श्रम और उत्पादकता से जोड़ा जाये बढ़ती आबादी को

15 नवम्बर को दुनिया की आबादी 8 अरब को पार कर गई। भारत के संदर्भ में देखें तो हैरानी में डालने वाली बात यह होगी कि 2023 में हम आबादी की दृष्टि से चीन से आगे निकल जाएंगे। बढ़ती जनसंख्या के जो आंकड़े हैं, वे भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए जहां एक बड़ी चुनौती हैं, वहीं उन्हें वरदान बनाने की ज़रूरत है। हालांकि जागरूकता और परिवार नियोजन के उपायों के चलते दुनिया में जन्म दर घटी है। जनसांख्यिकीय विश्लेषण का निष्कर्ष बताता है कि 1950 के बाद वर्तमान में जन्म दर सबसे कम है। अतएव यहां सवाल उठता है कि फिर आबादी का घनत्व क्यों बढ़ रहा है? 
दरअसल चिकित्सा सुविधाओं और एक वर्ग विशेष की आर्थिक हैसियत बढ़ाने से औसत उम्र बढ़ रही है। इस दायरे में आने वाले लोग उत्पादकता से जुड़े नहीं रहने के बावजूद उच्च श्रेणी का जीवन जी रहे हैं। नतीजतन यह आबादी जापान, चीन और दक्षिण कोरिया की तरह भारत के युवाओं को रोज़गार में बाधा बन रही है। भारत में सबसे अधिक बेरोज़गारी 15 से 36 आयु वर्ग के युवाओं में है। यदि हम पीपुल्स कमीशन की रिपोर्ट का उल्लेख करें तो 15 से 29 आयु समूह में बेरोज़गारों की संख्या 27.8 करोड़ है। 
हालांकि इसमें अनेक बेरोज़गार ऐसे हैं जिनके पास काम तो है, लेकिन आमदनी का अनुपात संतोषजनक नहीं है। भारत के सीमांत राज्यों में विदेशियों की घुसपैठ और कमज़ोर जाति समूहों का धर्मांतरण भी आबादी का घनत्व बिगाड़ते हुए रोजगार के संकट के साथ स्थानीय मूल निवासियों से टकराव के हालात उत्पन्न कर रहा है। इसीलिए जनसंख्या नीति में समानता की बात की जा रही है। 
2023 में चीन से हमारी आबादी अधिक हो जाएगी, तब हमें चीन से यह सबक लेने की ज़रूरत है कि उसने अपने मानव संसाधनों को किस तरह से श्रम और उत्पादकता से जोड़ा। चीन में बढ़ी आबादी के बावजूद रोज़गार का संकट भारत की तरह नहीं गहराया। जाहिर है, चीन की उन्नति और उत्पदकता में इसी आबादी का रचनात्मक योगदान रहा है। सस्ते, कुशल एवं अर्द्ध-कुशल लोगों से उत्पादन कराकर चीन ने अपना माल दुनिया के बाज़ारों में भर दिया है जबकि भारत बड़ी कम्पनियों को सब्सिडी देने के बावजूद स्वदेशी उत्पादन में आबादी के अनुपात में उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर पाया है।
 मेक इन इंडिया के नाम पर हाल ही में दो कम्पनियों हीरो इलेक्ट्रिक और ओकीनावा की 370 करोड़ रुपये की सब्सिडी की राशि देने पर सरकार ने रोक लगा दी है। सरकार ने फास्टर एडॉशसन एंड मैन्यूफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम)-2 योजना के तहत दो-पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहित करने हेतु 10,000 करोड़ रुपये का बजट तय किया है। भारी उद्योग मंत्रालय की तरफ  से प्रत्येक इलेक्ट्रिक वाहन को सब्सिडी दी जाती है। इलेक्ट्रिक स्कूटर पर 15000 रुपये प्रति किलोवाट के हिसाब से सब्सिडी दी जाती है लेकिन यह सब्सिडी तभी दी जाएगी, जब उत्पादन स्वदेशी के स्तर पर किया जाए लेकिन सरकार ने जब जांच की तो पाया कि इन कम्पनियों ने इन वाहनों में चीन से आयात कल-पुर्जे इस्तेमाल किए हैं। इसी कारण दो पहिया वाहनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। इस धोखाधड़ी के चलते हीरो इलेक्ट्रिक की 220 करोड़ और ओकीनावा की 150 करोड़ रुपये की सब्सिडी रोक दी गई। इन धोखाधड़ियों के चलते भी भारत स्वदेशीकरण के साथ बेरोज़गारी से पार नहीं पा रहा है। 
यदि हम चीन में ज्ञान-परम्परा से दीक्षित लोगों को रोज़गार देने की बात करें तो वहां सरकार या कम्पनी द्वारा गांव-गांव कच्चा माल पहुंचाया जाता है। जब वस्तु का निर्माण हो जाता है, तो उस माल को लाने और मौके पर ही भुगतान करने की जबावदेही संस्थागत होती है। इसका फायदा यह होता है कि ग्रामीण अपने घर में ही वस्तु का उत्पादन कर लेता है। नतीजतन वस्तु की लागत न्यूनतम होती है। यदि यही व्यक्ति शहर में जाकर उत्पदकता से जुड़े तो उसे कमाई की बड़ी राशि रहने, खाने-पीने और यातायात में खर्च करनी पड़ती है। भारत में उत्पादन के छोटे-बड़े कारखाने शहरों में हैं। लिहाजा वस्तु की लागत अधिक आती है। चीन से होली, दिवाली और रक्षाबंधन से जुड़ी जो वस्तुएं निर्यात होती हैं, उनका उत्पादन गांव में ही होता है। जाहिर है, यदि बड़ी जनसंख्या उत्पादन से जुड़ जाए तो कोई समस्या नहीं रह जाती है। वह समस्या तब बनती है, जब उसके हाथों में काम न हो। जापान और दक्षिण कोरिया में जनसंख्या का घनत्व भारत से ज्यादा है। इसके बावजूद ये देश हमसे अधिक समृद्ध होने के साथ स्वदेशी प्रौद्योगिकी से उत्पादन और उसके निर्यात में हमसे आगे हैं। अतएव भारत को चीन, जापान और कोरिया से सीख लेने की ज़रूरत है।       
लोगों को रोज़गार से जोड़ने की बात जनसंख्या वृद्धि पर एक नीति बनाये बिना बात बनने वाली नहीं है। दो बच्चों की यह नीति सभी धर्मों एवं समुदायों के लोगों पर समान रूप से लागू हो क्योंकि जनसंख्या एक समस्या भी है और एक साधन भी लेकिन जिस तरह से देश के सीमांत प्रांतों और कश्मीर में जनसंख्यात्मक घनत्व बिगड़ रहा है, उस संदर्भ में ज़रूरी हो जाता है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून जल्द वजूद में आए। कश्मीर, केरल समेत अन्य सीमांत प्रदेशों में बिगड़ते जनसंख्यात्मक अनुपात के दुष्परिणाम कुछ समय से प्रत्यक्ष रूप में देखने में आ रहे हैं। 
कश्मीर में पुश्तैनी धरती से 5 लाख विस्थापित हिंदुओं का पुनर्वास धारा-370 हटने के बाद भी आतंकी घटनाओं के चलते नहीं हो पाया है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण असम व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बदलते जनसंख्यात्मक घनत्व के कारण जब चाहे तब दंगों के हालात  उत्पन्न हो जाते हैं। यही हालात पश्चिम बंगाल में देखने में आ रहे हैं। जबरिया धर्मांतरण, पूर्वोत्तर और केरल राज्यों में बढ़ता ईसाई वर्चस्व ऐसी बड़ी वजहें बन रही हैं, जो देश के मौजूदा नक्शे की शक्ल बदल सकती हैं। लिहाजा परिवार नियोजन के एकांगी उपायों को खारिज करते हुए आबादी नियंत्रण के उपायों पर नए सिरे से सोचने की ज़रूरत है। क्योंकि ये घुसपैठिये मूल निवासियों को परम्परागत संसाधनों से बेदखल कर बेरोज़गारी बढ़ाने काम कर रहे हैं। 
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