कृषि से आय बढ़ाने हेतु योजनाबंदी की ज़रूरत

 

गत शताब्दी में सब्ज़ इन्कलाब के बाद कृषि में परिवर्तन आया है। इसकी रूप-रेखा बदल गई है। यह सिर्फ जीवन-यापन करने का साधन ही नहीं रहा, किसानों ने इसे व्यापारिक स्तर पर करने की ज़रूरत महसूस की। वह इससे अधिक आय लेने के इच्छुक हैं। कृषि से अधिक आय लेने के लिए समुचित योजनाबंदी की आवश्यकता है। कृषि का सही ढंग से प्रबंध करने तथा अनुसंधान संबंधी जानकारी प्राप्त करने के बाद किसान कम रकबे में भी अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। कृषि सामग्री, पानी, बढ़िया बीज तथा प्रभावशाली कीटनाशकों का प्रबंध करना तथा फसलों के उचित ढंग से बिक्री करना ही अधिक आय प्राप्त करने की तरीका है। कृषि का उचित प्रबंध करने के लिए कृषि तकनीकों तथा नये अनुसंधानों संबंधी पूरी जानकारी होनी चाहिए। उचित प्रबंध के लिए योजना का बनाना बहुत ज़रूरी है। योजना लम्बी अवधि के लिए अलग और कम अवधि के लिए अलग हो। कृषि प्रत्येक पक्ष से योजनाबंदी पर आधारित है। साधनों का उचित उपयोग, कृषि सामग्री की सूझबूझ से खरीद, काश्त संबंधी योजनाबंदी तथा सही मंडीकरण के द्वारा अधिक ब्रिकी करके आय की प्राप्ति की जा सकती है। फसल की बिक्री मंडीकरण संबंधी पूरे मुआतले व सोच-विचार के बाद करनी चाहिए।
कृषि को नई चुनौतियां दरपेश हैं। कीमियाई खादों तथा कीटनाशक दवाइयों का महंगा होना तथा मंडी में गैर-स्तरीय कृषि सामग्री की बिक्री होना, भूमिगत पानी का स्तर नीचे जाना तथा मौसम में बदलाव तथा बढ़ रही तपश, इन सभी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गेहूं व धान के फसली चक्र के अतिरिक्त अन्य दूसरे फसली चक्र अपनाने के लिए योजनाबंदी का बहुत महत्व है। फिर योजना बनाने के बाद इसमें समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार संशोधन करना पड़ता है और यह मूल्यांकन करना भी ज़रूरी हो जाता है कि साधनों का सही उपयोग किया गया है। देखा गया है कि आम किसानों में योजनाबंदी की रुचि बहुत कम है। प्राकृतिक स्रोतों का उचित इस्तेमाल, सही ढंग से उनकी संभाल, सही मात्रा में कीमियाई खादों एवं योग्य कीटनाशकों तथा अधिक उत्पानद देने वाली नई किस्मों के बीजों का उचित इस्तेमाल करके ही कृषि से होने वाले शुद्ध लाभ को बढ़ाया जा सकता है। योजनाबंदी में कौन-सी फसल की काश्त करनी है और क्या कोई सहायक धंधे भी अपनाने हैं, भिन्न-भिन्न फसलों की किस्मों के अधीन कितना-कितना रकबा लाना है और भूमि की किस्म के अनुसार कौन-से खेत में कौन-सी फसल की बिजाई करनी है, यह सब कुछ विचार करने की ज़रूरत है। यह भी देखना आवश्यक है कि प्रत्येक फसल के लिए कौन-सी किस्म के बीज, खाद तथा कौन-से नदीन नाशक एवं कीट नाशक दवाइयां, मशीनरी तथा अन्य औज़ार आवश्यक हैं। मंडीकरण संबंधी यह फैसला करना ज़रूरी है कि फसल के भंडारण में लाभ होगा या इसके तुरंत मंडीकरण में। जिन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं है, उन फसलों के दाम में हमेशा उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसलिए उसे पूरी तरह विचार करके ही मंडीकरण का फैसला लेना चाहिए। कीमियाई खादों, कीटनाशक दवाइयों तथा अन्य हर्बीसाइड्ज़ को कृषि विशेषज्ञों की सिफारिश के अनुसार डालने की आवश्यकता है। देखने में आया है कि किसान अब गेहूं में यूरिया के 5 थैलों तक डाले जा रहे हैं जबकि सिफारिश की मात्रा अढ़ाई थैले (110 किलो) प्रति एकड़ की है। 
