जामिया नगर हिंसा मामला : आख़िर मिल गया इन्साफ़

विगत दिवस दिल्ली के साकेत ज़िले की अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के समय क्फ् दिसबर, ख्क्- को जामिया नगर में हुई हिंसा से संबंधित एक मामले में शरजील इमाम सहित क्क् व्यतियों को बरी कर दिया। बरी किए जाने वालों में विद्यार्थी कार्यकर्ता शरजील इमाम के अलावा आसिफ़ इकबाल तन्हा तथा छात्रा सुुफूरा जरगर आदि शामिल हैं। इस मामले में सिर्फ एक आरोपी मोहमद इलियास के विरुद्ध ही अदालत द्वारा आरोप तय करने का आदेश दिया गया। यहां वर्णनीय है कि ख्क्- में केन्द्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत के अन्य पड़ोसी देशों से आकर भारत में रहते शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना था परन्तु इस कानून में पड़ोसी देशों से आकर विस्थापित होने वाले मुसलमान समुदाय से संबंधित लोगों को नागरिकता देने से वंचित रखा गया था। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने देश की नागरिकता का एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने का भी फैसला किया था। इन दोनों मुद्दों को लेकर देश भर में अलग-अलग स्थानों पर कड़ा आन्दोलन हुआ था तथा कई स्थानों पर हिंसा भी हुई थी। इस आन्दोलन में मुबई, दिल्ली, उार प्रदेश तथा देश के कई अन्य भागों की यूनिवर्सिटियों के छात्रों ने सक्रियता से भाग लिया था। केन्द्र सरकार तथा भाजपा की अन्य प्रदेश सरकारों ने इस आन्दोलन  से सती के साथ निपटने की नीति अपनाई थी। इस सन्दर्भ में ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी तथा जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी दिल्ली में आन्दोलनकारी छात्रों तथा पुलिस के बीच तीव्र टकराव हुए थे। पुलिस द्वारा इस संबंध में कई छात्रों पर बहुत-से मामले दर्ज किए गए थे। जामिया नगर में हुई हिंसा के संबंध में ही उपरोत छात्रों पर मामला दर्ज किया गया था तथा लगभग विगत तीन वर्ष से यह छात्र जेल में बंद थे। उपरोत मामले का फैसला सुनाते हुए सैशन न्यायाधीश अरुल वर्मा ने दिल्ली पुलिस के कामकाज संबंधी भी बड़ी गभीर टिप्पणियां की हैं। सैशन न्यायाधीश ने यह कहा है कि पुलिस ने बिना ठोस सबूतों के उपरोत छात्रों पर मामला दर्ज किया है तथा वह अपनी चार्जशीट में कोई भी ठोस सबूत पेश करने में असफल रही है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि किसी घटनास्थल पर कुछ लोगों के मौजूद होने से ही वह आरोपी नहीं बन जाते। जामिया मिलिया हिंसा के संबंध में न्यायाधीश ने अपने फैसले में और आगे कहा कि घटनास्थल पर बड़ी संया में लोग इकट्ठा थे। सभव है कि उनमें से ही कुछ असामाजिक तत्वों ने वहां हिंसा की होगी। परन्तु उपरोत छात्रों के विरुद्ध बिना ठोस सबूतों के मामले दर्ज करके पुलिस द्वारा उन्हें बली का बकरा बनाया गया। इस सन्दर्भ में न्यायाधीश ने एक और महवपूर्ण टिप्पणी करते यह भी कहा कि पुलिस तथा अन्य सुरक्षा एजैंसियों को रोष व्यत करके अपनी असहमति का प्रकटावा करने वाले लोगों के अधिकार तथा बग़ावत के बीच के अंतर को समझना चाहिए। न्यायाधीश ने इस बात पर बल दिया है कि शांतिपूर्ण ढंग से रोष व्यत करने का लोगों को अधिकार है। इसे दबाया नहीं जा सकता। इस संबंध में न्यायाधीश अरुल वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा अभी कुछ दिन पूर्व की गई टिप्पणी का भी हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सवाल करना तथा असहमति के लिए अधिकार खत्म करना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास का आधार खत्म करना है। इस अनुसार असहमति लोकतंत्र में से़टी वाल की तरह होती है। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ़ दिल्ली में हुए आन्दोलन से संबंधित एक अन्य मामले में भी कड़कड़डूमा न्यायालय के सैशन न्यायाधीश ने फ्क् जनवरी को - अन्य मुस्लिम व्यतियों को बरी कर दिया था। उस मामले में भी न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप में यह कहा था कि आरोपियों के विरुद्ध पुलिस कोई भी पुता सबूत पेश नहीं कर सकी। शरजील इमाम सहित क्क् छात्रों को बरी किए जाने के बाद इस संबंध में टिप्पणी करते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा प्रसिद्ध वकील पी. चिदबरम ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि पुलिस तथा सरकारों द्वारा कानूनों का प्रतिदिन होता दुरुपयोग रोकने के लिए कदम उठाये जाने चाहिएं। उन्होंने कहा है कि ऐसा आपराधिक न्यायिक ढांचा जो सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही किसी को कैद करके रखने की इजाज़त देता है, संविधान का अपमान है। शरजील इमाम सहित क्क् छात्रों के उपरोत मामले में बरी होने से यह बात स्पष्ट हो गई है कि दिसबर, ख्क्- में नागरिकता संशोधन कानून तथा नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने संबंधी केन्द्र सरकार के फैसलों के विरुद्ध छात्रों तथा अन्य लोगों ने जो आन्दोलन किया था, उसे सती से कुचलने के उद्देश्य से ही पुलिस ने बहुत-से छात्रों तथा शहरी स्वतंत्रता हेतु कार्य करने वाले अन्य कार्यकर्ताओं को झूठे मामले में फंसाया था, इसके अलावा कई केन्द्रीय मंत्रियों तथा भाजपा नेताओं द्वारा भी इन आन्दोलनकारियों पर देश के विरुद्ध साज़िश रचने तथा देश-द्रोह करने आदि के गभीर आरोप लगाए गए थे, ताकि उन्हें बदनाम करके आन्दोलन से पीछे हटने के लिए विवश किया जा सके। शासकों के आदेश पर ही पुलिस ने आन्दोलनकारियों के विरुद्ध मामले दर्ज किए थे। यही बस नहीं इनमें बहुत-से आन्दोलनकारियों पर ख्ख् में दिल्ली में हुई हिंसा को आधार बना कर भी मामले दर्ज किए गए थे। इस तरह दिल्ली तथा देश के कई अन्य भागों में प्रतिभावान छात्र पिछले फ् वर्षों से जेलों में कैद रहने के लिए विवश हुए हैं। इस संबंध में हमारा स्पष्ट विचार है कि भाजपा की केन्द्र सरकार को तथा उसके आदेशों का पालन कर रहीं देश की सुरक्षा एजैंसियों को नागरिकता संशोधन कानून ख्क्- तथा दिल्ली में ख्ख् में हुई हिंसा के सन्दर्भ में अपनी भूमिका को पुनः जांचना चाहिए योंकि उन्होंने उस दौरान जो दमनकारी रवैया अपनाया था उससे अल्पसंयक मुस्लिम समुदाय में बेग़ानगी की भावना बढ़ी है तथा संविधान की धारा क्- के अनुसार लोगों को विचार व्यत करने तथा शांतिपूर्ण विरोध करने की जो आज़ादी मिली हुई है, वह भी खतरे में पड़ी द्रिखाई दे रही है।