हिमाचल प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन 

 

हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस-नीत मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू और उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के नेतृत्व वाली सरकार में किये गये पहले विस्तार में सात और मंत्रियों को शामिल किया गया है। इस प्रकार मुख्यमंत्री समेत कुल मंत्रिमंडल की संख्या 9 हो गई है। प्रदेश में विगत वर्ष 12 नवम्बर को विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए थे तथा परिणाम 8 दिसम्बर को घोषित हुए थे। इसके बाद 12 दिसम्बर को इन दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री एवं उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली थी। तय नियमानुसार मंत्रिमंडल में विस्तार की अभी भी सम्भावना बनी हुई है, और कि तीन मंत्री-पद अभी भी खाली पड़े हैं। मौजूदा पहले विस्तार में 6 मुख्य संसदीय सचिव भी नियुक्त किये गये हैं। नव-नियुक्त मंत्रियों को शपथ ग्रहण की रस्म मुख्यमंत्री एवं उप-मुख्यमंत्री की उपस्थिति में प्रदेश के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने निभाई। मुख्यमंत्री ने नि:संदेह अपने मंत्रिमंडल के गठन को लेकर सभी क्षेत्रों और वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व देकर प्रदेश के राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने का भरसक प्रयास किया है, तथापि प्रदेश की राजनीति में सर्वाधिक 15 विधायक देने वाले कांगड़ा ज़िला को केवल एक मंत्री-पद देना अखरता है। इसके विपरीत विधानसभा में कुल सात विधायक देने वाले शिमला ज़िले से तीन मंत्री और एक मुख्य संसदीय सचिव लिया गया है। मंडी से 10 विधायक आते हैं जबकि इस जिला को भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला है। 
कुल नौ मंत्रियों में से मुख्यमंत्री सहित पांच ठाकुर प्रतिनिधि हैं जबकि ब्राह्मण समुदाय का प्रतिनिधित्व उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के कंधों पर है। मुकेश अग्निहोत्री पांचवीं बार विधायक बने हैं। सन् 2003 से वह निरन्तर विजयी होते आ रहे हैं। राजनीति में आने से पूर्व उन्होंने अपने करियार की शुरुआत पत्रकारिता के धरातल से की थी। दो अन्य मंत्रियों कर्नल धनीराम शांडिल्य और प्रो. चन्द्र कुमार ने प्रदेश की राजनीति में वरिष्ठता के आधार पर  मंत्री-पद प्राप्त किया है, तो शिमला ग्रामीण से चुने गये विक्रमादित्य सिंह युवा वर्ग का चेहरा हैं। विक्रमादित्य सिंह प्रदेश की राजनीति में कांग्रेसी स्तम्भ रहे और छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं। नि:संदेह वीरभद्र सिंह के परिवार को मंत्रिमंडलीय गठन के दौरान दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता था। सिरमौर ज़िला से शिल्लाई के हर्षवर्धन चौहान और किन्नौर ज़िला के जगत सिंह नेगी भी अपनी वरिष्ठता और राजनीतिक विशेषज्ञता के बल पर मंत्रिमंडल में स्थान बनाने में सफल हुए हैं। रोहित ठाकुर चौथी बार और अनिरुद्ध सिंह तीसरी बार विधायक बने हैं। इस प्रकार मंत्रिमंडलीय गठन में वरिष्ठता को पूरा अधिमान दिया गया है। मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति में भी प्राय: सभी बड़े ज़िलों के औचित्य को ध्यान में रखा  गया है। 
हम समझते हैं कि देश की मौजूदा राजनीति में किसी भी मंत्रिमंडलीय गठन में सभी वर्गों एवं समुदायों को संतुष्ट करना संभव नहीं हो सकता, तथापि मुख्यमंत्री सुक्खू और उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने भरसक सूझबूझ से संतुलन बनाये रखने की पूरी कोशिश की है। प्रदेश में अतीत की कांग्रेस सरकारों पर अधिकतर समय तक वीरभद्र सिंह परिवार का ही वर्चस्व रहा है, और कि  यह पहली बार होगा जब कांग्रेस की कोई सरकार वीरभद्र सिंह के प्रभाव से मुक्त होकर प्रदेश के लोगों के हित का चिन्तन लेकर राजनीतिक मैदान में उतरेगी। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में प्राय: प्रत्येक पांच वर्ष बाद परिवर्तन की लहर लेकर सरकारें बदलती रही हैं। वर्तमान में भी प्रदेश के लोगों ने बड़ी-बड़ी आशाएं लेकर कांग्रेस के कंधों पर अपनी नियति का दारोमदार सौंपा है। अब यह इन दोनों नेताओं और इनके नेतृत्व में गठित मंत्रिमंडल पर ज़िम्मेदारी आयद होती है, कि वे एक ओर जहां लोगों की आकांशाओं पर अपेक्षाओं पर खरा उतरें, वहीं प्रदेश के हित-साधना हेतु नई योजनाएं भी तैयार करें।