पंजाब के किसान कीमत बढ़ने के लाभ से रहे वंचित गेहूं का झाड़ कम होने में क्षेत्रीय अंतर क्यों ?

मार्च में तापमान बढ़ने तथा जनवरी में हुई बेमौसमी बारिश के कारण गेहूं की उत्पादिकता कम होने के बिभिन्न एजेंसियों द्वारा अलग-अलग अनुमान लगाए गए हैं। आम किसान 20-25 प्रतिशत तक झाड़ कम होने की बात करते हैं। आईसीएआर-आईएआरआई के डायरैक्टर तथा उप-कुलपति द्वारा समूचे तौर पर कुल मिला कर लगभग 12 प्रतिशत झाड़ कम होने के अनुमान लगाया गया है। किसान नेता तथा संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य 20 प्रतिशत तक झाड़ के कम होने बारे बता रहे हैं। कृषि तथा किसान भलाई विभाग में जो अब तक क्राप कटिंग एक्सपैरीमैंट आए हैं, उनके विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि उत्पादकता में 2.57 क्ंिवटल प्रति एकड़ की कमी आई है। विभिन्न स्थानों पर किये गये तजुर्बों के आधार पर गेहूं का औसत झाड़ पटियाला ज़िला में 15.56 क्ंिवटल प्रति एकड़ रहा, रोपड़ ज़िले में 14.63 क्ंिवटल प्रति एकड़ झाड़ आया। 
मुक्तसर अमृतसर, बठिंडा, बरनाला तथा फिरोज़पुर आदि ज़िलों में 18 क्ंिवटल प्रति एकड़ उतपादकता आई है। इन तजुर्बों से फरीदकोट ज़िले में सभी स्थानों से अधिक झाड़ की उम्मीद की गई जो 18.4 क्ंिवटल प्रति एकड़ आता है। पंजाब में कहीं भी 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ से अधिक उत्पादकता नहीं आई। गत वर्ष राज्य का औसत झाड़ 20.60 क्ंिवटल प्रति एकड़ रहा था। उत्पादकता का यह अंतर किसानों के मध्य कृषि ज्ञान तथा विज्ञान का कम-अधिक स्तर पर अपनाया जाना है। उत्पादकता अधिक झाड़ देने वाली संशोधित किस्मों के बीच, प्रभावशाली कीटनाशक, ज़मीन परख के आधार पर खादों का इस्तेमाल तथा समय पर फसल संबंधी प्रत्येक आप्रेशन करने पर आधारित है। व्यवहारिक तौर पर एक ही ज़िले के बिभिन्न ब्लाकों में भी उत्पादिकता अलग-अलग है। यही नहीं ब्लाक के गांवों की उत्पादकता में भी अंतर है। एक ही गांव के किसान भी अलग-अलग झाड़ प्राप्त कर रहे हैं। कृषि प्रसार सेवा प्रत्येक स्थान पर न पहुंचने तथा प्रत्येक किसान को उपलब्ध न होने के कारण भी यह अंतर है। 
यूक्रेन एवं रूस कई देशों को गेहूं उपलब्ध करते थे। व्यापारी अब भारत के गेहूं पैदा करने वाले राज्यों से निर्यात करने हेतु गेहूं खरीद रहे हैं। वे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से 2025 रुपये प्रति क्ंिवटल की एमएसपी से 200-300 रुपये प्रति क्ंिवटल तक अधिक देकर वहां के किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं। परन्तु पंजाब में उनकी खरीद नहीं। पंजाब में चाहे गत वर्षों से अधिक निजी व्यापारियों ने 5 लाख टन से भी अधिक गेहूं खरीदी है परन्तु 5-10 रुपये प्रति क्ंिवटल एमएसपी से अधिक देकर। पंजाब में जिन निजी व्यापारियों ने मंडियों में गेहूं की खरीद की है, वह मुख्य तौर पर चक्कियों पर आटा, मैदा मिलों ने खरीदी है क्योंकि चक्कियों तथा आटा, मैदा मिल वालों को मंडियों में मार्किट फीस जो 6 प्रतिशत है (ग्रामीण विकास फंड 3 प्रतिशत तथा मार्किट फीस 3 प्रतिशत), देनी नहीं पड़ती क्योंकि वह उपभोक्ताओं को आटे की आपूर्ति करने के लिए गेहूं की खरीद करते हैं। बाहरी व्यापारियों को 8.5 प्रतिशत (2.5 प्रतिशत आढ़त मिला कर) टैक्स देने पड़ते हैं जो दूसरे राज्यों में बहुत कम हैं। पंजाब के किसानों को इस प्रकार नुकसान हुआ है, क्योंकि उन्हें लगभग एमएसपी 2025 रुपये क्ंिवटल पर ही अपनी गेहूं बेचनी पड़ी है। जो इस वर्ष सरकारी खरीद का 132 लाख टन (जिसे बढ़ा कर 135 लाख टन कर दिया गया था) का लक्ष्य रखा गया है, उसके पूरा होने की कोई सम्भावना नहीं। लगाये गये अनुमान के अनुसार यह प्राप्ति 100 लाख टन से अधिक होती नज़र नहीं आ रही। 
पंजाब में सर्व-भातयीय फसलों की किस्मों तथा स्तरों का निरीक्षण करने वाली कमेटी द्वारा जो गेहूं की किस्में नोटिफाई की गई हैं, उनमें मुख्य तौर पर एचडी-3086, एचडी-2967, एचडी-3226, डीबीडब्ल्यू-187, डीबीडब्ल्यू-222, डब्ल्यूएच-1105, पीबीडब्ल्यू-343 किस्मों की काश्त की  गई है। इसके अतिरिक्त पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा जो पीबीडब्ल्यू-869, पीबीडब्ल्यू-824, पीबीडब्ल्यू-803, पीबीडब्ल्यू 1 ज़िंक किस्मों की सिफारिश की गई है, उनकी भी थोड़े-थोड़ रकबे में बिजाई की गई है। ये सभी किस्में मार्च में पड़ी गर्मी का शिकार हुई हैं तथा इनका झाड़ कम हुआ है परन्तु एचडी-2967 ऐसी किस्म है जिस पर गर्मी का प्रभाव बहुत कम हुआ है। फतेहगढ़ साहिब ज़िले के खमाणो गांव का बलबीर सिंह कहता है कि उसने गेहूं की अन्य किस्मों के साथ एचडी-2967 किस्म की भी बिजाई की थी। इस किस्म का झाड़ मामूली ही घटा है जबकि अन्य किस्मों के झाड़ में व्यापक स्तर पर गिरावट आई है। 
एचडी-2967 किस्म आईसीएआर-आईएआरआई नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई थी जिसे सर्व-भारतीय फसलों की किस्मों तथा स्तरों की स्वीकृति देने वाली कमेटी ने सन् 2014 में किसानों को काश्त के लिए स्वीकृति देकर रिलीज़ किया था। पंजाब तथा हरियाणा में पांच वर्ष 2019 तक लगभग 70 प्रतिशत रकबे पर यही किस्म एचडी-3086 किस्म  से साथ बीजी जाती रही। सन् 2019 के बाद इसकी काश्त अधीन काफी रकबा कम हो गया क्योंकि यह पीली कुंगी का शिकार हो गई जिसके बाद इसका झाड़ कम हो गया। अन्य जो किस्में गर्मी से कम प्रभावित हुई हैं इनमें से एचडी-3086 भी शीर्ष पर आती है।