औरत, ज़िंदगी, आज़ादी


पिछले अढ़ाई महीनों से ईरान में महिलाओं द्वारा हिजाब के खिलाफ चल रहा आंदोलन ऐसा सख्त और भयानक रूप धारण कर जाएगा, इसकी पहले कोई उम्मीद नहीं की जाती थी, परन्तु पिछले 4 दशकों से जो कुछ इस देश में घटित होता रहा है, उसने लगातार सुलगना शुरू कर दिया था, जो अब ज्वाला के रूप में बदल चुका है। 43 साल पहले भाव साल 1979 में पश्चिम देशों की तर्ज पर ईरान को चलाने वाले शाह रज़ा पहिलवी का तख्त उलटने के बाद यहां आइतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक हुकूमत कायम कर दी गई थी, जिसने देश पर शरियत कानून सख्ती से लागू किये थे। इसी समय से ही चाहे इस प्रबंध के विरोध में आवाज़ें उठने लगीं थी पर तानाशाह की शक्ति के आगे लोगों को बोलने का मौका नहीं मिलता था। अंतत: लोगों के सब्र का प्याला भर गया। अढ़ाई महीने पहले ईरान के कुर्दिस्तान इलाके की एक लड़की माशा अमीना को हुकूमत द्वारा स्थापित की गई इखलाकी पुलिस ने हिजाब संबंधी नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था, इसके कुछ दिनों के बाद पुलिस की सख्ती के कारण उसकी मौत हो गई थी। 
उसके बाद ईरानी महिलाओं और पुरुषों में उठा गुस्सा पूरे देश में किसी न किसी रूप में भड़कता रहा। तानाशाह शासकों की सख्ती की परवाह न करते हुए लोग गलियों, बाज़ारों में उतर आये हैं। अब तक इस आंदोलन में 300 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। 43 साल पहले जिस आइतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में लोगों ने शाह का तख्ता उलट दिया था उसी खुमैनी के घर को म्यूज़ियम में तबदील कर दिया गया था, जिसको लोगों के रोष ने आग की लपटों के हवाले कर दिया। खुमैनी की सोच वाला ही वहां के उच्च धार्मिक नेता अली खामनेई के खिलाफ भी लोग उठ खड़े हुए हैं। ईरान के ही कुर्दिस्तान क्षेत्र में कुर्दों ने भी गत 50 वर्ष से अपनी आज़ादी के लिए सशस्त्र आन्दोलन चलाया हुआ है। अब अधिकतर बागी हुईं महिलाएं तथा पुरुष कुर्दिस्तान में जाकर बागी कुर्दों से मिल रहे हैं। कुर्दिस्तान फ्रीडम पार्टी के नेता हुसैन यज़दानपनाह ने कहा है कि हिजाब (शरियत कानूनों) विरोधी महिलाओं के साथ सरकार क्रूरता वाला व्यवहार कर रही है। यहां तक कि कुर्दिस्तान के कई क्षेत्रों में पिछले दिनों बम भी बरसाये गये हैं। हालात यहां तक बन गये हैं कि वहां के समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को निशाना बनाया जाने लगा है। फिल्मी हस्तियों तथा कलाकारों की भी धड़ाधड़ गिरफ्तारियां हो रही हैं। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि आज बेहद चर्चित अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल के विश्व कप में ईरान के खिलाड़ियों ने मैच शुरू होने से पहले अपने देश के राष्ट्रीय प्रार्थना को भी गाने से इन्कार कर दिया था। चाहे बौखलाया ईरान इस घटनाक्रम के लिए कुछ विदेशी शक्तियों पर इल्ज़ाम लगा रहा है परन्तु यह बात किसी से छिपी नहीं रही कि यह ईरानियों के ही गुस्से का लावा फूट रहा है। 
भारी संख्या में महिलाएं ‘औरत, ज़िन्दगी, आज़ादी’ के नारे लगा रही हैं। आज अधिकतर देशों में धर्म तथा मर्यादा के नाम पर महिला को दबाये जाने का कर्म जारी है। उसे खुल कर जीने की आज़ादी में अनेक बंदिशें आयत की हुई हैं। नि:संदेह ईरान में महिलाओं के इस आन्दोलन का दूसरे देशों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि अब चली ताज़ा तथा तेज़ हवा को रोका जा सकना मुश्किल है। आज ऐसी पाबंदियों वाले समाज में घिरी महिला खुल कर जीना चाहती है। ऐसे अधिकार के लिए ही वह जगह-जगह सक्रिय हो रही हैं। उसकी इस दिशा में सक्रियता को अब रोका जाना मुश्किल लगता है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द