स्वैच्छिक मृत्यु के संबंध में रुख स्पष्ट करे सरकार


किस्सागोई किसी हालत को नहीं बदलती, परन्तु हालत की गम्भीरता को समझने में सहायक ज़रूर होती है। वस्तविक ज़िन्दगी से ली गई भिन्न-भिन्न भूमिकाओं तथा उनके जीवन की घटनाओं का ज़िक्र करना चाहूंगी—
पहला- मुम्बई के लगभग 80 वर्ष के एक दम्पति ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर स्वैच्छिक मृत्यु की अपील की थी। प्रिंसीपल तथा सरकारी कर्मचारी रह चुके इस दम्पति की अपील के पीछे एक भय है कि कहीं वह किसी लाइलाज या भयावह बीमारी से पीड़ित न हो जाएं तथा समाज में कुछ योगदान डालने के समर्थ न रहें।
दूसरा-राजस्थान के एक गांव में रहने वाली महिला, पिछले 18 वर्षों से कमरे से बाहर नहीं निकली। यह लाचार महिला तथा उसकी मां ऐसी बीमारी से पीड़ित थे, जिसमें वह बिना सहारे स्वयं न उठ सकती है, न कुछ खान-पान कर सकती है। लगभग 5 वर्ष पूर्व ऐसी ही बीमारी से पीड़ित उसकी मां की मृत्यु हो गई थी तथा जाने से पहले वह बेटी के लिए मृत्यु की दुआ मांगती।
तीसरा-कनाडा के एक शहर में एक 80 वर्षीय व्यक्ति ने डाक्टर की सहायता से मरने भाव आत्महत्या करने की अपील की थी। उसे ज़िन्दगी से खतरे वाली कोई बीमारी नहीं थी। मानसिक परेशानी भाव डिप्रैशन के शिकार इस व्यक्ति की सुनने की शक्ति कम हो गई थी। हालांकि परिवार तथा उसकी देखभाल कर रही नर्स इस अपील के विरुद्ध थी, परन्तु उस देश में स्वैच्छिक मृत्यु कानून होने के कारण सरकार ने उसकी मांग मान ली, जबकि परिवार द्वारा इसे हत्या करार दिया गया। 
चौथा-अगस्त में एक महिला ने स्वै-इच्छत मृत्यु हेतु अपनी सहेली को स्विटज़रलैंड जाने से रोकने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। हालांकि मामला सार्वजनिक होने तथा इस कारण उसकी सहेली पर पड़ने वाले मानसिक दबाव के कारण उसने यह याचिका वापिस ले ली थी।
इन चारों किस्सों का बहाव जो भी हो, परन्तू, मूल में एक ही चीज़ है स्वैच्छिक मृत्यु। भाव सुखद मृत्यु या स्वैच्छिक मृत्यु का विषय स्वयं में काफी उलझनदार तथा पेचीदा है, जिसका कोई भी किनारा गलत खींचे जाने पर धागा और भी उलझ सकता है।
स्वैच्छिक मृत्यु को लेकर अलग-अलग देशों के भिन्न-भिन्न कानून हैं। कनाडा सहित कई देशों जिनमें नकसमबर्ग, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैंड, स्पेन तथा आस्ट्रेलिया के कुछ देश शामिल हैं, जिनमें ‘यूथेनसिया’ भाव स्वैच्छिक मृत्यु जायज़ है जबकि भारत सहित अन्य कई देशों में स्वैच्छिक मृत्यु पर पाबन्दी है, भाव यह गैर-कानूनी है।
स्वैच्छिक मृत्यु की तह तक जाने से पूर्व इसके भिन्न-भिन्न स्वरूपों तथा ढंग-तरीकों की चर्चा करते हैं।
परिभाषा के पक्ष से स्वैच्छिक मृत्यु दो तरह की होती है। ‘एक्टिव’ तथा ‘पैसिव’। एक्टिव यूथेनसिया में लाइलाज बीमारी से पीड़ित तथा दर्द से गुज़र रहे व्यक्ति को दवाई या टीका लगा कर खत्म किया जाता है। जबकि पैसिव यूथेनसिया में ऐेसे मरीज़ जोकि सिर्फ दवाइयों के सहारे सांस ले रहे हों, उनकी दवाई बंद करना या फिर मशीनों के माध्यम से दी जा रही सांस बंद कर दिये जाते हैं। स्वैच्छिक मृत्यु के दूसरे रूप की चर्चा करें तो उसमें ‘वालंटरी’ भाव स्वै-इच्छा से तथा ‘नान-वालंटरी’ भाव बिना स्वै-इच्छा के मृत्यु शामिल है।  जैसे कि नाम से स्पष्ट है कि वालंटरी में मरीज़ की इच्छा शामिल होती है जबकि नान-वालंटरी में मरीज़ की इच्छा शामिल नहीं होती। ऐसा ज्यादातर उस समय होता है जब मरीज़ ऐसी हालत में हो, जहां उसकी इच्छा पूछना सम्भव न हो।
विभिन्न देशों में स्वैच्छिक मृत्यु की धारना में डाक्टरों की भूमिका को लेकर ही भिन्न-भिन्न विचार हैं। इस भूमिका में ‘उद्देश्य’ सलाह आदि शब्दों का इस्तेमाल अहम है।
उदाहरण के तौर पर जिस स्वैच्छिक मृत्य में डाक्टर मरीज़ को सुखद मृत्यु देने के लिए दवाई द्वारा सहायता करता है। ऐसी क्रिया 7 देशों में कानूनी तौर पर जायज़ है। यह बैलज़ियम, कनाडा, कोलम्बिया, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैंड, स्विटज़रलैंड तथा स्पेन आदि देश हैं। इसके अलावा आस्ट्रेलिया के कई भागों में भी इसे कानूनी मान्यता दी गई है।
अमरीका सहित कुछ अन्य देशों में सहायता से आत्महत्या जिसमें मरीज़ स्वयं ही डाक्टर द्वारा दी गई दवाई किसी चीज़ में मिला कर ले लेता है, की इजाज़त है। इन देशों में बैल्जियम तथा नीदरलैंड में दो दशकों से अधिक समय से यह प्रक्रिया कानूनी है। दोनों देशों में ऐसे सम्भावित मामलों की जांच हेतु आयोग द्वारा मासिक जायज़ा लिया जाता है। इसके अलावा स्वैच्छिक मृत्यु का विकल्प भाव विकल्प देने से पूर्व मरीज़ को उपचार के सभी तरीके अपनाने ज़रूरी हैं। यहां बताते चलें कि लगभग 30 वर्षों की सार्वजनिक बहस के बाद 2011 में नीदरलैंड में स्वैच्छिक मृत्यु यूथेनसिया तथा मैडीकल सहायता से आत्महत्या को पूरी तरह जायज़ करार दिया गया। यहां स्वैच्छिक मृत्यु हेतु मरीज़ को लाइलाज बीमारी होने पर कोई शर्त नहीं है। यहां तक कि अक्तूबर 2020 में 1 से 12 वर्ष के ऐसे बच्चे को भी स्वै-इच्छा मृत्यु (यूथेनसिया) की इजाज़त दे दी गई थी जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित थे। सरकार के अनुसार छोटे बच्चों को दर्द से मुक्ति दिलाने हेतु यह बदलाव किया गया है। हालांकि 16 वर्ष से छोटे बच्चों के लिए ऐसी मृत्यु चुनने की माता-पिता की इजाज़त ज़रूरी है।
* स्पेन में मार्च 2021 से स्वैच्छिक मृत्यु को कानूनी मान्यता दी गई है, हालांकि इसके लिए कुछ शर्तें ज़रूरी हैं, जिनमें मरीज़ गम्भीर तथा लाइलाज बीमारी से पीड़ित होना चाहिए, उसे स्पेन का नागरिक होना चाहिए तथा उसकी ओर से दो बार अपील की जानी चाहिए। यहां वर्णनीय है कि स्पेन में इस कानून के क्रियान्वयन में आने से पूर्व मृत्यु में सहायता करने वाले को 10 वर्ष की सज़ा दी जाती थी।
जहां स्वैच्छिक मृत्यु कानून नहीं है
कई देशों में पैसिव यूथेनसिया की इजाज़त है, परन्तु एक्टिव तथा डाक्टरी सहायता द्वारा मृत्यु गैर-कानूनी है, जिनमें चिल्ली, चैक गणराज्य, फिनलैंड, तुर्की, इज़रायल आदि देश शामिल हैं। आयरलैंड में डाक्टर किसी की मृत्यु के लिए प्रत्यक्ष रूप से नहीं कह सकता परन्तु रिश्तेदार या मरीज़ की अपील पर लाइफ स्पोर्ट सिस्टम को बंद करना गैर-कानूनी नहीं है। (शेष कल)
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