...ताकि पक्षियों के लिए जानलेवा न बने संक्रांति की पतंगबाज़ी

 

हमारी वह खुशी सबसे भौंडी और क्रूप होती है, जो किसी और के लिए जानलेवा बन जाए। अगर जान गंवाने वाला कोई बेजुबान पशु या पक्षी हो, जो अपनी व्यथा बता भी नहीं सकता, तब तो यह त्रासदी और भी भयावह हो जाती है। हाल के कुछ सालों से संक्रांति के समय की जाने वाली पतंगबाजी से हजारों, बेजुबान पक्षियों की जान पर बन आती है। पिछले साल अकेले अहमदाबाद शहर में ही 14 और 15 जनवरी 2022 को यानी मकर संक्रांति के दिन और उसके अगले दिन पतंगबाजी के दौरान  500 से ज्यादा पक्षी घायल हो गये, कईयों की तो तत्काल मौत भी हो गई। लेकिन ज्यादातर घायल पक्षियों को बचा लिया गया, क्योंकि न सिर्फ अहमदाबाद में बल्कि पूरे प्रदेश में गुजरात सरकार ने एक एनजीओ संवादा पक्षी और पशु हेल्पलाइन के जरिये करुणा अभियान कार्यक्त्रम चलाया था। इस अभियान के तहत पूरे राज्य में मकर संक्रांति और उसके अगले दिन के लिए 600 से ज्यादा पक्षी निदान केन्द्र बनाये गये थे, जिनमें 620 से ज्यादा चिकित्सकों और 6000 से ज्यादा स्वयंसेवकों ने अपनी सेवाएं दी। 
अकेले अहमदाबाद शहर में ही 14 और 15 जनवरी 2022 को लगाये गये एक बड़े शिविर में 12 डॉक्टरों और 85 स्वयंसेवकों ने दिन रात अपनी सेवाएं दीं। लेकिन पूरा देश पक्षियों को लेकर गुजरात जैसा संवेदनशील नहीं है। इसलिए अगर कहा जाए कि मकर संक्रांति के दिन कच्छ से लेकर गंगासागर तक में होने वाली पतंगबाजी के चलते हजारों बेजुबान पक्षी अपनी जान गंवा देते हैं और लाखों पक्षी इन दो दिनों में घायल हो जाते हैं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि कानूनन प्रतिबंधित होने के बावजूद चीन से आयातित कांच मिश्रित पतंग की डोर यानी मांझा सबसे ज्यादा पक्षियों की जान लेता है। पक्षियों की ही क्यों, यह खतरनाक मंझा हर साल कई इंसानों की भी जान ले रहा है। अगस्त 2022 में राजधानी दिल्ली के बदरपुर इलाके में जोमैटो का एक डिलिवरी ब्वॉय नरेंद्र कुमार की मांझे से दर्दनाक मौत हो गई। दरअसल देर रात फरीदाबाद हाईवे से वह गुजर रहा था और उसकी बाइक में चीनी मांझा उलझ गया, इस कारण उसने अपना संतुलन खो दिया और जमीन पर गिर गया, ठीक उसी समय पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार वाहन ने इस अभागे को कुचल डाला, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। 32 साल का नरेंद्र कुमार अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला अकेला शख्स था। यह एक अकेली घटना नहीं है। अकेले राजधानी दिल्ली में ही पिछले कुछ सालों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत इसी चीनी मांझे से हुई है।
लेकिन हम यहां बात कर रहे हैं पक्षियों की और इनके लिए संक्रांति के समय की जाने वाली पतंगबाजी की। क्योंकि मकर संक्रांति और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर होने वाली पतंगबाजी अब बेजुबानों के लिए दिन पर दिन बहुत ही खतरनाक होती जा रही है। दो साल पहले राजधानी दिल्ली में भी पतंगबाजी के चलते 15 अगस्त के दिन 1000 से ज्यादा परिंदे घायल हो गये थे, जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा पक्षियों को इससे गहरे घाव लगे थे। कईयों की गर्दन पूरी तरह से कट गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पक्षियों के लिए यह कितना खतरनाक होता होगा। शायद केंद्र सरकार ने इसके इसी खतरे को देखते हुए साल 2017 में चाइनीज और मैटेलिक मांझे पर रोक लगा दी थी, लेकिन न तो मांझा बेचने वाले दुकानदार और न ही खरीदकर पतंग उड़ाने का लुत्फ लेने वाले लोग इस कानून का पालन करते हैं, नतीजा यह होता है कि साल के कई ऐसे मौके आते हैं जब इस मांझे के चलते हजारों पक्षी बेमौत मारे जाते हैं। 
इसलिए इस बार उत्तरायण में जब आप पतंगबाजी का लुत्फ उठाएं तो बेजुबान पक्षियों की जिंदगी के बारे में थोड़ा सोचें। ऐसा नहीं है कि पहले पतंग नहीं होती थी या पहले ये त्यौहार कम हंसी खुशी से मनाये जाते थे। लेकिन अब इसमें बहुत ज्यादा दिखावा शामिल हो गया है, जिसका नतीजा ये होता है कि मकर संक्रांति के दिन जब हम उल्लास मना रहे होते हैं, हजारों पक्षी हमारी भौंडी करतूत से जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे होते हैं। पिछले साल गुजरात सरकार ने लोगों से अपील की थी कि वे संक्रांति के समय अव्वल तो पतंग न उड़ाएं और उड़ाएं तो प्रतिबंधित चीनी और मैटेलिक धागे से दूर रहें। लेकिन लोग कहां मानते हैं। यही वजह है कि सारे तामझाम और पक्षियों के प्रति दिखायी गई शुभचिंता के बावजूद पिछले साल हजारों पक्षी मारे गये हैं। वक्त आ गया है कि हम इससे सबक लें और अपनी कुछ घंटों की खुशी के लिए पक्षियों का जीवन ही खत्म न कर दें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर