पड़ोसी देश-चिन्ताजनक हालात


पिछले दिनों दुबई के एक टी.वी. चैनल अल अरबिया के साथ मुलाकात में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ ने भारत-पाक संबंधों के बारे में जो खुल कर बातें कीं, वह आश्चर्यजनक थीं तथा इसके साथ-साथ अच्छे संकेत वाली भी। शहबाज़ ने कहा था कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ तीन युद्ध लड़े तथा इनसे उसने बहुत कुछ सीखा। शहबाज़ ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ गम्भीर बातचीत करने की इच्छा भी व्यक्त की तथा यह भी कहा कि कश्मीर सहित दोनों देशों के मध्य विवादित मामलों का हल मिल-बैठ कर निकाला जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। शहबाज़ देश में पैदा हुए चिन्ताजनक हालात के दौरान सऊदी अरब भी गए, जिसने उन्हें 4 अरब डॉलर की सहायता देने की पेशकश की। दूसरी तरफ आज पाकिस्तान ऐसी आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है, जिसे एक अनुमान के अनुसार इस समय 33 अरब डॉलर की ज़रूरत है। 
गत  दिवस विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया के देशों में पाकिस्तान सबसे मंदी अर्थ व्यवस्था के दौर में से गुज़र रहा है। उसकी यह रिपोर्ट अब मुख से बोलने लगी है। वहां एक तरह से अकाल की स्थिति पैदा हो रही है तथा यह भी कि आगामी हालात पिछले समय में जो श्रीलंका के हुए, उससे भी बुरे हो जाएंगे। पिछले वर्ष जुलाई माह में व्यापक स्तर पर हुई वर्षा तथा आई बाढ़ से देश में 80 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई थी। आटा, दाल, सब्ज़ियां तथा पैट्रोल जैसी आवश्यक वस्तुओं की भी कमी पैदा हो गई है। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर कर आटा या अन्य अनाज की मांग करने लगे हैं। इससे भी अधिक दयनीय हालत यह है कि बाहर से आयात के लिए इसका विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो रहा है। इसमें सिर्फ तीन सप्ताह के लिए ही बाहर से सामान मंगवाने के लिए पैसा बचा है। इसलिए इसने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 6 अरब डॉलर की सहायता लेने की गुहार लगाई है। परन्तु उसने देश में पैट्रोल की कीमतों में वृद्धि करने की शर्त रखी है, जिसे इमरान खान की सरकार ने सस्ता कर दिया था। आगामी चुनावों के कारण सरकार के लिए यह कदम उठाना बेहद महंगा पड़ सकता है। इस समय एक डॉलर की कीमत 228 पाकिस्तानी रुपये है। महंगाई 24 प्रतिशत से भी बढ़ गई है, जिससे आगामी महीनों में 90 लाख और पाकिस्तानियों के ़गरीबी रेखा से नीचे चले जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। वहां सेना का अपना एजैंडा है। भ्रष्टाचार हर तरफ फैल चुका है। इससे भी आगे वहां प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने अपने हमले तेज़ कर दिए हैं। पिछले महीनों में ही तहरीक-ए-तालिबान ने वहां 150 हमले करने की ज़िम्मेदारी ली है। इससे बेहद चिंतित हुई  सरकार ने अ़फगानिस्तान की तालिबान सरकार के पास गुहार लगाई है कि वह तहरीक-ए-तालिबान की कार्रवाइयों पर अंकुश लगाए क्योंकि इस संगठन के ज्यादातर आतंकवादी अ़फगानिस्तान में ही अपने अड्डे बना कर बैठे हैं। अ़फगान सरकार ने उसे इन संगठनों के साथ बातचीत का सुझाव दिया है परन्तु तहरीक-ए-तालिबान की शर्तें ऐसी हैं जो पाकिस्तान सरकार के लिए मान लिए जाना किसी भी तरह सम्भव नहीं। ऐसे हालात पैदा होने से देश के अलग-अलग प्रांतों में बड़े ब़गावती स्वर उठने शुरू हो गए हैं। 
पिछले दिवस सिंधी नेता साईं जी.एम. सैय्यद के 119वें जन्मदिवस पर जिस तरह वहां अलग सिंध देश बनाने के लिए बड़ी रैलियां हुईं, उसने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। बलोचिस्तान में पहले ही ब़गावती आग फैल चुकी है। पाक अधिकृत कश्मीर तथा ़खैबर पख्तूनख्वा में भी सरकार के विरुद्ध बड़े स्वर उठने लगे हैं। अलग-अलग स्थानों पर होती इन रैलियों में ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लग रहे हैं। इसके साथ ही ‘नो चाइना गो चाइना’ के स्वर भी बुलंद किए जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश पर कुल घरेलू उत्पाद  (जी.डी.पी.) का 90 प्रतिशत ऋण चढ़ गया है। यह ऋण की राशि 62 लाख करोड़ पाकिस्तानी करंसी बनती है। वहां  लम्बे समय से विदेशी उद्योग बंद हो रहे हैं। टोएटा तथा सुज़ूकी जैसे कार प्लांटों को भी ताले लग गए हैं। पड़ोसी देश में हर पक्ष से ऐसी स्थिति के कारण पाकिस्तान के हालात पूरी तरह से टूट कर बिखरते दिखाई दे रहे हैं, जो भारत के लिए चिन्ता का कारण बन सकते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द