2024 के लिए कितना तैयार है विपक्ष ?  

 

2024 के आम चुनाव के लिए विपक्ष ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। वैसे कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से ही इसकी शुरुआत हो गई थी। वह अलग बात है कि कांग्रेस स्वयं स्वीकार नहीं किया कि उसकी यात्रा का आम चुनावों से कोई संबंध है। पिछले एक दशक से देश की सत्ता से बाहर चली आ रही कांग्रेस किसी भी तरह सत्ता हासिल करने को आतुर है। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मिशन-2024 शुरू कर चुकी है। विपक्ष में भी हलचल दिख रही है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने कांग्रेस को थोड़ा भरोसा दिया है। इस यात्रा से कुछ स्थानीय पार्टियां भी जुड़ीं जो विपक्ष में कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करती दिखाई दे रही हैं। हालांकि, पर्दे के पीछे राजनीतिक पांसे कुछ अलग तरह से फेंके जा रहे हैं। कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों के नेताओं को लामबंद करने की कोशिशों में जुटी हुई है।  ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 30 जनवरी को श्रीनगर में सम्पन्न हुई थी, उससे पहले ही ‘हाथ से हाथ जोड़ो अभियान’ 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के मौके पर शुरू हो चुका था। कांग्रेस ‘हाथ’ अभियान के ज़रिए देश के 6 लाख गांवों, करीब 2.5 लाख पंचायतों और 10 लाख बूथों तक पहुंचने की कोशिश करेगी। इसे ‘मतदाता जोड़ो मिशन’ नाम भी दिया गया है। 
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से 23 विपक्षी नेताओं को न्योता भिजवाया गया था कि वे 30 जनवरी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह के साक्षी बनने के लिए श्रीनगर पहुंचें। न्योता भेजने में ही सियासत की गई थी, क्योंकि तेलंगाना की ‘भारत राष्ट्र समिति’ के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस तथा तेलुगूदेशम पार्टी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, दिल्ली-पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, असम की कांग्रेस सरकार में घटक पार्टी रही ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट आदि को न्योता नहीं भेजा गया था। क्या इन दलों के नेता विपक्ष का महागठबंधन तैयार करने में अहम भूमिका अदा नहीं कर सकेंगे? दरअसल इस शुरुआती कोशिश पर ही विपक्ष दरकने लगा है।
2024 में विपक्ष की बागडोर संभालने के लिए भूतपूर्व जनता दल के कुनबे को साथ लाने की जुगत है। जनता दल (यूनाइटेड), इंडियन नैशनल लोकदल (इनेलो), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, नितीश कुमार ऐसी कोशिशों में लगे हैं कि दशकों तक बड़े-बड़े राज्यों पर शासन करने वाली ये पार्टियां साथ आ जाएं। पिछले दिनों जब संसद सत्र चल रहा था तो नितीश ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा से मिलने भेजा था। गौड़ा के आवास पर हुई बैठक में सिंह का संदेश साफ  था—नितीश की जेडी (यू) और देवेगौड़ा की जेडी (एस) का विलय हो जाना चाहिए। नितीश चाहते हैं जनता दल के पुराने दिन वापस आ जाएं। उनकी योजना का पहला हिस्सा है कि कुनबे से बिखरी पार्टियां एकजुट होकर नया मोर्चा बनाएं और विपक्ष में अहम भूमिका अदा करें। वह वी.पी. सिंह जैसा करिश्मा दोहराना चाहते हैं। दूसरे चरण में नितीश की योजना है कि क्षेत्रीय दलों को इस मोर्चे का साथ देने के लिए मनाया जाए। फिर तीसरे चरण में कांग्रेस से समर्थन जुटाया जाएगा। अगर यह योजना फलीभूत नहीं होती तो आजमाया हुआ नुस्खा भी है कि ज्यादा से ज्यादा गैर-भाजपा दलों को एक मंच पर लाया जाए, फिर कांग्रेस से समर्थन मांगा जाए। नितीश की योजना अभी शुरुआती दौर में ही लग रही है। बिखर चुके कुनबे को एकजुट कर पाना इतना आसान नहीं है।
इन सबके बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पिछले दिनों एक राजनीतिक ऐलान कर सभी को चौंका दिया था। उनके मुताबिक, इस साल कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के विधानसभा चुनावों में बसपा अकेले, अपने बलबूते पर ही चुनाव लड़ेगी। इतना ही नहीं, 2024 का लोकसभा चुनाव भी गठबंधन के बिना ही लड़ेगी। 
 हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें भी आमंत्रण भेजा था कि वह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह में शामिल हों। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और कर्नाटक आदि राज्यों में बसपा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पक्ष है, जो विपक्षी एकता के प्रयासों को खंडित कर सकता है। बेशक बसपा के हिस्से में विजयी सीटों की संख्या नाममात्र है, लेकिन उसका औसत वोट बैंक और कमोबेश दलितों का भरपूर समर्थन इतना है कि वह कांग्रेस और विपक्ष के चुनावी गणित को गड़बड़ा सकती है। मायावती और अखिलेश तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के उत्तर प्रदेश पड़ाव में भी शामिल नहीं हुए थे। फिलहाल वे लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के पक्षधर भी नहीं हैं। 
यदि 2024 में भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं होता, तो सवाल होगा कि सरकार कौन और कैसे बनाएगा? वर्ष 2004 में जिस तरह कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग बनाया गया था, तो उसमें विभिन्न गैर-भाजपा दलों को गोलबंद करने का प्रयास सीपीएम के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने किया था। आज वाममोर्चा बेहद कमज़ोर स्थिति में है और राहुल गांधी को नेता मानने पर असहमत है। तब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा सांसदों की संख्या भी काफी थी। आज सपा के 3-4 सांसद ही लोकसभा में हैं। यदि यही स्थिति रहती है, तो कांग्रेस के लिए 53 से 100 सांसदों तक पहुंचना ही टेढ़ी खीर होगा। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से भले ही कांग्रेस में थोड़ी ऊर्जा और आक्रामकता नज़र आई हो, लेकिन उसका चुनावी असर दिखना शेष है। 2024 की लड़ाई में नरेंद्र मोदी के सामने संयुक्त विपक्ष का चेहरा कौन होगा? इस सवाल का जवाब चुनाव से पहले मिलना मुश्किल ही है। संभावना यह भी है कि नेता बनने की चाहत में विपक्षी दलों के बीच सहमति कभी बने ही नहीं। विपक्ष का बिखराव 2024 में भाजपा का रास्ता आसान बनाएगा।