सर्वोच्च् न्यायालय का नोटबंदी संबंधी फैसला

वर्ष 2016 में मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के संबंध में लिए गए फैसले की उस समय देश व दुनिया में बड़ी चर्चा हुई थी। उस फैसले के प्रभाव कोविड महामारी से पहले तक बने रहे थे। सरकार के इस फैसले संबंधी सुप्रीम कोर्ट में दर्जनों ही याचिकाएं दी गई थीं, जिनमें ऐसी घोषणा के अनेक तरह के पड़े नकारात्मक प्रभावों को गिनाया गया था। इससे उस समय लोगों को बड़ी संख्या में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। एक सीमित समय में नोट बदली करने की घोषणा ने भी व्यापक स्तर पर अफरा-तफरी मचा दी थी, जिसकी भेंट कम से कम 100 व्यक्ति चढ़ गये थे। उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1000 तथा 500 रुपये के नोटों के चलन पर पाबंदी की घोषणा के साथ एक सीमित समय में इन नोटों को बदलवाने के आदेश दिये थे। ऐसा कार्य क्यों किया गया, इसके कई कारण गिनाए गए थे। पहला कारण कि इस कदम से काले धन को समाप्त करना था और दूसरा आतंकवादियों तक पहुंचे काले धन को खत्म करना था, जो लगातार अपनी गतिविधियों के लिए इस धन का इस्तेमाल कर रहे थे। परन्तु एकाएक मची इस घोषित अफरा-तफरी ने एक बार तो देश की आर्थिकता को हिला कर रख दिया था, क्योंकि 1000 तथा 500 के नोटों का देश में आर्थिक चलन लगभग 86 प्रतिशत था। इस घोषणा से ही आर्थिक दर डावांडोल होने लगी थी और यह लुड़कती हुई काफी नीचे आ गई थी। व्यापार की गति बेहद सुस्त पड़ गई थी और पहले फैली बेरोज़गारी में भी और वृद्धि हो गई थी। 
आर्थिक अनिश्चितता के इस दौर में नोटों की बदली करवाने के चक्कर ने आर्थिकता के चक्र को ही अवसान की ओर घुमा दिया था। सरकार इसके जरिए अपने कितने लक्ष्यों को पूरा कर सकने के समर्थ हो सकी थी, इस बारे में अभी तक कोई तथ्य सामने नहीं आये। जहां तक काले धन का संबंध है, यह बात बहुत हैरान करने वाली थी कि सरकार द्वारा जितने यह करंसी नोट छापे गये थे उतने ही यह बैंकों में निश्चित समय में वापिस पहुंच गये थे। इस बात का अब तक  निर्णय नहीं किया जा सका कि बड़ी मात्रा में कहा जाता काला धन कहां चला गया था जहां सरकार उस समय इस कदम को ठीक ठहराते हुए लगातार अपने स्पष्टीकरण देती रही थी, वहां इसके प्रभावों से कमजोर हुई आर्थिकता को लेकर विरोधी पार्टियां भी इसको लेकर दुष्प्रचार करती रहीं थी। हर पक्ष से देश में चल रहे कामकाज़ की रफ्तार धीमी हो जाने के कारण लोगों में डर व असुरक्षा पैदा हो गई थी, जिस कारण एकदम लाखों ही रोज़गार खत्म हो गये थे। दूसरे देशों से व्यापार पर भी इसका बड़ा असर पड़ा था। उसके बाद कोरोना महामारी ने देश को हर पक्ष से बुरी तरह झंझोड़ कर रख दिया था। चाहे आज देश की आर्थिकता के स्थिर होने व आगे बढ़ने के वायदे ज़रूर किये जा रहे हैं परन्तु बेरोज़गारों की संख्या में लगातार वृद्धि होने के बारे में अब तक सरकार द्वारा कोई संतोषजनक जवाब सामने नहीं आये। सुप्रीम कोर्ट के बैंच ने नोटबंदी के उस फैसले को अब 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया है।  सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें तकनीकी आधार पर सरकार के फैसले को ठीक ठहराते यह भी कहा है कि इससे पहले भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ सरकार ने विस्तृत विचार विमर्श किया था। लेकिन इस बैंच में शामिल अलग फैसला देने वाले जज ने इसको जल्दबाजी में लिया गया फैसला बताया है और यह भी कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने केन्द्र सरकार की इस संबंधी पूछताछ बारे सिर्फ अपने सुझाव ही दिये थे।
हम विरोधी पक्ष पेश करने वाली जज की टिप्पणी से पूरी तरह से सहमति व्यक्त करते हैं कि देश में इतना बड़ा आर्थिक कदम उठाने से पहले देश की संसद को इसके लिए विश्वास में लिया जाना चाहिए था न कि इस संबंधी सिर्फ नोटिफिकेशन जारी किया जाना चाहिए था, क्योंकि ऐसे फैसले का देश के करोड़ों लोगों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है और इसके संबंध में उनके जीवन पर अनेक प्रभाव पड़ते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के अधिकारों की बात करते हुए तकनीकी तौर पर इस फैसले को ज़रूर सही ठहराया है, परन्तु कितने वर्षों तक लगातार लोगों द्वारा झेले गये संताप को परिभाषित नहीं किया गया। आज चाहे डिजीटल करंसी का चलन लगातार बढ़ रहा है परन्तु इसके बावजूद सरकार द्वारा काले धन के प्रसार को नहीं रोका जा सका। आने वाले समय में मोदी सरकार के ऐसे फैसले लेते समय संबंधित फैसलों को प्रभावों संबंधी बेहद सचेत होकर चलने की ज़रूरत होगी।
            —बरजिन्दर सिंह हमदर्द