ख़तरे की घंटी

पंजाब में भूमिगत पानी बड़ी तेज़ी से खत्म होता जा रहा है। इस संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय एजैंसियां लबी अवधि से अपनी-अपनी रिपोर्ट जारी करके ख़तरे की घंटी बजा रही हैं। पंजाब में भी पर्यावरण प्रेमी तथा भूमिगत पानी के संबंध में जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ लगातार इस संबंधी चिन्ता व्यत करते आ रहे हैं। परन्तु यह आश्चर्यजनक बात है कि मिल रही इस तरह की चेतावनियों की ओर न पूर्ववर्ती केन्द्र सरकारों ने गभीरता से ध्यान दिया है तथा न ही पंजाब की सरकारों ने इस ख़तरे को महसूस करते हुए भूमिगत पानी के समुचित उपयोग हेतु कोई ठोस योजनाबंदी की। इसी का ही परिणाम है कि भूमिगत पानी लगातार नीचे होता जा रहा है तथा इस मुद्दे को लेकर पंजाब में चिन्ता बढ़ती जा रही है। और तो और अब बहुत-से किसान संगठन भी यह महसूस करने लगे हैं कि यदि कृषि, उद्योग तथा अन्य उद्देश्यों के लिए भूमि से इसी रतार से पानी निकाला जाता रहा तो कुछ ही वर्षों में भूमिगत पानी का स्तर बहुत नीचे हो जाएगा। इस संबंध में केन्द्रीय ग्राऊंड वाटर बोर्ड द्वारा ख्ख्ख् में तैयार की गई जो रिपोर्ट अब सामने आई है उसने खत्म हो रहे भूमिगत पानी संबंधी चिन्ता में और वृद्धि कर दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में पंजाब ही ऐसा प्रदेश है जो रिसाव होकर ज़मीन में जा रहे पानी के मुकाबले कहीं अधिक पानी धरती से निकाल रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में भूमि के नीचे पानी का रिसाव क्त्त्.-ब् बिलियन यूबिक मीटर है। इस तरह पंजाब को अधिक से अधिक क्स्त्र.स्त्र बिलियन यूबिक पानी ही धरती से निकालना चाहिए परन्तु पंजाब प्रत्येक वर्ष ख्त्त्.ख् बिलियन यूबिक मीटर पानी धरती से निकाल रहा है। अर्थात वार्षिक क्.-भ् बिलियन यूबिक मीटर पानी पंजाब धरती से अधिक निकाल रहा है। यदि समूचे देश की बात करें तो पानी का जो समूचा रिसाव होता है उसके अनुसार वार्षिक फ्-त्त्.त्त् बिलियन यूबिक मीटर तक पानी धरती से निकाला जा सकता है। परन्तु देश में ख्फ्-.क्म् बिलियन यूबिक मीटर पानी ही धरती से निकाला जा रहा है। इस कारण पंजाब तथा उार भारत के कुछ अन्य प्रदेशों को छोड़ कर समूचे देश में भूमिगत पानी का स्तर  कोई ख़तरा पैदा करने वाला नहीं है योंकि जितना रिसाव होता है उसके मुकाबले बहुत कम पानी निकाला जा रहा है। जिन प्रदेशों में ज़रूरत से अधिक पानी निकाला जा रहा है उनमें पंजाब के अलावा हरियाणा तथा राजस्थान आदि हैं। हरियाणा में वार्षिक त्त्.क्म् बिलियन यूबिक मीटर पानी ही निकाला जा सकता है परन्तु यह क्क्.भ्ब् बिलियन यूबिक मीटर पानी निकाल रहा है। इसी तरह राजस्थान जो वार्षिक क्.-म् बिलियन यूबिक मीटर पानी ही निकाल सकता है वह भी क्म्.भ्म् बिलियन यूबिक मीटर पानी धरती से निकाल रहा है। यदि हरियाणा तथा राजस्थान में धरती से निकाले जा रहे पानी को देखें तो भी पंजाब ऐसा प्रदेश है जो अपनी धरती के नीचे रिसाव हो रहे पानी से कई गुणा अधिक पानी ज़मीन से निकाल रहा है। इस स्थिति को मुय रखते हुए विशेषज्ञों तथा पर्यावरण प्रेमियों द्वारा लगातार यह आवाज़ उठाई जा रही है कि पंजाब की कृषि में विभिन्नता लाने की आवश्यकता है। गत कई दशकों से प्रदेश की कृषि में बड़ी सीमा तक गेहूं-धान के फसली चकर तक सीमित हो गई है। इसने भूमिगत पानी का बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया है। विशेषकर पर्यावरण प्रेमी तथा भूमिगत पानी संबंधी विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि प्रदेश में अब धान की कृषि पर प्रतिबंध लगना चाहिए। इसके स्थान पर दालों तथा तेल बीजों की कृषि करनी चाहिए, योंकि भारत में दालों तथा खाद्य तेलों की काफी खपत होती है तथा भारत ये दोनों कृषि उत्पादन विदेशों से मंगवाता है। इस पर देश को काफी विदेशी करंसी भी खर्च करनी पड़ती है। यदि केन्द्र सरकार उार भारत के प्रदेशोंं पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा पश्चिम उार प्रदेश को तेल बीजों तथा दालों की काश्त बढ़ाने हेतु उत्साहित करे और इन फसलों की लाभकारी कीमत पर खरीद को सुनिश्चित बनाए तो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में गहरे होते जा रहे भूमिगत पानी की समस्या का भी समाधान हो सकता है और देश में तेल बीजों तथा दालों का उत्पादन बढ़ने से देश की करंसी भी बच सकती है। पंजाब के भूमिगत पानी संबंधी नैशनल ग्रीन ट्रियूनल ने जो ख्क्स्त्र में रिपोर्ट दी थी, उसमें भी यह कहा गया था कि ख्ख्- तक पंजाब में भूमिगत पानी का स्तर क् मीटर नीचे चला जाएगा तथा ख्फ्- तक पानी का स्तर फ् मीटर नीचे चला जाएगा। विशेषज्ञों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि भूमिगत पानी स्तर के पक्ष से सिंचाई तथा घरेलू उपयोग के योग्य नहीं होगा, योंकि यह अनेक प्रकार के हानिकारक रसायनों से भरा हुआ है। इन हकीकतों के दृष्टिगत अब यह बेहद ज़रूरी हो गया है कि पंजाब सरकार भूमिगत पानी के सही उपयोग के लिए तुरंत उचित कार्य योजना लेकर सामने आए। केन्द्र सरकार पर इस बात का दबाव डाला जाए कि वह पंजाब को धान की फसल का विकल्प उपलध करे और वैकल्पिक फसल की खरीद को सुनिश्चित बनाए। इसके साथ ही पंजाब सरकार को राज्य के लोगों को भी एक प्रभावी प्रचार अभियान चला कर पानी के उचित उपयोग बारे जागरूक करना चाहिए ताकि पानी जैसे दुर्लभ स्रोत के हो रहे दुरुपयोग को रोका जाए तथा लोगों में एक-एक बूंद बचाने की भावना पैदा की जा सके। ऐसे बहु-पक्षीय यत्नों से ही हम इस संकट को नियंत्रित कर सकते हैं, नहीं तो पंजाब की धरती पर मानवीय पुनर्वास के लिए बड़े खतरे पैदा हो जाएंगे।