नवजोत सिद्धू की सम्भावित रिहाई को लेकर राजनीतिक गलियारों में छिड़ी चर्चा


चांद का ख़्वाब उजालों की नज़र लगता है।
तू जिधर हो कर गुज़र जाए खबर लगता है।
वसीम बरेलवी का यह शे’अर नवजोत सिंह सिद्धू की शख्सियत के एक पक्ष पर पूरा उतरता है कि वह जहां से भी गुज़र जाएं या जब भी बोलें ़खबर बन जाती है। अब सिद्धू की रिहाई का समाचार पंजाब के राजनीतिक आकाश पर छाया हुआ है कि जैसे ही नवजोत की रिहाई होगी, उससे पंजाब कांग्रेस तथा पंजाब की राजनीति में कोई भूकम्प आ जाएगा।
नि:सन्देह नवजोत सिंह सिद्धू की सबसे बड़ी विशेषता उनकी इमानदार छवि और पंजाब का एजेंडा है। परन्तु उनकी सबसे बड़ी कमी यह है कि उनके दोस्त बहुत जल्द बदलते हैं, जिस  तरह का व्यवहार पिछले विधानसभा चुनावों में देखने को मिला, उसने यह भी साबित किया कि सिद्धू नि:सन्देह एक अच्छे व्यक्ति हैं परन्तु वह एक योग्य राजनीतिज्ञ का प्रभाव बिल्कुल नहीं बना सके।
अब देखने वाली बात है कि एक पुराने मामले में सिद्धू का जेल जाना उनके लिए रंग बिखेरता है, क्योंकि इस दौरान उनके पास आत्म-चिन्तन के लिए लम्बा समय था। देखने वाली बात होगी कि इस दौरान वह अपनी कमज़ोरियों को काबू करने में सक्षम हुए हैं या नहीं? उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी ‘मैं’ है, वह किसी की बात सुनने के स्थान पर सिर्फ अपनी बात कहने को ठीक समझने को ही अधिक प्राथमिकता देते रहे हैं। यह तो अब उनके जेल से बाहर आने के बाद उनके द्वारा उठाये जाने वाले कदम ही बताएंगे कि उन्होंने कोई आत्म-चिन्तन किया भी है या नहीं?
वैसे जिस प्रकार सिद्धू की रिहाई पर उनके स्वागत हेतु तैयारियां की जा रही हैं तथा जिन नेताओं द्वारा यह तैयारियां की जा रही हैं, उससे तो यह प्रभाव बनता है कि उनके आने से कांग्रेस जो पहले ही बहुत बुरी स्थिति में है, की गुटबंदी और तीव्र हो सकती है।
हालांकि एक बार फिर चर्चा है कि प्रियंका गांधी द्वारा सिद्धू को कोई पत्र लिख कर पंजाब कांग्रेस में उन्हें विश्वास दिया गया है, परन्तु जहां तक हमारी जानकारी है उसके अनुसार इस में तो कोई सन्देह नहीं कि सिद्धू की प्रियंका गांधी के साथ बहुत निकटता है तथा वह समय-समय पर सिद्धू के पक्ष में स्टैंड भी लेती रही हैं, परन्तु इसके बावजूद सिद्धू के जेल से बाहर आते ही उन्हें पंजाब कांग्रेस का प्रमुख बना देना या कोई अन्य महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी देना सम्भव नहीं होगा। फिर इस समय प्रियंका गांधी की भी कांग्रेस में पहले की भांति पकड़ नहीं रही कि वह हर सही-गलत बात को मनवा सकें। हमारे समक्ष उदाहरण है कि चाहे हिमाचल में कांग्रेस की जीत में प्रियंका गांधी की अधिक भूमिका थी परन्तु मुख्यमंत्री के चयन के मामले में उनकी पेश नहीं चली। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि पंजाब कांग्रेस में सिद्धू समर्थकों के मुकाबले सिद्धू विरोधी अधिक भारी हैं तथा उन्हें जल्दबाज़ी में अध्यक्ष घोषित नहीं किया जा सकता। यदि उन्हें अध्यक्ष बनाना भी हुआ तो भी कांग्रेस को ऐसा माहौल बनाने में काफी समय लगेगा।
महासचिव की होगी पेशकश?
हमारी जानकारी के अनुसार सिद्धू के जेल से बाहर आने पर उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनने की पेशकश करने की सम्भावना अधिक है। हालांकि अधिक सम्भावना यह है कि वह यह पेशकश ठुकरा देंगे तथा पंजाब में काम करने की बात ही करेंगे। यदि वह यह पेशकश स्वीकार कर लें तो इससे उनका रूतबा तो बढ़ेगा साथ ही वह कांग्रेस पार्टी के लिए लाभदायक भी सिद्ध होंगे। यदि वह राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में देश भर में लोकसभा चुनावों हेतु राष्ट्रीय नेता के रूप में पार्टी के लिए काम करेंगे, तो इससे भी कांग्रेस को भारी राजनीतिक लाभ मिल सकता है। 
इस समय कांग्रेस का लक्ष्य 2024 के चुनाव हैं। इसलिए उन्हें 2024 के चुनावों हेतु काम करने के लिए कहे जाने  की सम्भावनाएं अधिक हैं तथा उनकी पत्नी को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के परिवार विरुद्ध पटियाला से लोकसभा उम्मीदवार या फिर अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने हेतु कहा जा सकता है।
सिद्धू का ‘पंजाब एजेंडा’
इसमें कोई सन्देह नहीं कि नवजोत सिंह सिद्धू का अपना एक अलग ‘पंजाब एजेंडा’ है, जिसमें पंजाब में कई  माफियाओं को नकेल डालने एवं पंजाब की डूबती अर्थ-व्यवस्था को सुधारने के अच्छे उपाय हैं। यदि यह एजेंडा कभी लागू होता है तो पंजाब का बहुत भला हो सकता है। परन्तु सिद्धू के पास जब भी शक्ति आई वह यह एजेंडा लागू करवाने को भूल कर उन्हीं लोगों के साथ बैठे दिखाई दिए हैं जिन पर ऐसे माफिया के संरक्षक होने के आरोप लगते रहे। अब भी आश्चर्यजनक तौर पर उनकी वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के साथ निकटता चर्चा में है। एक तरफ मुख्यमंत्री मान के लिए भी आने वाले दिन ज्यादा अच्छे नहीं आ रहे, क्योंकि दिल्ली से अरविन्द केजरीवाल के करीबी जिस प्रकार पंजाब प्रशासन में दखल दे रहे बताएं जाते हैं, उससे तो प्रतीत नहीं होता कि भगवंत मान ज्यादा समय उन्हें बर्दाश्त करेंगे। पंजाब के कई मामलों में टकराव की सम्भावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। इसलिए चाहे अभी नहीं परन्तु आने वाले महीनों में ऐसे समीकरण भी बन सकते हैं कि भगवंत मान और केजरीवाल में टकराव पैदा हो जाए। यदि ऐसा होता है तो दूसरी तरफ कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू को मनमज़र्ी करने का अवसर नहीं मिलता तो ऐसी सम्भावनाओं से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि मान तथा सिद्धू की निकटता कोई श़गूफा सामने ले आये। वैसे अभी तो नवजोत सिंह सिद्धू की हालत शऊज़ा ़खावर के इस शे’अर जैसी ही है।
क्या मुनज्जिम से करें हम 
अपने मुस्तकबिल की बात,
हाल के बारे में हम को 
कौन सा मालूम है।
(मुनज्जिम-ज्योतिषी) (मुस्तकबिल-भविष्य)
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट समराला रोड, खन्ना-141401
-मो. 92168-60000