विश्व भर का नक्शा बदल देने वाले नायक अथवा ़खलनायक थे गोर्बाचेव ?

यदि व्लादिमीर लेनिन को रशियन सोशल डैमोक्रेटिक लेबर पार्टी (बालशेविक) बनाकर 1917 में मार्क्सवादी सिद्धांत को आधार बना कर सोवियत यूनियन में क्रांति लाने वाला व्यक्तित्व माना जाता है तो मात्र 7 दशक में मिखाइल गोर्बाचेव को वहां इस क्रांति तथा सोवियत यूनियन को समाप्त करने वाला नेता माना जाता रहा है। केवल अपनी सात वर्षों की सत्ता में 25 दिसम्बर, 1991 को उनकी ओर से अपना त्याग-पत्र देने के साथ-साथ ही सोवियत यूनियन का भोग पड़ गया था तथा यह 15 स्वतंत्र राज्यों में बंट गया था चाहे रूस आज भी क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से विश्व का सर्वाधिक बड़ा देश माना जाता है।
कम्युनिस्ट पार्टी का सर्वोच्च पद सम्भालने के समय से ही गोर्बाचेव ने सोवियत यूनियन की लड़खड़ाती हुई अर्थ-व्यवस्था को भांपते हुये यहां की समूची व्यवस्था में कुछ परिवर्तन लाने के लिए कुछ नीतियां धारण की थीं। उस समय विश्व भर में उनकी ओर से दिये गये सुधारों के दो संकल्प पेरोस्त्राइका एवं ग्लासनोस्त के नाम से चर्चित हुये थे जिनका क्रमश: अर्थ पुनर्निर्माण एवं खुलापन था। अभिप्राय यह कि गोर्बाचेव देश को प्रशासनिक जकड़ से निकालना चाहते थे तथा इसकी अर्थ-व्यवस्था में भी परिवर्तन लाना चाहते थे। वह एक पार्टी के ही सत्ता में रहने की अपेक्षा बहु-दलीय चुनावों के माध्यम से नई राजनीतिक व्यवस्था भी बनाना चाहते थे। उस समय अमरीका के मुकाबले में सोवियत यूनियन ही विश्व में दूसरी बड़ी शक्ति बनकर उभरा था। इसी कारण उस समय अमरीका एवं सोवियत यूनियन दोनों को विश्व की दो महा-शक्तियों के तौर पर माना जाता था। दोनों में हथियारों की दौड़ लगी हुई थी परन्तु गोर्बाचेव ने निरन्तर हथियारों की दौड़ में पड़ने की अपेक्षा अमरीका के साथ सभी तरह के हथियारों को सीमित करने का समझौता किया तथा अपनी नीतियों के साथ शुरू हुये शीत युद्ध की दिशा ही बदल दी थी। परन्तु खुलेपन एवं आज़ादी की नीतियों का सोवियत यूनियन के भीतर यह प्रभाव हुआ कि पूरा देश ही कुछ ही वर्षों में पूरी तरह से बिखर गया। इसके साथ ही कठोर कम्युनिस्ट प्रशासन भी समाप्त हो गया। इसीलिए जहां आज भी वाम-पक्षीय विचारधारा के लोग ़खलनायक कह कर उनकी आलोचना करते हैं, वहीं अमरीका एवं अधिकतर पश्चिमी देशों में उनकी इन बड़े परिवर्तनों को लाने के लिए प्रशंसा की जाती रही है। उन्होंने अ़फगानिस्तान से सेनाएं वापिस बुला लीं। उनके शासन काल में ही पूर्वी यूरोप के दर्जनों देशों में जहां साम्यवादी एवं समाजवादी निज़ाम स्थापित हो चुके थे, वे भी पूर्णतया बिखर गये। उनके काल में ही 1989 में बर्लिन की दीवार को गिरा दिया गया था। इसके बाद रूस एवं सोवियत यूनियन से स्वतंत्र हुये 14 अन्य देश बड़े संघर्ष में से गुज़रे। उनकी आर्थिकता लम्बी अवधि तक स्थिर नहीं हो सकी तथा गोर्बाचेव के जीवन काल में ही जिस उन्मुक्त एवं बहु-पार्टी व्यवस्था का उन्होंने अपने देश के लिए संकल्प लिया था, वह भी समाप्त हो गया। रूस में पुन: तानाशाही सत्ता स्थापित हो गई। विगत लगभग 25 वर्षों से व्लादिमीर पुतिन किसी न किसी रूप में रूस की सत्ता पर काबिज़ चले आ रहे हैं। चाहे पुतिन के काल में रूस की लड़खड़ाती आर्थिकता में तो उभार आया है परन्तु पुतिन ने पुन: पुराने सोवियत यूनियन का स्वप्न देखना भी शुरू कर दिया है परन्तु यह देश अमरीका की भांति अब विश्व की बड़ी शक्ति नहीं रहा। सम्भवत: पुराने स्वप्न को साकार करने के लिए ही पुतिन अपने पड़ोसी देश यूक्रेन के साथ भारी एवं विनाशक युद्ध में उलझ गये हैं जिसने दोनों देशों की आर्थिकता को तो नष्ट किया ही है, इसका प्रभाव किसी न किसी रूप में पूरे विश्व पर पड़ते हुये देखा जा रहा है।
इस बात का अभी भी निर्णय किया जाना शेष है कि गोर्बाचेव ने अपने जीवन काल में किस दिशा में कितनी उपलब्धियां प्राप्त कीं तथा वह किन दिशाओं में पूरी तरह से लुढ़क गये परन्तु सोवियत राष्ट्रवादी सोवियत संघ के बुरी तरह से बिखर जाने के लिए सदैव गोर्बाचेव को कोसते रहेंगे। सम्भवत: सोवियत क्रांति के बाद 20वीं शताब्दी में गोर्बाचेव ही एक ऐसे व्यक्ति माने जा सकते हैं जिन्होंने अपनी गलत अथवा सही नीतियों के साथ विश्व भर के नक्शे को ही बदल दिया। अकेले एक व्यक्ति 7 वर्ष के सीमित समय में विश्व भर में इतने बड़े परिवर्तन ला सकता है, यह सोच कर भी आश्चर्य होता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द