पंजाब कला परिषद् के आंगन में रंधावा कला उत्सव

पंजाब आट्र्स कौंसिल द्वारा कला भवन चंडीगढ़ में वार्षिक एम.एस. रंधावा कला उत्सव के पहले दिन पंजाब की आठ प्रसिद्ध शसियतों को गौरव पंजाब पुरस्कारों से समानित किया गया। गीतकारी में बड़े योगदान देने पर बाबू सिंह मान, साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए ओम प्रकाश गासो, नावलकार के रूप में मनमोहन बावा, चित्रकारी में उपलधि के लिए सिद्धार्थ, लोक गायकी के लिए पूरन चंद वडाली, चित्रकला के लिए अनुपम सूद, लोक कला वाली शन्नो खुराना तथा नाटककार स्वराजबीर के नाम शामिल हैं। ख् से म् फरवरी तक चले इस उत्सव की सभी शाम नाटककारी, गायिकी, लोक नाचों व कवि दरबारों को समर्पित रहीं। पहले दिन आरएसडी कालेज के विद्यार्थी ने हीर वारिस का पारपरिक गायन पेश किया और फिल्म निर्माता हरजीत सिंह द्वारा निर्मित नंद लाल नूरपुरी के जीवन पर आधारित फिल्म दिखाई गई। दूसरे दिन बाज़ीगरों की बाज़ी कला की पेशकारी उपरांत कवि दरबार में सुखविन्दर अमृत, गुरमिन्दर सिद्धू, कुमार जगदेव, बूटा सिंह चौहान, तरसेम, जगदीप, जश्नप्रीत, लिली स्वर्ण, दिलप्रीत चहिल, रणधीर दिड़बा, जगदीप जवाहरका ने अपनी-आपनी शायरी पेश की। तीसरे दिन दिन खुशी मोहमद तथा साधु खान घनोर वालों की पार्टी ने श्रोताओं को नकलों से निहाल किया। यह जोड़ी म् पीढ़ियों से इस कला को समर्पित है। साधु खान के साथी कालकारों ने एक स्तरीय कामेडी भी पेश की। इसके साथ ही डा. निवेदिता सिंह ने सुफीयाना कलाम और शबद गायन की कई शैलियां पेश कीं। उत्सव की अंतिम शाम भांडों एवं ढाडियों ने भी खूब समां बांधा और गुरचरण चन्नी का नुकड़ नाटक भी पेश किया। इसके साथ ही भीम सिंह लुबाना ग्रामाफोन के पुराने तवों की पेशकारी द्वारा अजीब रंग जामाया। उत्सव का शिखर स्वराजबीर का लिखा नाटक 'आदि अंत दी साखी' था जिसका निर्देशन लोकप्रिय निर्देशक केवल धालीवाल ने किया। इस उत्सव में साहित्यिक सैमीनार भी हुए जिनमें पंजाबी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचकों ने कहानी, नावल, नाटक, वार्तक तथा कविता बारे विस्तार से बातें कीं। जो.बी. सेखों ने पंजाबी उपन्यास की वर्तमान स्थिति बारे बताया। पंजाब की वर्तमान नाटक कला बारे केवल धालीवाल ने चर्चा की और कहानी कला के विभिन्न पक्षों पर बलदेव धारीवाल ने प्रकाश डाला। पंजाबी वार्तक बारे डा. राजिन्दरपाल बराड़ ने अपना विस्ताथपूर्वक भाषण दिया।  उत्सव के भिन्न-भिन्न सत्रों की अध्यक्षता परीषद् के अध्यक्ष सुरजीत पातर तथा उपाध्यक्ष डा. योगराज, नौजवान चिन्तक अमरजीत ग्रेवाल तथा बुज़ुर्ग कला प्रेमी भाई अशोक सिंह बागड़िया ने की। मंच संचालन की ज़िमेदारी परीषद् के महासचिव लखविन्दर जौहल तथा मीडिया सलाहकार निंदर घुगियानवी ने निभाई। प्रीतम रुपाल ने संगीत नाटक अकादमी का सचिव होने के नाते कई पेशकारियां दीं। पंजाबी साहित्य सभा से 'धुप्प दी महफिल' पंजाबी साहित्य सभा द्वारा अपनी फ्ख्वीं 'धुप्प दी महफिल' पहले की भांति नवयुग फार्म, महरौली में खूबसूरत अंदाज़ में मनाई गई, जहां पांच प्रसिद्ध शसियतों डा. रघबीर सिंह, डा. राजिन्दर सिंह, डा. महिन्दर सिंह, डा. कर्णजीत सिंह तथा के.एल. गर्ग को उनकी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सेवाओं के लिए समानित किया गया। समान में शॉल, समान चिन्ह, समान-पत्र तथा भ्क्-भ्क् हज़ार रुपये नकद दिये जाते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाबी तथा पंजाबियत के लिए चिन्तित पूर्व राज्यपाल जनरल जे.जे. सिंह ने की। इस लेखक मेले में शामिल लगभग पौने तीन सौ श्रोताओं को सबोधित करते हुए जनरल जे.जे. सिंह ने पंजाबी भाषा की वर्तमान स्थिति एवं संस्कृति की चर्चा करते हुए कहा कि अपने बच्चों में पंजाबी संस्कृति का पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रचार-प्रसार करने के लिए ज़रूरी है कि पंजाबी संस्कृति एवं पंजाबियत का व्यापक स्तर पर देश-विदेश में प्रचार किया जाए। उन्होंने वर्तमान हालात के अनुभव के आधार पर कहा कि पंजाबियत को बचाए जाने की बहुत आवश्यकता है। पंजाबी भवन के डायरैटर बलबीर माधोपुरी ने सभा द्वारा चलाई जा रहीं ख् लाइब्रेरियों, ज़रूरतमंद लेखकों, विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता तथा भापा प्रीतम सिंह द्वारा पंजाबी लेखकों को तोहफे के रूप में दिए गये पंजाबी भवन की चर्चा की। इस अवसर पर जिन लेखकों की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया उनमें अजीत कौर, डा. रेणुका सिंह, डा. कर्णजीत सिंह, बचिंत कौर, बलबीर माधोपुरी, केसरा राम, सज्जाद ज़हीर, वाजा अहमद अबास, एस. बलवंत, अमरजीत चंदन तथा कर्ण सिंह बठिंडा शामिल हैं। यहां बड़ी संया में पहुंचे लेखकों तथा पंजाबी प्रेमियों, विशेष तौर पर देश-विदेश से पहुंचे प्रेमियों ने सुहावने मौसम में फूलों तथा हरियाली का आनंद लिया। क्-ब्फ् में स्थापित हुई इस सभा की देख-रेख आज पंजाबी लेखक एवं पत्रकार गुलज़ार सिंह संधू तथा प्रोफैसर एवं समाज सेविका डा. रेणुका सिंह कर रहे हैं। अंतिका [अमृतपाल सिंह शैदा] जदों पहली दफा बच्चा उचरदै तोतली बोली ना पुच्छो मां दी उस छिण की निराली शान हुंदी है जदों कामा उठा के शद अर्थां दे घरीं जांदे तां मां वल्लों मिली भिखिया ही सच्चा दान हुंदी है॥