आज भी जारी हैं बाल विवाह

 

हाल ही में असम पुलिस ने बाल विवाह के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करते हुए 2000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। राज्य के पुलिस महानिदेशक के अनुसार केवल दो दिनों में पुलिस ने राज्य के विभिन्न ज़िलों में बाल विवाह के 4000 से अधिक मामले दर्ज किए हैं। समाचारों के अनुसार  बिश्वनाथ ज़िले में 137, धुबरी में 126, बक्सा में 120, बारपेटा में 114 व कोकराझार में 96 गिरफ्तारियां हुई हैं। असम पुलिस एवं प्रशासन द्वारा की गई यह कार्रवाई जहाँ एक ओर सराहनीय है, वहीं दूसरी ओर सभी को सजग करने वाली भी है। 
भारतीय जीवन में विवाह परिवार एवं समाज व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। विवाह के माध्यम से ही स्त्री- पुरुष नई संतान को जन्म देकर सृष्टि संचालन में सहभागिता करते हैं। घर परिवार के बड़े बुजुर्ग लड़के अथवा लड़की की परिपक्वता होने पर वैवाहिक संबंधों के कार्य में सहभागी बनते थे। वहां सामान्यत: विवाह की आयु ब्रह्मचर्य आश्रम की लगभग 25 वर्ष की अवस्था के बाद गृहस्थ आश्रम के रूप में वर्णित हुई है। इस समय तक लड़का और लड़की दोनों ही शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक एवं आजीविका हेतु परिपक्व व समर्थ हो जाते हैं। 
मुगल काल में आततायियों के भय और  कुदृष्टि से बचने के लिए समाज में बाल विवाह जैसी बुराई का जन्म हुआ। तदुपरांत यह आज तक कम या अधिक निरंतर बनी हुई है। ब्रिटिश काल में भी राजा राममोहन राय एवं केशवचंद्र सेन जैसे समाज सुधारकों ने बाल विवाह के विरुद्ध काफी काम किया। इसे सामाजिक बुराई मानते हुए ही उस समय स्पेशल मैरिज एक्ट बनाया गया जिसके अंतर्गत विवाह हेतु लड़कों की आयु 18 वर्ष और लड़कियों की आयु 14 वर्ष निर्धारित की गई। कालांतर में वर्ष 1978 में बाल विवाह कानून में संशोधन करते हुए लड़कों की आयु 21 वर्ष एवं लड़कियों की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई। तदुपरांत बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 भी अस्तित्व में है किंतु फिर भी कभी असम, कभी राजस्थान, कभी छत्तीसगढ़, कभी मध्यप्रदेश, कभी बंगाल तो कभी बिहार आदि प्रदेशों से बाल विवाह के समाचार सामने आते रहते हैं।  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 की रिपोर्ट के अनुसार असम में बाल विवाह का औसत 31 प्रतिशत है। यद्यपि भारत का संविधान स्त्री-पुरुष सभी को स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन का अधिकार देता है लेकिन बाल विवाह कहीं न कहीं बाल अधिकारों का हनन है। यह समस्या बालकों को उनके बचपन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा से तो वंचित करती ही है, देश की प्रगति में भी बाधक है। कम उम्र में गर्भावस्था शिशु व माता दोनों के स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा खतरा है। यह शिशु व माता की मृत्यु दर में वृद्धि का भी कारण बनता है। 
बाल विवाह के संबंध में कई बार माता-पिता एवं समाज की संकुचित सोच, शिक्षा का अभाव, आर्थिक स्थिति आदि कारण सामने आते हैं। विडंबना ही है कि आज वर्ष 2023 में भी जाति, संप्रदाय अथवा क्षेत्रीयता आदि का हवाला देकर इस कुप्रथा को जायज ठहराने का प्रयास किया जाता है। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपनी सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक में बालकों के समुचित स्वास्थ्य एवं शिक्षा की चर्चा करते हुए बाल विवाह के संबंध में लिखा है- जिस देश में ब्रह्मचर्य, विद्याग्रहण रहित बाल्यावस्था और अयोग्यों का विवाह होता है, वह देश दु:ख में डूब जाता है।  
विडंबना यह है कि आज भी बाल विवाह के कई मामलों में बालकों के कल्याण से दूर जाति और संप्रदायों की रूढ़ियाँ,बड़ों की सुविधा और खर्च ही दिखाई देते हैं। आखिर कब तक हम बालकों के जीवन से खिलवाड़ करते रहेंगे? क्या आज एक सभ्य और विकसित समाज के रूप में हमें बाल विवाह की समस्या पर गंभीरता से चिंतन नहीं करना चाहिए? आज हमें यह भी चिंतन करना होगा कि लड़का-लड़की दोनों ही समाज और राष्ट्र निर्माण के आधार हैं। आज कितने ही युवा लड़के-लड़कियां राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत को गौरवान्वित कर रहे हैं। क्या बाल विवाह के चक्र व्यूह में फंसे बालक उच्च शिखर पर पहुँच पाएंगे? 
आज बाल विवाह निषेध एवं लैंगिक समानता हेतु राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा ग्लोबल प्रोग्राम टू एक्सीलरेट एक्शन टू एंड चाइल्ड मैरिज एवं लैंगिक समानता तथा महिलाओं और लड़कियों का सशक्तिकरण जैसे अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं। बाल विवाह के मामलों में कुछ प्रतीकात्मक  सजा अथवा जुर्माने का प्रावधान है लेकिन यह कम है। यह आवश्यक है कि ऐसे मामलों को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखते हुए उसमें कठोर दंड का प्रावधान किया जाए, शिक्षा मीडिया आदि के जरिए जागरूकता अभियान चलाए जाए जिससे बाल विवाह जैसी बुराई का अंत हो सके। (युवराज)