतन प्रत्येक किसान द्वारा 3.4 लाख रुपये वार्षिक कज़र् के रूप में लिये जा रहे हैं। सर्वेक्षण में यह भी प्रत्यक्ष हुआ है कि किसान बैकों तथा सहकारी सभाओं के निजी एजैंसियों के मुकाबले अधिक डिफाल्टर हैं।
जिन भूमिहीन किसानों ने ज़मीनें ठेके पर लेकर बहाई की है, वे और भी मुश्किल में हैं। उत्पादन कम होने के कारण आय तथा बट्टत कम हो गई है परन्तु उन्हें ठेका उतने ही 55000 से 60000 रुपये प्रति एकड़ देना पड़ रहा है। मंडियों में जो प्रवासी खेत मज़दूर बिहार तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से काम करने के लिए आते थे, वह और भी परेशान हैं क्योंकि सीज़न का कार्य एक महीने की बजाय 15-20 दिन का रह गया है। उन्हें 15-20 हज़ार रुपये की कमाई होती है, जिसमें से वे कुछ खाने-पीने पर खर्च कर देते हैं तथा मुश्किल से 6000-7000 रुपये बचते हैं। जिसमें से वापस जाने का किराया भी देना होता है। पटियाला अनाज मंडी की आढ़ती एसोसिएशन के कर्याकर्ता हरबंस लाल ने मांग की है कि जो पंजाब राज्य मंडी बोर्ड ने मंडियों में मज़दूरी का 1.73 पैसे कट्टा (50 किलों का थैला) तय किया है, वह बहुत कम है, उसे बढ़ा कर 3 रुपये प्रति कट्टा जो मंडी तथा मज़दूरी का आम रेट है, किया जाए। मंडियों में गेहूं की चुकाई (लिफ्ंिटग) न होने का यही कारण है कि लेबर का रेट कम होने के कारण आवश्यक लेबर उपलब्ध नहीं होती। 
गांवों में जो छोटे-छोटे दुकानदार हैं या रेहड़ियों पर फेरियां लगा कर सामान बेच कर अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, उनकी बिक्री में भी कमी आई है। गेहूं के कम हुए उत्पादन से उनकी रोज़ी-रोटी भी प्रभावित हुई है। सही अर्थों में गांवों की आर्थिकता ही बुरी तरह प्रभावित हुई है।