सामाजिक असुरक्षा के चलते अग्निपथ योजना का विरोध

वर्ष 2030-2032 तक 12 लाख की सेना में लगभग आधे अग्निवीर होंगे। इससे दूरगामी अग्निपथ भर्ती योजना के तहत भविष्य के युद्धों के लिए युवा व अनुभव का श्रेष्ठ संतुलन उत्पन्न हो जायेगा। ज़मीनी अनुभव व ऑपरेशनल आवश्यकता के आधार पर इस योजना में संशोधन भी किया जा सकता है। वार्षिक भर्ती में भी निरन्तर वृद्धि की जायेगी। इस साल 40,000 भर्ती किए जायेंगे। यह संख्या 7वें या 8वें वर्ष में 1.2 लाख की जायेगी और फिर 10वें या 11वें वर्ष में 1.6 लाख हो जायेगी। अधिकारियों को छोड़कर सभी भर्तियां अग्निपथ के तहत की जायेंगी। भारतीय वायु सेना व नेवी में हर साल 3,000 अग्निवीर भर्ती किये जायेंगे और आगे आने वाले वर्षों में इस संख्या में भी आनुपातिक इजाफा किया जायेगा। ऐसा सेना के वाईस चीफ  लेफ्टिनेंट-जनरल बीएस राजू का कहना है। उनके अनुसार, प्रत्येक अग्निवीर बैच में से सिर्फ  ‘अच्छों में से सबसे अच्छे’ 25 प्रतिशत को ही सेना में अन्य 15 वर्ष के लिए नियमित कैडर सैनिकों के तौर पर सेवा करने का अवसर मिलेगा, जबकि शेष 75 प्रतिशत को चार साल बाद निकाल दिया जायेगा।
बहरहाल, जैसे ही केंद्र ने सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की तो उसके अगले ही दिन यानी 15 जून को बिहार, पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों में इस योजना में आयु सीमा व सेवा अवधि को लेकर विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गये। सेना में जॉब के इच्छुक प्रार्थियों ने बक्सर, बेगूसराय व मुज़फ्फरपुर में रेल की पटरियों व रेलवे प्लेटफॉर्म्स पर धरने दिए। उन्होंने मुज़फ्फरपुर के सेना भर्ती दफ्तर के बाहर भी प्रदर्शन किये और कुछ होर्डिंग्स को भी तोड़ा। प्रदर्शनकारी सेना की पुरानी भर्ती योजना को फिर से लागू करने की मांग कर रहे थे। उन्होंने सरकार पर उनके करियर से खिलवाड़ करने के आरोप लगाये। यहां यह बताना आवश्यक है कि अग्निपथ योजना के तहत जनरल ड्यूटी सैनिक (त्रि-सेवा) की भर्ती के लिए न्यूनतम आयु में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इस संदर्भ में जो दावा कुछ सोशल मीडिया मैसेजों में किया गया, वह पूर्णत: गलत व फेक है। अग्निवीर बनने के लिए आयु 17.5 वर्ष व 21 वर्ष होनी चाहिए (यही आयु सीमा पहले भी थी) और न्यूनतम शैक्षिक योगता 10वीं कक्षा पास है। जिन 75 प्रतिशत अग्निवीरों को चार वर्ष की सेवा के बाद रिटायर कर दिया जायेगा, उन्हें सेवा निधि पैकेज के तहत 11.7 लाख रुपये दिए जायेंगे।
दरअसल, अग्निपथ योजना में सारा विवाद 4 वर्ष की सेवा के बाद सेवामुक्त करने के प्रावधान को लेकर है जिसमें पेंशन की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर एक लड़का 17.5 वर्ष की आयु में भर्ती होने के बाद 21.5 वर्ष का होने के बाद सेवामुक्त हो जाता है तो वह उसके बाद क्या करेगा? उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वह रिटायर्ड अग्निवीरों को राज्य की पुलिस सेवा की भर्ती में प्राथमिकता देंगे। ‘भर्ती में प्राथमिकता’ देना और ‘नौकरी की गारंटी’ देना, दो अलग अलग बातें हैं। आश्वासन तो ‘वन रैंक वन पेंशन’, साल में दो करोड़ नौकरियों, पेट्रोल 45 रुपये लीटर आदि के भी दिए गये थे। इसलिए कुछ विशेषज्ञों को आशंका है कि सेवामुक्त अग्निवीरों का जीवन बहुत कठिन हो सकता है। जिसको राज्य पुलिस में नौकरी नहीं मिलेगी, वह किसी बिल्ंिडग में गार्ड बनने के लिए मजबूर होगा या किसी प्राइवेट आर्मी का हिस्सा बन जायेगा या अपराधी बन जायेगा या बेरोज़गार होकर कुंठित व तनावग्रस्त रहेगा। इसलिए पूर्व कश्मीर कोर कमांडर लेफ्टिनेंट-जनरल जेएस संधू का कहना है कि अग्निपथ पर चलना आसान नहीं है। अधिकारियों को परिवर्तन का प्रबंधन करना होगा व मनोबल को बनाये रखना होगा और भारत सरकार को अग्निवीरों की सेवामुक्ति के बाद उनकी जॉब सम्भावनाओं को मजबूत करना होगा।
दूसरी ओर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत सरकार की नई सेना भर्ती नीति, जिसमें 25 प्रतिशत नये सैनिकों को बरकरार रखा जायेगा व 75 प्रतिशत को 4 वर्ष बाद रिटायर कर दिया जायेगा, में ज़बरदस्त फिस्कल समझ है। भारत का वार्षिक रक्षा बजट 5.2 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें से लगभग आधा रक्षा वेतन व पैंशन बिल्स के खाते में चला जाता है। इसके विपरीत अमरीका में तकरीबन 80 प्रतिशत सशस्त्र बल सैनिक बिना पेंशन के सेवामुक्त होते हैं। चीन ने पिछले आठ वर्षों के दौरान इससे अधिक किया है। उसने अपनी थल-आधारित सेना में 50 प्रतिशत की कटौती की है जबकि नेवी व वायु सेना को मजबूत किया है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तीन लाख सैनिकों की छंटनी की है। इस पैमाने पर देखें तो भारत का भर्ती सुधार कोई बहुत क्रांतिकारी नहीं है और यह देखते हुए कि चीनी डिफैंस कितनी अधिक आधुनिक हो गई है, भारत को उससे कहीं अधिक की आवश्यकता पड़ेगी। लेकिन क्या नई योजना सेना की लड़ने की क्षमता को प्रभावित करेगी?
अनेक सेवामुक्त सेना जनरलों ने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं कि क्या नई भर्ती योजना मौजूदा ट्रेनिंग संसाधनों पर अधिक बोझ डालेगी व गुणवत्ता की समस्या उत्पन्न करेगी, और क्या यूनिट स्तरों पर लौंग-टर्म व शोर्ट-टर्म सैनिकों का मिश्रण शॉर्ट-टर्म सैनिकों के पक्ष में पलड़ा झुका देगा व युद्ध तैयारी को प्रभावित करेगा? लेफ्टिनेंट-जनरल जेएस संधू का कहना है, अगर यूनिट कमांडर सैनिकों के मनोबल का प्रबंधन कर लें तो नई भर्ती योजना से सेना की लड़ने की स्पिरिट प्रभावित नहीं होगी। इन प्रश्नों के सही उत्तर तो समय के साथ ही सामने आ सकेंगे, लेकिन भारत सरकार को पैनी नज़र रखनी होगी कि नया परिवर्तन ज़मीनी सच्चाइयों पर किस तरह से असर डाल रहा है। 
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न यकीनन यह है कि जो हज़ारों युवा भारतीय 4 वर्ष की सेना सेवा के बाद सालाना सेवामुक्त होंगे, वे क्या करेंगे? अग्निवीरों का सेवामुक्ति पर सेवा निधि पैकेज मात्र 11.70 लाख रुपये का है। यह सिवी स्ट्रीट (असैन्य जीवन) में ज़िन्दगी शुरू करने के लिए अच्छा शकुन है बशर्ते कि सिवी स्ट्रीट ढेर सारे रोज़गार उपलब्ध करा रही हो, लेकिन कड़वा तथ्य यह है कि विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी व तेज़ी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था जॉब्स उत्पन्न करने में बहुत ही खराब काम कर रही है। श्रम बल में हिस्सेदारी निरन्तर कम होती जा रही है, इसलिए युवाओं का श्रम बाज़ार से विश्वास उठता जा रहा है। इस दयनीय स्थिति पर फिलहाल विशाल व बेहतर-लक्षित की गई योजनाओं ने पर्दा डाला हुआ है वरन सामाजिक बेचैनी सड़कों पर दिखायी देने लगती।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर