ईरानी फुटबॉलर्स के खामोश विरोध के सरोकार



अंतर्राष्ट्रीय मैचों में अब तक यह परम्परा बनी हुई है कि खेल आरंभ होने से पहले मुकाबला करने जा रही दोनों टीमों का राष्ट्रगान गाया जाता है, जिसके दौरान खिलाड़ी सावधान खड़े रहते हैं और अपने अपने देश का राष्ट्रगान भी गाते हैं। लेकिन कतर में खेले जा रहे 2022 फीफा विश्व कप में ईरान बनाम इंग्लैंड मुकाबले से पहले ईरान के फुटबॉलर्स अपने देश का राष्ट्रगान बजने के दौरान खामोश खड़े रहे। तेहरान के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनके इस खामोश विरोध प्रदर्शन को दुनिया के देशों ने न केवल देखा बल्कि वे अपने-अपने स्थानीय संदर्भों की पृष्ठभूमि में यह सोचने के लिए भी मजबूर हो गये कि दमनकारी सरकारें अपने नागरिकों को जबरन देशभक्ति के प्रतीकों का पालन नहीं करा सकती हैं। इस दृष्टि से देखें तो ईरान के फुटबॉलर्स ने अपने खामोश विरोध प्रदर्शन से संसार को हिलाकर रख दिया है। 
 बहरहाल, इस खामोश विरोध प्रदर्शन जिसमें यह बात भी शामिल है कि ईरानी फुटबॉलर्स ने अपने फेसबुक प्रोफाइल को ब्लैंक रखा है, को ईरान में सामाजिक परिवर्तन के लिए चल रही विशाल लहर के संदर्भ में समझना आवश्यक है। गौरतलब है कि कुछ माह पहले ईरान की नैतिक पुलिस ने ‘अनुचित कपड़े’ पहनने के आरोप में 22 वर्षीय महसा अमीनी को गिरफ्तार किया था, जिनकी बाद में मौत हो गई, शायद थर्ड डिग्री यातनाएं देने के कारण। तभी से ईरान में अमीनी को इन्साफ  दिलाने और हिजाब के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने अपने हिजाब हटाकर प्रदर्शन किये हैं। इब्राहीम रईसी की सरकार ने इन हिजाब-विरोधी प्रदर्शनों को ‘अवैध’ कहते हुए इन पर विराम लगाने के लिए अपने पुराने दमनकारी तरीके फिर से अपना लिए हैं, जिनमें प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाना, जेलों में डालना व फर्जी मुकद्दमे चलाकर सज़ा-ए-मौत देना शामिल हैं । अब तक इन प्रदर्शनों में 419 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 15,000 से ज्यादा लोग जेलों में बंद हैं, जिनमें से लगभग 1000 को फांसी दी जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने तेहरान से आग्रह किया है कि हिजाब विरोधी प्रदर्शनकारियों को सज़ा-ए-मौत न दी जाये। ध्यान रहे कि ईरान ने असना अशरी (12 इमामों को मानने वाला शिया सम्प्रदाय) के नैतिक मूल्यों, जिनमें महिलाओं के लिए हिजाब पहनना भी शामिल है, का पालन कराने के लिए नैतिक पुलिस का गठन किया हुआ है जिसे नियमों का पालन न करने वालों को हिरासत में लेने व सज़ा देने का अधिकार हासिल है।
पिछले एक दशक के दौरान ईरान में गुड्स व सर्विसेज की कीमतों में 1,135 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है यानी औसतन 100 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक वृद्धि हुई है, जबकि जीवनस्तर में ज़बरदस्त गिरावट आयी है। इस साल के शुरू में तेहरान ने कुछ आवश्यक चीज़ों के आयात पर सब्सिडी देना बंद कर दिया, जिससे महंगाई आसमान स्पर्श करने लगी। अगर ईरान खुलकर अपना तेल बेचने लगे तो ग्लोबल एनर्जी कीमतों में काफी कमी आ सकती है। ग्लोबल महंगाई के लिए कुछ हद तक अमरीका द्वारा थोपी गईं पाबंदियां भी जिम्मेदार हैं। इन सब कारणों ने वर्तमान प्रदर्शनों के लिए जमीन तैयार की है लेकिन पश्चिम एशिया में ईरान का जो भौगोलिक व स्ट्रेटेजिक महत्व है, उसके चलते अगर वह पूर्ण ध्वस्त हो जाता है तो उसके गंभीर परिणाम होंगे। साथ ही इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए कि ईरान के चीन से संबंध बेहतर होते जा रहे हैं और ऐसे में कहीं ऐसा न हो जाये कि वह पूरी तरह से चीन की गोद में चला जाये। यह आशंकित स्थिति भारत के लिए हानिकारक होगी क्योंकि नई दिल्ली को अ़फगानिस्तान व एनर्जी सम्पन्न केंद्रीय एशिया से कनेक्टिविटी के लिए तेहरान की ज़रूरत है। चीन-ईरान एक्सिस अमरीका के लिए भी अच्छा नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प की अनावश्यक आक्रामकता मुख्य कारण है कि तेहरान की सत्ता राजनीति में नरमपंथियों पर चरमपंथी हावी हो गये। यह एक और वजह है कि अमरीका के बाइडेन प्रशासन को ईरान परमाणु डील पर पुन: वार्ता आरंभ करनी चाहिए और तेहरान को आर्थिक छूट प्रदान करनी चाहिए, जिसकी उसे अति आवश्यकता है। इससे शायद आयतुल्ला प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध नरम पड़ जायें, जोकि ईरानी फुटबॉलर्स के खामोश प्रदर्शन की मुख्य मांग प्रतीत होती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर