नशों एवं काले धन से मुक्त नहीं है गुजरात


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चर्चित वाक्य है, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा।’ वह यह भी कहते रहे हैं कि उनकी सरकार ऊपर से नीचे तक राजनीति की सफाई कर रही है लेकिन हकीकत यह है कि हर चुनाव में काले धन का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। खुद भाजपा शासित राज्यों में काले धन की गंगा बह रही है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव आयोग ने जितनी नकदी और शराब पकड़ी है, उससे लग रहा है कि भ्रष्टाचार पहले से कई गुना बढ़ गया है। इन दोनों राज्यों में पिछले चुनाव के मुकाबले तीन से पांच गुना तक ज्यादा ज़ब्ती हुई है। गुजरात प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश है। वहां पिछले 27 साल से भाजपा का शासन है और वहां पर अभी तक करीब 72 करोड़ रुपए की नकदी, शराब और चुनाव में बांटने वाले उपहार जब्त हुए हैं। गुजरात में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार के लिए 40 लाख रुपये खर्च की सीमा तय की है। इस लिहाज से 182 सीटों पर किसी एक पार्टी के सारे उम्मीदवार मिल कर जितना खर्च करेंगे उतना तो अभी तक ज़ब्त हो चुका है। यह भी हैरान करने वाली बात है कि गुजरात शराबबंदी वाला राज्य है लेकिन अभी तक एक लाख 10 हज़ार बोतल शराब जब्त हुई है, जिसकी कीमत 3.86 करोड़ रुपये है। गुजरात में 2017 के चुनाव में कुल ज़ब्ती 27.21 करोड़ रुपए की थी। यानी पांच साल में यह तीन गुना से ज्यादा बढ़ गई है।
आर्थिक तबाही का फैसला
कमाल की बात है कि केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा है कि है कि नवम्बर 2016 में पांच सौ और एक हज़ार रुपये के नोट बंद करने का फैसला बहुत सोच-समझ कर किया गया था। पूरे आठ महीने तक भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ विचार-विमर्श किया गया था। सवाल है कि कैसे कोई सरकार या मुद्रा का विनियमन करने वाली संस्था सोच-समझ कर ऐसा आत्मघाती फैसला कर सकती है? केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि उसने रिज़र्व बैंक की लिखित सलाह के बाद फैसला किया था। असल में जब केंद्र सरकार ने रिज़र्व बैंक के साथ सलाह मशविरा शुरू किया था तब रघुराम राजन रिज़र्व बैंक के गवर्नर थे और वह सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं थे। संभवत: इसीलिए सरकार को फैसला करने में आठ महीने लग गए। रघुराम राजन ने सितम्बर में जब इस्तीफा दिया तब उर्जित पटेल को नया गवर्नर बनाया गया और उसके बाद उनके दस्तखत वाले नए नोटों की छपाई शुरू हुई, जिसके बाद 8 नवम्बर को नोटबंदी का फैसला हुआ। सो, भले ही सरकार ने विचार-विमर्श किया या रिज़र्व बैंक नोटबंदी के फैसले पर राज़ी हुई लेकिन हकीकत यह है कि सरकार ऐसा चाहती थी, तभी ऐसा हुआ। इसलिए यह रिज़र्व बैंक का नहीं सरकार का फैसला था।
सरथ रेड्डी की गिरफ्तारी
दिल्ली की नई शराब नीति में हुए कथित घोटाले की जांच के एक तीर से कई शिकार हो रहे हैं। इस सिलसिले में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के यहां सीबीआई का छापा पड़ा था और पिछले दिनों उनसे पूछताछ भी हुई थी। इस मामले में कई लोग गिरफ्तार हुए हैं। पिछले दिनों ईडी ने अरविंदो फार्मा के मालिक के बेटे और कम्पनी के निदेशक पी. सरथचंद्र रेड्डी को गिरफ्तार किया। असल में दोनों एजेंसियों की जांच से सामने आ रहा है कि इस कथित घोटाले के तार हैदराबाद से जुड़े हैं और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के परिवार की करीबी कम्पनियां दिल्ली में शराब के काम में शामिल हैं। इसलिए सरथ रेड्डी की गिरफ्तारी दिल्ली की सरकार और मनीष सिसोदिया के साथ-साथ चंद्रशेखर