अवैध खनन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा 

पंजाब में रेत और बजरी के अवैध खनन के कारण स्थितियां प्रत्येक पक्ष से कितनी गम्भीर होती जा रही हैं, इसका पता भारतीय सेना की पश्चिमी कमान की एक प्रभारी अधिकारी द्वारा अदालत में दायर किये गये इस शपथ पत्र से चल जाता है कि प्रदेश में यदि अंधाधुंध रूप से जारी अवैध खनन को न रोका गया तो इससे राष्ट्र की सुरक्षा भी ़खतरे में पड़ सकती है। शपथ पत्र में सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए चुनौती दी गई है कि इस अवैध खुदाई के कारण सेनाओं के बंकर ज़मींदोज़ होने का ़खतरा बढ़ा है। सीमाओं पर लगे तार-बाड़ों के पिलरों की नींव कमज़ोर हुई है। नदियों और बरसाती नालों पर बने रेलवे और सड़क पुलों के नीचे की जा रही खुदाई के कारण चक्की पुल ध्वंस की तरह अन्य कई पुलों के ध्वस्त होने का ़खतरा भी उपजा है। शपथ पत्र में यह भी आशंका व्यक्त की गई है कि किसी सैनिक हमले के ़खतरे की आशंका में भारतीय कार्रवाई के निष्पादन में अनावश्यक देरी हो सकती है। सेना के इस शपथ पत्र में यह भी दावा किया गया है कि अवैध खनन की इस कार्रवाई के पीछे भारत-पाक सीमा पर सक्रिय हथियारों और अवैध नशीले पदार्थों के तस्करों एवं गैंगस्टरों की भी बड़ी भूमिका हो सकती है। इन तस्करों की आतंकवादियों एवं भारत-विरोधी तत्वों के साथ मिलीभुगत की आशंका भी व्यक्त की गई है। इस कारण सीमा-पार से घुसपैठ बढ़ने का ़खतरा भी उत्पन्न होता है। अवैध खनन के चलन से नदियों की सतह के ऊबड़-खाबड़ हो जाने के कारण नदियों में बाढ़ों का ़खतरा भी बढ़ता है। अप्राकृतिक बाढ़ के कारण नदियों की धारा बदलते जाने की आशंका भी उपजती है। 
पंजाब में अवैध खनन को लेकर चिरकाल से राष्ट्र-हित का चिन्तन करने वालों की ओर से वावेला किया जा रहा है किन्तु एक के बाद एक करके आती-जाती गई किसी भी सरकार के कानों पर कभी जूं तक नहीं रेंगी। प्रदेश की मौजूदा आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार भी बेशक अवैध खनन की बैसाखियां पर चल कर ही सत्ता के सिंहासन तक पहुंची थी, परन्तु इसे एक विडम्बना ही समझा जाएगा कि प्रदेश में अवैध खनन को लेकर सर्वाधिक गम्भीर एवं ़खतरे वाली स्थिति इसी सरकार के दौर में उपजी है। यह भी एक दुर-संयोग है कि जिस दिन इस प्रकार के आला मंत्रियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने सस्ती दरों पर रेत-बजरी बेचे जाने की सरकारी नीतियों की घोषणा की, उसी दिन सायंकाल तक न केवल रेत-बजरी अनुपलब्ध हो गई, अपितु इन पदार्थों की कीमतें भी पूर्व सरकार के समय की कीमतों से दस गुणा  तक बढ़ गईं।
स्थितियों का यह पक्ष भी बेहद त्रासद है कि रेलवे के विशेषज्ञ भी इस मामले को लेकर पूर्व में चेतावनियां जारी कर चुके हैं कि रेलवे पुलों के नीचे से गुजरते नदी-नालों में से की जाती भारी एवं अनियोजित खुदाई के कारण अनेक रेलवे पुलों के स्तम्भों को ़खतरा उत्पन्न हो चुका है। इसकी गम्भीरता का पता इस एक तथ्य से चलता है कि वर्षा ऋतु के कारण पंजाब से गुज़रने वाली रेलगाड़ियों की गति नदी-नालों पर बने पुलों पर से  गुज़रते समय धीमी रखने के लिए कहा गया है। अवैध खनन की समस्या  को लेकर देश की अदालतें भी कई बार सक्रिय हुई हैं। पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने केन्द्र एवं राज्य की सरकार से पूछा है कि अवैध खनन को सख्ती से रोकने के मामले को लेकर आखिर सरकारों की मजबूरियां क्या हैं। उच्च न्यायालय ने स्थितियों की गम्भीरता केदृष्टिगत गुरदासपुर एवं पठानकोट में किसी भी प्रकार के खनन पर आगामी आदेशों तक रोक लगा दी थी, परन्तु खेद की बात है कि पाबन्दी के इस आदेश को ठेंगा दिखाते हुए खनन माफिया इस क्षेत्र में पूरी शक्ति के साथ सक्रिय दिखाई दिया है। खनन माफिया इतना दबंग और शक्तिशाली हो गया है कि वह प्रशासन और अदालती आदेशों को भी ठेंगे पर लेने लगा है। पिछले दिनों एक डिप्टी कमिश्नर की कार को ट्रक से टक्कर मारने की कोशिश भी की गई। पंजाब की सरकार ने इस सन्दर्भ में सीमा सुरक्षा बल से भी सहायता की मांग की है।  अदालत ने पंजाब की सरकार से अपने निर्देशों एवं सरकारी आदेशों का सख्ती से पालन कराये जाने हेतु भी कहा है किन्तु सरकारी पक्ष कागज़ी प्रक्रिया से रत्ती भर आगे नहीं बढ़ पाया है।
हम समझते हैं कि अवैध खनन के मामले पर पुलों के नीचे और ऊपर  से भी बड़ा पानी निकल चुका है। इस कारण पुल भी थरथराये हैं, और नदियों के तट भी क्षरित हुए हैं, किन्तु खनन माफिया के बदन पर एक खरोंच तक नहीं आई है। अदालतों के निर्णय अपनी जगह, किन्तु राष्ट्र हित की परवाह किसी को भी नहीं। ऐसी स्थिति में हम समझते हैं कि रेत और बजरी के अवैध खनन को रोकने के लिए भरपूर सख्ती ही एकमात्र उपाय रह गया है। इस सख्ती के लिए भी राजनीतिक दृढ़-इच्छा शक्ति की बड़ी ज़रूरत है। यह इच्छा शक्ति जितना शीघ्र जागृत होगी, उतना ही पंजाब प्रदेश, पंजाब के लोगों और राष्ट्र-हित के लिए भी अच्छा होगा।