कलकत्ता हाई कोर्ट ने कायम की नई मिसाल

कलकत्ता हाई कोर्ट ने अद्भुत नज़ीर बनाई है। भाजपा ने बीते मंगलवार को कोलकाता में बड़ा प्रदर्शन किया। बंगाल और आसपास के कई राज्यों के भाजपा कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में शामिल हुए। भाजपा ने राज्य सचिवालय की ओर मार्च का ऐलान किया था। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोका तो उन्होंने पुलिस पर हमला कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की गाड़ियां जलाईं और पुलिस वालों से मारपीट की। इसके दर्जनों वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं। इस हिंसा के बीच भाजपा ने हाई कोर्ट में शिकायत की। हाई कोर्ट ने आनन-फानन में संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी करके रिपोर्ट तलब कर ली। सवाल है कि देश में कहां राजनीतिक प्रदर्शन होते हैं तो उनको रोका नहीं जाता? क्या पुलिस प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले नहीं छोड़ती या पानी की बौछार नहीं करती? क्या पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प नहीं होती? लेकिन कहीं भी इस तरह से हाई कोर्ट आनन-फानन में दखल नहीं देता। याद करें, कृषि कानूनों के खिलाफ  दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को रोकने के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश में क्या किया गया था? सड़कों पर गड्ढे कर दिए गए थे और पुलिस ने सैकड़ों जगह बैरिकेडिंग की थी। 
किसानों पर पानी की बौछार हुई थी और लाठियां भी बरसाई गई थीं लेकिन किसानों ने पुलिस की कोई गाड़ी नहीं जलाई थी। इसके बावजूद पुलिस ज़्यादती का किसी अदालत ने संज्ञान नहीं लिया था। अब कलकत्ता हाई कोर्ट ने नज़ीर बनाई है तो उम्मीद करनी चाहिए कि देश भर में अब ऐसा ही होगा।
क्या ़गरीब ही ़गरीब की बात कर सकता है?
भाजपा के नेता किसी भी गंभीर बहस को भटकाने में माहिर हैं। जैसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उठाए जा रहे मुद्दों की बजाय भाजपा उनके रात्रि विश्राम के लिए लगाए जाने वाले कंटेनर और उनकी टी-शर्ट का मुद्दा बना रही है। देश का मीडिया भी ऐसी बुरी दशा में पहुंच चुका है कि पूरे दो दिन इस पर बहस कराता रहा और भाजपा के वाचाल प्रवक्ताओं को बहस में बैठाया गया ताकि वे यह सवाल उठा सकें कि राहुल गांधी 41 हजार की टी-शर्ट पहन कर कैसे गरीब की बात कर सकते हैं। लेकिन यह बहस फिजूल है क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई नेता क्या पहनता है, कैसी गाड़ी से चलता है या क्या खाता-पीता है। अगर इस आधार पर आकलन किया जाएगा तो सबसे पहले देश की संसद ही सवालों के घेरे में आएगी। भारत की संसद में प्रधानमंत्री मोदी सहित आधे से ज्यादा सांसद करोड़पति हैं। संसद की कार्यवाही देखने जाएंगे तो दिखेगा कि ज्यादातर सांसद लाखों-करोड़ों रुपये की गाड़ियों में बैठ कर आते हैं। 
सबके हाथों में महंगे फोन, महंगी घड़ियां, गले में सोने की मोटी चैन और अंगुलियों में ढेर सारी कीमती अंगूठियां दिखेंगी। सब महंगे कपड़े पहने होते हैं लेकिन वही करोड़पति सांसद पांच किलो सरकारी अनाज पर पलने वाले भूखे-नंगे लोगों सहित 140 करोड़ भारतीयों की किस्मत का फैसला भी करते हैं। अगर यह पैमाना बन जाए कि गरीब ही गरीब की बात करेगा तो भारतीय संसद तो गरीब की बात ही नहीं कर पाएगी!
विदेशी मुद्रा भंडार का कम होना
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल फरवरी में 631 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था लेकिन अब यह गिर कर 553 अरब डॉलर आ गया है यानी पिछले सात महीने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 78 अरब डॉलर कम हुआ है। 
पिछले हफ्ते एक झटके में आठ अरब डॉलर की गिरावट आई। आम तौर पर यह माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत का आयात बिल बढ़ा है। इस वजह से मुद्रा भंडार कम हुआ है। इसके अलावा यह कहा जा रहा है कि विदेशी निवेशक शेयर बाज़ार से पैसा निकाल रहे हैं और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नहीं आ रहा है इसलिए भी मुद्रा भंडार कम हुआ है। लेकिन इसका एक बड़ा कारण रुपए की गिरती कीमत को थामने के लिए डॉलर बाज़ार में निकालना भी है। भारतीय रिज़र्व बैंक रुपये की आबरू बचाने के लिए बड़ी मात्रा में डॉलर बाज़ार में निकाल रहा है। इसके बावजूद एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के करीब पहुंची हुई है। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगर अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकाल कर रिजर्व बैंक रुपये को और गिरने से नहीं रोक रहा होता तो इसकी कीमत कहां पहुंची होती? 
केजरीवाल की राजनीति
समकालीन राजनीति में नाटकीयता का प्रदर्शन करने के मामले में आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टक्कर का नेता माना जा सकता है। अभी गुजरात के दो दिन के दौरे में तो उन्होंने जो किया, वह ड्रामे का ओवरडोज़ था। वह चार्टर्ड प्लेन से गुजरात गए थे लेकिन वहां उन्होंने ऑटो रिक्शा की सवारी करने का हैरान करने वाला ड्रामा रचा। एक ऑटो चालक के घर खाना खाने जाने के लिए उन्होंने ज़िद पकड़ ली कि वह ऑटो से ही जाएंगे। गुजरात पुलिस उनकी सुरक्षा और प्रोटोकॉल का हवाला देकर उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी लेकिन वह नहीं माने। उल्टे गुजरात पुलिस पर खूब चीखे और सुरक्षा वापस ले जाने को कहा। 
गौरतलब है कि केजरीवाल देश के संभवत: इकलौते नेता हैं, जिनको दो जगह से ज़ैड प्लस सुरक्षा मिली हुई है। केंद्र सरकार ने उनको ज़ैड सुरक्षा दे रखी है और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद वहां से भी उनको ज़ैड प्लस सुरक्षा मिल गई। केजरीवाल दिल्ली में पूरे तामझाम के साथ चलते हैं। उनके आगे पीछे गाड़ियों का काफिला चलता है और ट्रैफिक रोका जाता है। गुजरात भी वह पूरे तामझाम के साथ पहुंचे लेकिन वहां जाकर ऑटो की सवारी करने का राजनीतिक स्टंट किया। पंजाब में भी वह इस तरह के स्टंट कर चुके हैं। सवाल है कि यदि वे इतने डाउन टू अर्थ हैं और उनको सुरक्षा का तामझाम नहीं चाहिए तो केंद्र और पंजाब सरकार से मिली सुरक्षा वापस क्यों नहीं कर देते?