नव वर्ष का संकल्प: सात्विक जीवन जीने से मिलती है दीर्घायु

नए साल का आ़गाज़ देश में कोरोना की आहट के फिर से सुनाई देने का संकेत दे रहा है  लेकिन हमें यह संकेत मीडिया द्वारा दिखाई जा रही कवरेज और सरकार द्वारा तैयार होने के आह्वान से ही सचेत होने पर मजबूर करता है। अगर हम ज़ोर देकर सोचें तो कोरोना जैसे कई वायरस हमारे आस-पास सदैव ज़िंदा रहते हैं, जिनसे सिर्फ  स्वस्थ जीवन शैली से ही बचा जा सकता है। आज की युवा पीढ़ी पूरी तरह से पाश्चात्य खान-पान और पश्चिम की जीवनशैली को अपनाने पर आतुर है। आलम यह है कि उनके इस शौक को देखते हुए हर नुक्कड़ पर पिज्जा, बर्गर और फॉस्ट फूड की दुकानें खुल चुकी हैं जिनके कारण हमारे युवाओं की इम्यूनिटी लगातार कम उम्र में ही कमज़ोर होती जा रही है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ  इण्डिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में फॉस्ट फूड इण्डस्ट्री 18 प्रतिशत वार्षिक दर के हिसाब से बढ़ रही है। भारतीय परिवार अपनी कुल वार्षिक आय का 21 प्रतिशत फॉस्ट फूड को खरीदने में खर्च कर रहे हैं । इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पहले परिवारों में खाना बनाने और खाने की विधियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती थीं लेकिन आज की युवा पीढ़ी से फॉस्ट फूड से संबंधित ेऐसा खान-पान उनके माता-पिता तक भी पहुंच रहा है । 
हालांकि 90 के दशक में वैश्वीकरण के हमारे देश में प्रवेश के साथ ही वर्ष 1996 में फॉस्ट फूड की पहली दुकान  खुली थी, किन्तु आज इस ब्रांड की 300 से ज्यादा दुकानें देश भर में खुल चुकी हैं। इसके अलावा फॉस्ट फूड के कई अंतर्राष्ट्रीय ब्राण्ड देश में शहरों से लेकर गांवों तक अपनी पहुंच बना चुके हैं । 
इस कारण से विशेषकर युवा पीढ़ी इस खाने की आदी होने के कारण मोटापे, एंग्जाइटी से संबंधित लक्ष्णों एवं कई मानसिक विकारों का शिकार होती जा रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक हमारे देश में हर 4 में से एक बच्चा मोटापे का शिकार है। देश के बच्चों का 5 प्रतिशत मोटापे से ग्रसित हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय लेंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल अस्वास्थ्यकारी आहार के कारण एक लाख से ज्यादा लोग मर रहे हैं । यह खान-पान सिर्फ मानसिक बीमारियों तक सीमित नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इस गलत खान-पान के कारण हमारे देश में 55 वर्ष से कम उम्र के लगभग तीन लाख लोग प्रतिवर्ष दिल का दौरा पड़ने से मरते हैं । ये आंकड़े भयावह होने के साथ-साथ हमें सचेत भी कर रहे हैं कि फॉस्ट फूड हमारी युवा पीढ़ी के शारीरिक व मानसिक विकास को अवरुद्ध करने के साथ-साथ एक रोगी पीढ़ी की कतार खड़ी कर रहा है । इस स्थिति से निपटने हेतु हमारे देश का स्वास्थ्य प्रबंधन पूरी तरह से तैयार नहीं है और न ही हमारे परिवार तैयार हैं। 
इस स्थिति को रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी न के बराबर हैं क्योंकि इन अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों से करोडों रुपये की आय सरकारों को होती है। अभी हाल में भारतीय सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 मनाना निश्चित हुआ है। मिलेट यानि कि मोटे अनाज ज्वार, बाजरा व रागी आदि जिसे शायद आज की युवा पीढ़ी जानती भी नहीं क्योंकि उत्तर भारत में राजस्थान को छोड़ कर शेष राज्यों के आम परिवारों के भोजन का यह हिस्सा है। कभी ज्वार, बाजरा, कंगनी जैसे मोटे अनाज पंजाब व हरियाणा के चावल व गेहूं की फसल उगाने से पहले, खेतों में बोये जाते थे। 
आज कई कारणों से ये अनाज हमारी थाली से गायब हैं । सरकारों को चाहिए कि यदि वे अपने देश में विश्व की युवा जनसंख्या पर गर्व करती हैं तो उनके खान-पान व स्वास्थ्य का सर्वप्रथम जिम्मा लें। इस नए वर्ष हर परिवार को सरकारों के साथ मिल कर स्वस्थ एवं सात्विक समाज बनाने की शपथ लें लेनी चाहिए। इस संकल्प के अनुसार दीर्घायु होने की कामना भी पूर्ण होती है।