ग्लोबल वार्मिंग व बढ़ते पर्यटन से चरागाहों का अस्तित्व खतरे में

 

बढ़ते प्रदूषण, बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र और नतीजे में गरमाती धरती ने खास तौर पर पहाड़ों और समुद्र तटों को खतरे में डाल दिया है। इस खतरे को पर्यटकों की धमाचौकड़ी और बेतहाशा बढ़ते उपभोक्तावाद ने और ज्यादा खतरनाक बना दिया है। यह अकारण नहीं है कि आज जोशीमठ में दरकती धरती ने हज़ारों लोगों की ज़िदगी को खतरे में डाल दिया है, हकीकत तो यह है कि उत्तराखंड के न सिर्फ  और कई जिलों में भूस्खलन का खतरा हाल के सालों में बहुत तेज़ी से बढ़ा है बल्कि पहाड़ों की खास तौर पर जिन चरागाहों से एक विशेष पहचान होती थी, वे चरागाह भी अब ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते पर्यटकों की वजह से खतरे में पड़ गये हैं। उत्तराखंड में तो खास तौर पर चरागाहों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। 
गौरतलब है कि उत्तराखंड में एक नहीं कई ऐसे चरागाह यानी बुग्याल हैं जो अपनी खूबसूरती और पारिस्थितिकी तंत्र की सम्पन्नता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। लेकिन अब यहां इतना ज्यादा पर्यटकों का रेला आ रहा है कि ये खतरे में पड़ गये हैं। दरअसल बुग्याल शब्द का अर्थ ही होता है पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थित घास के मैदान। चमोली, उत्तरकाशी, रूद्र प्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में ऐसे एक से बढ़कर एक सुंदर बुग्याल हैं। खासकर चमोली जिले का वेदनी बुग्याल जो न सिर्फ  एशिया का सबसे सुंदर और ऊंचाई पर स्थित बुग्याल है बल्कि पर्यटकों के लिहाज से भी इसे बहुत सम्पन्न कहा जा सकता है। दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने आते हैं लेकिन अब यही पर्यटक इन बुग्यालों के लिए खतरे की घंटी बन गये हैं। उत्तराखंड के बुग्याल खासकर वेदनी बुग्याल विश्व धरोहर का हिस्सा है, लेकिन यह धरोहर तभी सुरक्षित रह सकती है जब इसे संरक्षण मिले। मगर ज्यादा से ज्यादा राजस्व वसूलने के चक्कर में उत्तराखंड का वन और पर्यटन विभाग यहां बड़े पैमाने पर पर्यटकों को पिकनिक मनाने के लिए टेंट लगाने की इजाज़त दे देता है। टेंट लगाने में भले बहुत खुदाई या कटाई न करनी पड़ती हो, लेकिन टेंट लगाने के लिए ज़मीन में बड़े बड़े लोहे के कील, बांस और लकड़ी बुग्यालों की घास की जड़ों के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। इस मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में दायर की गई एक याचिका पर न्यायालय ने कहा है कि वन विभाग सुनिश्चित करे कि इन विश्व धरोहरों को नुकसान न होने पाए। हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में उत्तराखंड सरकार को यहां आने वाले पर्यटकों के लिए जल्द से जल्द कड़े नियम बनाने के निर्देश दिये गये। 
सात साल पहले हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप के बाद भी उत्तराखंड के इन प्राकृतिक चरागाहों में पर्यटकों की आवाजाही कम नहीं हुई, न ही उनके लिए ऐसे कोई नियम बने, जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षा प्रदान करने को लेकर गंभीर हों। सच बात तो यह है कि पर्यटकों द्वारा अपने साथ लाये गये प्लास्टिक के कचरे से इन चरागाहों को बहुत खतरा है। सिर्फ  बुग्यालों की बात ही क्यों करें, चमोली जिले में स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में भी पिछले दिनों पर्यटकों द्वारा लायी गई कई टन प्लास्टिक की पन्नियां और दूसरे प्लास्टिक के कचरे को इकट्ठा किया गया था, जिससे पता चलता है कि किस तरह से खूबसूरत प्रकृतिक क्षेत्र लापरवाही का शिकार है। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में पिछले साल 12000 से ज्यादा पर्यटक आये थे और यहां के ट्रैकिंग रूट व मखमली घास के मैदानों में खूब कचरा बिखेर गया था। 
नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के बफर जोन में स्थित क्वारीपास पर्यटकों का पसंदीदा ट्रैक है। इस ट्रैक पर पर्यटक जोशीमठ-औली से ताली गेलगार्ड और क्वारीपास फुलारा होते हुए ढाक तुगासी गांव वापस आते हैं। 27 किलोमीटर के इस ट्रैक में 4 बुग्याल गौरसों, उनील, चित्रखाना व क्वारी पड़ते हैं। हर पर्यटक इनकी खूबसूरती की ओर आकर्षित हो जाता है। वह इन खूबसूरत बुग्यालों का आनंद लेने के लिए अपने साथ ढेर सारा कचरा भी लाता है, जिसका नतीजा यह होता है कि धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में यह ज़हरीला कचरा जमा हो जाता है। जबकि यह ट्रैक संभवत: दुनिया का सबसे खूबसूरत ट्रैक है, जहां इन हिम शिखरों को 360 डिग्री पैनोर्मिक व्यू देखने को मिलता है। यहां से 14 से ज्यादा हिम शिखरों को देखा जा सकता है। नंदा देवी नेशनल पार्क की यही खूबसूरती एक तरफ  जहां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, वहीं दूसरी तरफ इन बुग्यालों के लिए खतरा बन गई है।
इसलिए जोशीमठ की भयावह त्रासदी से सबक लेते हुए जितनी जल्दी हो इन खूबसूरत चरागाहों पर पर्यटकों की आवाजाही को न सिर्फ  सीमित किया जाना चाहिए बल्कि उनको कड़े अनुशासन में रहने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए ताकि विश्व प्रसिद्ध धरोहर का अस्तित्व खतरे में न पड़े।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर