हरमनप्रीत कौर  जिन्होंने महिला क्रिकेट की कहानी बदल दी 

‘मैं बहुत छोटे से गांव से आती हूं लेकिन अपने देश का नेतृत्व करने की इच्छा मुझमें हमेशा से थी।’ ऐसा हरमनप्रीत कौर का कहना है जो 2019 से भारत की टी-20 कप्तान हैं, इस साल जून में वह ओडीआई टीम की भी कप्तान बनीं और यह भी लगभग निश्चित है कि जब भी भारतीय महिलाएं सफेद ड्रेस में होंगी तो वह टैस्ट टीम की भी कप्तान होंगीं। पंजाब के ज़िला मोगा में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलते हुए हरमनप्रीत कौर उस समय बड़ी हुईं जब महिलाओं के लिए क्रिकेट में कोई स्पष्ट रोड मैप नहीं था। उन्होंने 20-वर्ष की आयु में अपना पहला ओडीआई खेला और उसी वर्ष विश्व कप भी खेला। अब 33-वर्षीय हरमनप्रीत कौर भारत के लिए विश्व कप जीतने का बड़ा सपना देख रही हैं। अगला आईसीसी ओडीआई विश्व कप भारत में 2025 में होगा। इससे पहले मार्च 2023 में महिलाओं के लिए पहला आईपीएल होगा जो हरमनप्रीत कौर को उनके लक्ष्य के करीब तक ले जाने में मदद कर सकता है। वह कहती हैं, ‘आईपीएल हमारे लिए बड़ा मंच होगा। हम पिछले कई वर्षों से इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। घरेलू खिलाड़ी विदेशी खिलाड़ियों के साथ रूम शेयर कर सकेंगी। अगर घरेलू खिलाड़ी को यह एक्सपोजर मिल जाता है तो इससे भारतीय टीम को ही लाभ होगा।’
हरमनप्रीत कौर निडर बैटर हैं। इस साल सितम्बर में इंग्लैंड पर ओडीआई सीरीज़ जीत में उनकी जबरदस्त भूमिका थी। उन्होंने तीन पारियों में 221 रन बनाये जिसमें 111 गेंदों में 143 रन की एक शतकीय पारी भी शामिल थी। लेकिन इससे पहले लगभग पांच वर्ष तक उनका बल्ला बोला ही नहीं था। कम स्कोर करने के बावजूद हरमनप्रीत कौर ने हिम्मत नहीं हारी थी बल्कि उनका मानना था कि चीजें इतनी खराब हो चुकी थीं कि आगे वह बेहतर ही हो सकती थीं। वह कहती हैं, ‘जीवन में कभी ऐसे क्षण भी आते हैं जब आपको स्ट्रोंग होना आवश्यक होता है।’ बहरहाल, भारतीय क्रिकेट इतिहास में दो बैटर्स ने ऐसी पारियां खेली हैं जिनकी वजह से देश में क्रिकेट ने एक निश्चित सकारात्मक मोड़ लिया और आज जो अपने यहां क्रिकेट अन्य खेलों की तुलना में विशेष मकाम हासिल किये हुए है तो उसका श्रेय भी इन्हीं दो पारियों को जाता है।  साल 1983 के पुरुष क्रिकेट विश्व कप में जिंबाब्वे के विरुद्ध भारत के पांच बल्लेबाज मात्र 17 रन के पर पवेलियन लौट चुके थे और भारत पर हार व प्रतियोगिता से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा था, लेकिन तभी कप्तान कपिल देव ने 175 रन की अविश्वसनीय पारी खेली, जिससे न सिर्फ  वह मैच जीता बल्कि उसके विश्व चैंपियन बनने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। इसी तरह 2017 के महिला क्रिकेट विश्व कप के सेमी-फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध हरमनप्रीत कौर ने 171 रन की शानदार व यादगार पारी खेलकर देश में महिला क्रिकेट को संजीवनी बूटी प्रदान की। यह दोनों ही विश्व कप इंग्लैंड में खेले गये थे।
स्पोर्ट्स में वह पल हमेशा महत्वपूर्ण होता है जब उसे हमेशा के लिए परिभाषित कर दिया जाता है। 1936 के बर्लिन गेम्स में जब अश्वेत जेस्सी ओवेंस ने चार स्वर्ण पदक जीते तो न सिर्फ  विश्व को ओलंपिक्स गेम्स का महत्व मालूम हुआ बल्कि रंग व नस्लभेद पर यह करारी चोट थी। हालांकि 1978 की भारत-पाक क्रिकेट श्रृंखला से भारत में क्रिकेट में दिलचस्पी की नींव खुद गई थी, फिर भी भारत एक कमजोर टीम ही थी, खासकर एकदिवसीय मैचों में, इसलिए ज्यादा महत्व हॉकी व अन्य खेलों को ही मिलता था, लेकिन 1983 की विश्व कप जीत और कपिल देव की पारी ने क्रिकेट को भारत में धर्म का दर्जा प्रदान कर दिया, बाद में सचिन तेंदुलकर इस नये धर्म के भगवान भी बन गये। इसी तरह महिला क्रिकेट का कायाकल्प 2017 में शुरू हुआ हरमनप्रीत कौर की पारी से। दरअसल 2017 से पहले महिला क्रिकेट को देखना एक प्रकार का नयापन था, जिसे सिर्फ  उसी समय देखा जाता था, जब आपके पास थोड़ा खाली समय हुआ करता था, तब तो यह भी मालूम नहीं होता था कि टीम में कौन लड़कियां खेल रही हैं। लेकिन हरमनप्रीत कौर की पारी ने महिला क्रिकेट के प्रति देश में नजरिया ही बदल दिया। आज हम मिथाली राज या झूलन गोस्वामी को व उनके रिकॉर्डस को वैसे ही जानते हैं जैसे विराट कोहली या जसप्रीत बुमराह को।
इसमें शक नहीं है कि स्थिति में सुधार आ रहा है, लेकिन महिला क्रिकेट को पुरुष क्रिकेट जितना महत्व नहीं मिल रहा है, ऐसे में एक महिला के लिए भारत में प्रोफेशनल क्रिकेटर बनना कितना कठिन है? हरमनप्रीत कौर के अनुसार, ‘मेरे डैड ने कभी लड़का व लड़की में अंतर नहीं किया। 
उन्होंने मुझे क्रिकेट को करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि अन्य उनके इस निर्णय पर प्रश्न कर रहे थे। मेरे लिए पैसे का महत्व नहीं था, देश के लिए खेलना मकसद था। समय के साथ मैंने महिला क्रिकेट का विकास देखा है और बोर्ड, दर्शकों, प्रशंसकों व मीडिया की दिलचस्पी भी बढ़ी है। आज महिला के लिए प्रोफेशनल क्रिकेट खेलना अधिक कठिन नहीं है। अगर आप में खेल के प्रति लगन है और कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हैं तो आपको पहचान लिया जायेगा। मेरी ट्रेनिंग स्कूल में हुई, जो मेरे घर (मोगा में, पंजाब) से 25 किमी दूर था। अगर मुझसे शाम 6 बजे की आखिरी बस छूट जाती तो दूसरी सवारी तलाशने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। बाद में एडवांस्ड ट्रेनिंग के लिए मैं जालंधर चली गई और वह पहला अवसर था जब मैं अपने पेरेंट्स से दूर रही।’
हरमनप्रीत कौर का प्रोफेशनल क्रिकेट से परिचय उस समय हुआ जब वह 11वीं कक्षा में थीं। क्रिकेट की ख्याति के कारण ही उनकी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ी। लेकिन उन्होंने टीवी पर कभी महिला क्रिकेट नहीं देखी थी और न ही यह कल्पना की थी कि वह एक दिन अपने देश के लिए खेलेंगी और लोग उन्हें टीवी पर खेलता हुआ देखेंगे। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर