कांग्रेस के लिए सहायक होंगे नितीश तथा लालू प्रसाद

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के बार-बार यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता नहीं होगी या भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस इतनी मज़बूत हो जाएगी कि कोई उसकी अनदेखी नहीं कर पाएगा। सब जानते और मानते हैं कि विपक्षी एकता में कांग्रेस की निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के साथ कोई टकराव नहीं है। जहां टकराव है, वहां कांग्रेस कितनी भी मज़बूत हो जाए, तालमेल मुश्किल होगा। इसलिए जब समय आएगा, तब विपक्षी गठबंधन बनेगा और उसमें कांग्रेस की भी भूमिका रहेगी। इस सिलसिले में कांग्रेस को सबसे बड़ी मदद बिहार से मिलेगी। 
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तथा राजद प्रमुख लालू प्रसाद कांग्रेस के सबसे बड़े मददगार होंगे। इस दौरान रविवार को नितीश तथा लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। लालू ने मुलाकात के बाद कहा कि 2024 में भाजपा को हरा कर देश को बचाना है। यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाना पड़ेगा। लालू-नितीश की सोनिया के साथ मुलाकात को 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने के यत्न के रूप में देखा जा रहा है। सोनिया गांधी की 10 जनपथ रिहायश पर हुई बैठक को विपक्षी पार्टियों के बीच एकता बनाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण पग माना जा रहा है। फिलहाल इस मुलाकात से यह स्पष्ट है कि ये दोनों नेता विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के लिए जगह बनाएंगे।
कई प्रोजेक्ट गुजरात गए
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार मुश्किल में फंसी है। उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिव सेना के साथ एनसीपी और कांग्रेस ने वेदांता-फॉक्सकॉन का डेढ़ लाख करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट गुजरात चले जाने को बड़ा मुद्दा बनाया है। महाराष्ट्र की इन विपक्षी पार्टियों का कहना है कि एक-एक करके राज्य के सारे बड़े प्रोजेक्ट गुजरात जा रहे हैं और इसी तरह चलता रहा तो एक दिन मुम्बई भी गुजरात में चला जाएगा या उसे केंद्र शासित बना दिया जाएगा। बचाव में पहले तो शिंदे गुट और भाजपा ने पिछली सरकार पर ठीकरा फोड़ना चाहा लेकिन जब वेंदाता समूह के मालिक अनिल अग्रवाल के साथ हुआ शिंदे का पत्राचार सामने आ गया तो दोनों बैकफुट पर आए और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि गुजरात कोई पाकिस्तान में नहीं है। हालांकि फड़नवीस जानते हैं कि जब हितों का टकराव होता है तो मुम्बई और महाराष्ट्र के लोग गुजरात को पाकिस्तान की तरह ही मानते हैं। बहरहाल, पिछली सरकार पर ठीकरा फोड़ने का दांव फेल हो गया। उसके बाद यह भी खबर आई है कि पिछले आठ साल में महाराष्ट्र के कई प्रोजेक्ट गुजरात चले गए। मुम्बई में इंटरनेशनल फाइनेंशिएल सेंटर बनाने की तैयारी 2007 से चल रही थी, लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनते ही यह प्रोजेक्ट गुजरात चला गया। इसी तरह मुम्बई पर आतंकी हमले के बाद से नेशनल एकैडमी ऑफ कोस्टल पोलिसिंग मुम्बई से सटे पालघर में बनाने की तैयारी हो रही थी लेकिन वह एकैडमी भी गुजरात चली गई। अब वेदांता-फॉक्सकॉन की परियोजना भी तालेगांव (पुणे) से गुजरात चली गई।
राहुल को सर्वोच्च बनाने का यत्न 
कई लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही है कि जब राहुल गांधी ने तय कर लिया है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे तो फिर करीब एक दर्जन प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने राहुल को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को क्यों भेजा? इसके साथ ही यह भी कम हैरानी की बात नहीं है कि पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने प्रेस कांफ्रैंस करके कहा है कि राज्यों की ओर से पास किए जा रहे प्रस्तावों को मानने के लिए पार्टी आलाकमान बाध्य नहीं है। असल में यह पूरी कवायद राहुल गांधी को पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में स्थापित करने और उनकी नैतिक सत्ता को मजबूत बनाने के लिए की गई। अध्यक्ष कोई भी बने लेकिन सर्वोच्च नेता राहुल रहेंगे। कांग्रेस की ओर से कहा जाएगा कि सारी प्रदेश कमेटियां राहुल को अध्यक्ष बनाना चाहती थीं लेकिन उन्होंने यह पद ठुकरा दिया। जो भी नया अध्यक्ष होगा, उसके ऊपर इसका दबाव रहेगा। वैसे भी कांग्रेस की साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी का कद बहुत बड़ा हो जाने वाला है। ये दोनों काम बहुत योजनाबद्ध तरीके से किए जा रहे हैं। पदयात्रा से राहुल के प्रति बनाई गई धारणा टूटेगी और वह एक जननेता के रूप में स्थापित होंगे और प्रदेश कमेटियों के प्रस्ताव से पार्टी के अंदर उनकी सर्वोच्चता कायम होगी। 
 ‘आप’ का चेहरा?
आम आदमी पार्टी का दावा है कि वह गुजरात में सरकार बनाने जा रही है। कथित राष्ट्रीय मीडिया यानी दिल्ली से संचालित होने वाले टीवी चैनल भी यही तस्वीर पेश कर रहे हैं कि गुजरात में मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच है और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सत्ता की दौड़ से बाहर है लेकिन अहम बात यह है कि चुनाव में दो-अढ़ाई महीने का समय रह गया है और आम आदमी पार्टी अभी तक कोई स्थानीय चेहरा पेश नहीं कर पाई है। गुजरात कोई दिल्ली जैसा राज्य नहीं है, जहां हरियाणा के रहने वाले अरविंद केजरीवाल के नाम पर पार्टी चुनाव जीत जाये। केजरीवाल को भी पता है कि पंजाब में चुनाव जीतने के लिए उनको भगवंत मान का चेहरा आगे करना पड़ा। पंजाब की तरह ही गुजरात में भी अस्मिता की राजनीति होती है।  प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी लगातार छह करोड़ गुजरातियों की बात करते थे। अब भी गुजरात से उनका खास प्रेम है। इसलिए केजरीवाल को भी गुजराती चेहरा पेश करना होगा लेकिन कहां है गुजराती चेहरा? अभी गोपाल इटालिया पार्टी के प्रादेशिक संयोजक हैं। वह पाटीदार आरक्षण आंदोलन से जुड़े रहे थे लेकिन कहीं भी उनका चेहरा नहीं दिखाई देता है। सारी प्रचार सभाएं, रोड शो, प्रेस कांफ्रैंस अरविंद केजरीवाल करते हैं या दिल्ली से उनके साथ गए नेता करते हैं। मीडिया भी इस बारे में केजरीवाल से सवाल नहीं करता है।