सोशल मीडिया को ज़िम्मेदार बनाना बेहद ज़रूरी 

 

बिस तेजी से सूचना प्रोद्यौगिकी का प्रसार हुआ है, उसने लगभग हर शिक्षित शहरी को इंटरनेट प्रेमी बना दिया है। यह भी तय है कि इंटरनेट का उपयोग  करने वाला लगभग हर व्यक्ति किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग से जुड़ा हुआ है। सोशल मीडिया के नाम से जाने जाते संचार के इस अति आधुनिक माध्यम से नए दोस्त बनाने, पुराने दोस्तों को खोजने के साथ ही अभिव्यक्ति का नया और प्रभावी मंच प्रदान किया है।  इसे सोशल मीडिया की महिमा ही कहा जाएगा कि केवल आम आदमी ही नहीं, बड़ी-बड़ी कम्पनियां, सरकारी विभाग, यहां तक कि ट्रैफिक पुलिस भी सोशल मीडिया से जुड़कर लोगों की समस्याओं को बेहतर ढंग से जानने और उनके समाधान के लिए कार्य कर रही है। स्वयं को नेता समझने वाले नेता भी आज जमकर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। अपनी बात अपने सहयोगियों, अनुयायियों और मतदाताओं तक पहुंचाने को बेचैन जो नेता कभी हैंडबिल, अखबार, बैनर, रेडियो, टीवी और जनसभाओं जैसे परम्परागत माध्यमों पर निर्भर थे, आज वही सब फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर और न जाने कितने रूपों में सक्रि य हैं जहां से वे अपने समर्थकों और प्रशंसकों से सीधे संवाद कर सकते हैं, तथा नये लोगों तक भी अपनी पहुंच बना सकते हैं। 
इसीलिए प्रधानमंत्री पद के दावेदारों से अपनी बस्ती का प्रधान बनने का इच्छुक हर व्यक्ति (इसे नेता ही पढ़ें) अपनी पूरी शक्ति के साथ सक्रि य है। अनेक ने तो व्यवस्थित ढंग से अपने गुणगान के लिए वेतनभोगी प्रशिक्षित लोगों की टीम मुस्तैद कर रखी है। कुछ अन्य कम्पनियों पर निर्भर हैं। आज शायद ही कोई ऐसा नेता-अभिनेता हो जिसकी इंटरनेट सक्रियता अर्थात् सोशल मीडिया पर उपस्थिति न हो। ऐसे लोगों के बारे में अनेक बार तो मित्रों अथवा अनुयायियों की संख्या भी समाचार बन जाती है। 
स्वयं प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से नौजवानों को नई जानकारी मिलने और उनकी नई सोच के माध्यम के रूप में स्वीकारा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण हम विश्व के किसी भी कोने में घटित घटना को घर में बैठे-बैठे ही देख पा रहे हैं तो दूसरी ओर हमारे विचारों का विनिमय परिवार के सदस्यों की तरह हो रहा है। इससे सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं व रूढ़ियों के विषय में जागरूकता बढ़ रही है।  इधर हमारे नौजवानों में अपने परिवेश की किसी भी घटना, दुर्घटना की जानकारी और चित्र सांझा करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। अत्याचार, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, लालफीताशाही, सरकारी योजनाओं और जमीनी हकीकत को आम जनता के बीच लाने वाले हर व्यक्ति को पत्रकार जैसा महत्त्व मिला है तो उसका श्रेय सोशल मीडिया को है। इस तरह यह लोकतंत्र के एक मजबूत स्तम्भ के रूप में कार्यरत है। 
सोशल मीडिया विशेष रूप से फेसबुक पर गंदे, गाली-गलौज, धर्म विद्वेष फैलाने वाले चित्र और वीडियो भी रहते हैं। यह भी सत्य है कि कुछ लोगों के लिए सोशल मीडिया एक नशा बन चुका है। वे इसके बिना नहीं रह सकते। अनेक युवा तो दिनभर इससे चिपके रहने के कारण अपने अन्य कर्त्तव्यों के निर्वहन के प्रति उदासीन रहने लगे हैं। उनकी शारीरिक गतिविधियां बहुत कम हो जाना अनेक प्रकार के रोगों का कारण बन सकता है। केवल इतना ही क्यों, जिम्मेवार समझे जाने वाले कुछ नेता भी ट्वीट किए बिना नहीं रह सकते और अनावश्यक  विवादों में फंसकर कुर्सी गंवाने को विवश हो जाते हैं। 
एक ओर यह वरदान है तो शरारती तत्व इसके माध्यम से समाज की शांति को भंग भी कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है, इस पर भी विचार की आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि इसके गलत इस्तेमाल को रोका जाए लेकिन कैसे, यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। यह कार्य केवल सरकार के स्तर पर नहीं हो सकता। वैसे भी अमरीका स्थित सर्वर और वहीं के कानून से संचालित यू-ट्यूब, फेसबुक,  ट्विटर आदि को नियंत्रित करना  आसान नहीं है। विगत वर्ष अमरीकी सरकार पर दबाव के एक हफ्ते बाद कुछ फोटो व वीडियो इन साइटों से हटाये जा सके थे। यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर के लोगों को निशाना बनाने की अफवाह फैलाने वालों की आज तक पहचान भी नहीं हो सकी है। 
सोशल मीडिया पर लगाम कसने की बजाय निगरानी की ठोस प्रणाली विकसित करनी होगी जिससे प्रमाणित हो कि फर्जी फोटो या वीडियो किसने लोड किये। सबसे पहले तो आपत्तिजनक सामग्री की पहचान कर उसे प्रसारित होने से रोकने का कारगर तरीका खोजना होगा और उसके पश्चात दोषी चाहे वह कोई भी हो, बख्शा नहीं जाना चाहिए। 
यह सुस्पष्ट है कि असामाजिक मीडिया को सही राह पर लाना चाहिए लेकिन कैसे, सर्वप्रथम यह चिंतन का विषय है। वोटबैंक के लिए जाति और धर्म के नाम पर चल रही दुकानें बंद किये बिना सोशल मीडिया से इस कलंक को नहीं मिटाया जा सकता। यदि राजनीतिक दलों को इस दलदल से मुक्त कराना है तो देश के हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। दोषी को सजा मिलनी चाहिए लेकिन शातिर नेताओं के उकसावे में आकर अनजाने में गलती करने वाले किसी व्यक्ति को सजा देना जहरीले पेड़ की जड़ काटने की बजाय कुछ पत्तियों को तोड़ना मात्र होगा।  सोशल मीडिया पर लगाम सच्ची सामाजिक सोच वाली नीति ही लगा सकती है लेकिन इसके लिए नीयत का शुद्धिकरण होना चाहिए। जब तक नीयत और नीति ठीक नहीं होगी, सोशल मीडिया ही नहीं, सम्पूर्ण सामाजिक और राजनीतिक परिवेश  एंटी सोशल (असामाजिक) बना रहेगा। इसके लिए कुछ निष्पक्ष लेकिन कानून और तकनीकी विशेषज्ञों की समिति बनाई जानी चाहिए जो सर्वोच्च न्यायालय के अन्तर्गत कार्य करे  क्योंकि सत्ता के अंतर्गत सीबीआई जैसा कोई ‘तोता’ आयोग अथवा प्राधिकरण बनाना जहां संसाधनों का दुरुपयोग होगा, वहीं राष्ट्र के साथ छल होगा। (युवराज)