राव के परिवार के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। ईडी ने अदालत को बताया है कि सरथ रेड्डी मुख्य साज़िशकर्ताओं में से एक हैं और उनके कार्टेल का दिल्ली में शराब के 30 फीसदी कारोबार पर कब्जा था। ईडी ने यह भी कहा है कि रेड्डी ने आबकारी विभाग के अधिकारियों और आम आदमी पार्टी के नेताओं को एक सौ करोड़ रुपये की रिश्वत दी। आप और टीआरएस नेताओं के साथ इस गिरफ्तारी से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी भी निशाने पर है। वह पहले से ही एजेंसियों के निशाने पर हैं। अब यह नया मामला भी आ गया है। इसके अलावा सरथ रेड्डी 2012 में जगन के खिलाफ  दर्ज हुए मुकद्दमे में भी सह आरोपी है।
भाजपा की तैयारियां
लग तो यह रहा है कि भाजपा के सभी नेता गुजरात के चुनाव में व्यस्त हैं, लेकिन बात ऐसी नहीं है। असल में गुजरात का चुनाव भाजपा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जिम्मे छोड़ा है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 8 रैलियां करेंगे। लेकिन पार्टी के अध्यक्ष और कई महासचिव व केंद्रीय मंत्री लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। पार्टी लोकसभा की उन 144 सीटों पर बड़ी मेहनत कर रही है, जहां पिछली बार वह जीत नहीं पाई थी। ऐसी सीटों की ज़िम्मेदारी केंद्रीय मंत्रियों को दी गई है। केंद्रीय मंत्रियों ने इन सीटों को लेकर जो पहली रिपोर्ट दी थी, उस समय की बैठक में अमित शाह और जे.पी. नड्डा दोनों शामिल हुए थे। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों की दूसरी बैठक हुई। दो दिन चली इस बैठक की अध्यक्षता नड्डा ने की। चुनाव की वजह से अमित शाह इसमें शामिल नहीं हुए। बैठक में मंत्रियों ने अपने ज़िम्मे मिली सीट के बारे में जानकारी दी। बताया जा रहा है कि दिसम्बर के बाद केंद्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट पर कार्रवाई होगी। इन 144 कमज़ोर सीटों पर चल रही एक्सरसाइज का कोऑर्डिनेशन पार्टी के महासचिव विनोद तावड़े देख रहे हैं, जो बिहार के भी प्रभारी हैं। उनके साथ दूसरे महासचिव सी.टी. रवि भी तालमेल का काम देख रहे हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी इन सीटों पर सबसे पहले उम्मीदवार तय करेगी।
कांग्रेस में अलग-अलग बर्ताव
कांग्रेस में यह तय हुआ था कि जो भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेगा, उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा। इसी नियम के चलते पार्टी के आला नेता चाहते थे कि अशोक गहलोत अध्यक्ष पद का नामांकन दाखिल करने से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें। हालांकि गहलोत की जगह खड़गे चुनाव लड़े और अध्यक्ष बने। अध्यक्ष के नामांकन से पहले खड़गे ने राज्यसभा में पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था। नामांकन के बाद कांग्रेस ने एक और नियम बनाया कि जो भी नेता किसी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करना चाहता है, उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा। इस नियम की वजह से कांग्रेस पार्टी के तीन प्रवक्ताओं गौरव वल्लभ, दीपेंद्र हुड्डा और नासिर हुसैन ने इस्तीफा दे दिया। अब ये पार्टी के प्रवक्ता नहीं हैं। इन तीनों को खड़गे का प्रचार करना था। मज़े की बात यह है कि तीनों प्रवक्ताओं के इस्तीफे मंजूर हो गए लेकिन खड़गे का इस्तीफा मंज़ूर नहीं हुआ। यह भी मज़ेदार बात है कि खड़गे का इस्तीफा कांग्रेस अध्यक्ष के पास ही रह गया। अध्यक्ष की ओर से नेता बदलने की सूचना राज्यसभा सचिवालय या सभापति को नहीं दी गई। अब यह देखना दिलचस्प है कि इस्तीफा देने वाले फिर से कब तक पद पर लौटते हैं और खड़गे कब तक दो पदों पर बने रहते हैं।