सबसे ज़रूरी कृषि का हिसाब-किताब करना है। इसके बिना सही योजनाबंदी नहीं होगी। सही हिसाब-किताब रखने से किसानों को प्रत्येक पक्ष से पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है और किसान अधिक आय के दृष्टिगत कृषि को अपने लिए अधिक लाभदायक बना सकता है। हिसाब-किताब से ही पता चलता है कि कृषि में अतिरिक्त लागत से आय भी बढ़ी है या नहीं। 
किसानों को अपने घरेलू तथा कृषि की ज़रूरतों के दृष्टिगत ही ऋण लेने का फैसला करना चाहिए। कितना ऋण लेने की ज़रूरत है, कौन-सी एजेंसी से ऋण लिया जाए, कहां ब्याज कम है और परेशानी के बिना ऋण मिल सकता है, किसानों को सभी ऋण देने वाली एजेंसियों संबंधी पूरी जानकारी होनी चाहिए। अपने ज्ञान में वृद्धि करने तथा नये अनुसंधानों एवं फसलों संबंधी तथा नई विकसित किस्मों बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए किसान को किसान मेलों तथा किसान प्रशिक्षण शिविरों में जाकर वैज्ञानिकों से साथ तालमेल करना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों की सहायता एवं नेतृत्व से किसान अपनी कृषि की योजनाबंदी अधिक निपुणता से कर सकेंगे और अपनी आय में वृद्धि करना भी उनके लिए संभव होगा। किसान मेलों तथा प्रशिक्षण शिविरों में जाकर किसान एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श करके विभिन्न किसानों द्वारा किए गए तजुर्बों एवं आज़माइशों से भी लाभ उठा सकेंगे। 
सब्ज़ियों, फलों तथा अनाज फसलों की काश्त करने के लिए किसानों को योग्य संसाधनों से जानकारी लेने की आवश्यकता है। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के अतिरिक्त सब्ज़ियों तथा फलों की काश्त संबंधी बागबानी विभाग से सम्पर्क करना चाहिए और अनाज फसलों संबंधी जानकारी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों से प्राप्त की जा सकती है। धान, गेहूं की फसलों की बिजाई के संबंध में तो किसानों को आम जानकारी है परन्तु सब्ज़ियों की काश्त एक कम अवधि का तथा जोखिम वाला धंधा होने के कारण इसकी विशेषज्ञों तथा लम्बे समय से काश्त कर रहे सब्ज़ी उत्पादकों के साथ सम्पर्क बना कर ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। बाग लगाना एक लम्बी अवधि का कम जोखिम वाला धंधा है। बागों के लिए लम्बे समय की योजनाबंदी की जाती है, जो बागवानी के विशेषज्ञों के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। किसानों को अपनी फसलों की बिजाई संबंधी रबी-खरीफ के लिए समय पर योजनाबंदी करके ंसाधनों का पूरा लाभ उठाते हुए अपनी आय में वृद्धि करना समय की मांग है।
किसानों को अब जो गेहूं दिसम्बर में पिछोती बोई गई है, उसे पानी दे देना चाहिए। जब खेत में पीली कुंगी का हमला हो तो सिफारिश किये गए कीटनाशक का स्प्रे कर देना चाहिए। बरसीम की फसल को मौसम को देखते हुए 15 दिन के अन्तराल पर पानी देते रहना चाहिए। गन्ने की बिजाई कर देनी चाहिए। जिन खेतों में आलू की फसल के लिए एट्राजीन नदीन नाशक इस्तेमाल किया गया हो, वहां कद्दू जाति सब्ज़ियां नहीं लगानी चाहिएं। सदाबहार फलदार पौधे जैसे नींबू, आम, अमरूद तथा बेर आदि को भी आजकल लगाया जा सकता है। चाहे इन्हें जुलाई व सितम्बर के मध्य भी लगाया जा सकता है।