क्या कांग्रेस में फिर से रक्त-संचार हो पायेगा ?

राहुल गांधी अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। उनकी मां की तबियत खराब है और उन्हें ईडी के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है। उनसे वैसे सवाल पूछे जा रहे हैं, जो उनके लिए बेहद असुविधाजनक हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उनसे पूछताछ का काम पूरा नहीं हो सका था। जैसा कि पूछताछ के बाद प्राय: होता है, उनकी गिरफ्तारी की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। 
कांग्रेस नेताओं का पूछताछ के खिलाफ  लामबंद होकर उग्र प्रदर्शन इसी गिरफ्तारी की आशंका के कारण हो रहा है। इस बीच अनेक राजनीतिक विश्लेषक, जो खासकर कांग्रेस के प्रति बहुत ही आशावाद पालते हैं, कह रहे हैं कि राहुल गांधी के साथ ईडी जो बर्ताव कर रहा है, उससे कांग्रेस को बहुत ही राजनीतिक लाभ हो सकता है, उसमें नये रक्त का संचार हो जाएगा और वह फिर अपने पुराने दिनों के गौरव को प्राप्त कर लेगी। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वे जनता पार्टी के शासन काल में मोरारजी सरकार द्वारा इन्दिरा गांधी की गिरफ्तारी का हवाला दे रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, जो उस समय गृहमंत्री भी थे, ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने की ज़िद न की होती, तो कांग्रेस की फिर से वापसी नहीं हो पाती।
सवाल उठता है कि क्या यह विश्लेषण सही है? क्या राहुल गांधी की गिरफ्तारी से कांग्रेस में सचमुच जान आ जाएगी? इन सवालों का जवाब देने के लिए 1977 में हार के बाद कांग्रेस की दशा और आज की दशा में तुलना करनी चाहिए। पहली बात तो यह है कि 1977 में कांग्रेस हारी थी, समाप्त नहीं हुई थी। हारी हुई पार्टी उचित माहौल में जीत भी सकती है और जीत भी जाती है, लेकिन जो पार्टी समाप्त हो गई हो, वह कैसे जीतेगी?
कांग्रेस समाप्त हो चुकी है, ऐसा कहना शायद ज्यादती होगी, लेकिन इतना तो कह ही सकते हैं कि देश के अधिकांश भागों से कांग्रेस समाप्त हो गई है। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में उसे अढ़ाई फीसदी से भी कम वोट मिले। देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले महाराष्ट्र में उसका कुछ वजूद है, लेकिन वह वहां की दो सबसे बड़ी पार्टियों में एक नहीं है। तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले बिहार में भी वह गायब है। उसके जो करीब डेढ़ दर्जन विधायक वहां हैं, वे राजद के वोटों के बल पर हैं। देश की चौथी सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य पश्चिम बंगाल में भी उसका वजूद समाप्त हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे देख लीजिए। देश की पांचवीं सबसे ज्यादा आबादी वाले तमिलनाडु में भी वह लगभग गायब ही है। उसके जो भी इक्का-दुक्का उम्मीदवार जीतते हैं, वे वहां की प्रमुख क्षेत्रीयों पार्टियों में से किसी एक के सहयोग से ही जीतते हैं।
ऊपर तो हमने देश की पांच सबसे आबादी वाले राज्यों की चर्चा की। अन्य अनेक राज्यों में भी कां्रगेस ने दूसरी बड़ी पार्टी का रुतबा खो दिया है। दिल्ली में वह समाप्त प्राय है। पंजाब में भी वह समाप्ति की ओर जा रही है। झारखंड में  उसका बिहार वाला हाल ही है। उड़ीसा में भी वह तीसरे नंबर पर धकेल दी गई है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी वह लगभग समाप्त ही है। जम्मू और कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी ने उसका स्थान ले लिया है। पूर्वोत्तर भारत में भी उसका बुरा हाल है। अब जब कांग्रेस की हालत इतनी बुरी है, तो फिर वह कैसे एकाएक उठ खड़ी होगी राहुल की गिरफ्तारी से?
 1977 में कांग्रेस के पास 30 फीसदी से ज्यादा वोट थे। उसकी हार का मुख्य कारण उसके विरोधियों का आपस में हाथ मिला लेना था। हार के बावजूद उसके लोकसभा सांसदों की संख्या डेढ़ सौ के करीब थी। राज्य सभा में कांग्रेस उस समय भी नंबर वन पार्टी थी। प्रदेशों में वह कहीं सत्ता में थी, तो कहीं मुख्य विपक्षी पार्टी थी। उसके पास प्रतिबद्ध कांग्रेसियों की एक फौज थी। बहुत सारे तो स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनकी अपने अपने इलाकों में बहुत प्रतिष्ठा थी।
इन सबके अलावा खुद इन्दिरा गांधी का अपना व्यक्तित्व ही बहुत बड़ा था। वह एक मजबूत नेता की छवि रखती थीं। पाकिस्तान को तोड़ कर बांग्लादेश नाम का एक नया देश बनाने का तगमा उन्हें हासिल था। बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना और प्रीवीपर्स को समाप्त करना उनकी उपलब्धियों में शामिल था। सबसे बड़ी बात यह कि जो लोग 1977 में एक साथ होकर कांग्रेस के विरुद्ध लड़े थे, 1980 में आपस में विभाजित होकर अलग हो गए थे। उसके बाद तो इन्दिरा गांधी को जीतना ही था अत: 1977 के पहले वाली प्रतिष्ठा कांग्रेस को हासिल हो गई।
लोकिन अभी कांग्रेस के पास क्या है? कहा जा रहा है कि राहुल के साथ किए जा रहे बर्ताव से कांग्रेस में रक्त का संचार हो जाएगा। लेकिन ऐसा कहने वाले यह भी देख लें कि कांग्रेस के पास रक्त बचा हुआ भी है क्या? नेतृत्व की ही बात करें, तो इन्दिरा के सामने सोनिया और राहुल की क्या बिसात!  इसलिए कांग्रेसियों को इस बात की खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए कि राहुल के खिलाफ  ईडी की कार्रवाई से कांग्रेस को जीवनदान मिल रहा है। सच तो यह है कि लोगों का यह पता लगने लगा है कि सोनिया और राहुल ने क्या गड़बड़ियां कर दीं। नेशनल हेराल्ड कांग्रेस की सम्पत्ति थी, जिसे दोनों ने एक ऐसी कम्पनी के नाम करवा दी, जिसके मालिक दोनों मां-बेटा हैं। यह सम्पत्ति कुछ करोड़ों में नहीं, करीब 5 हजार रुपये करोड़ की है। (संवाद)