मंडराता परमाणु खतरा


रूस ने यूक्रेन पर पिछले वर्ष फरवरी, 2022 को हमला किया था। उससे पूर्व सीमाओं पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर दिए गए थे। रूस आज भी विश्व की एक बड़ी शक्ति है।  ऐसे घटनाक्रम से अनुमान लगाया जा रहा था कि हमले के कुछ दिनों बाद ही रूस यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्ज़ा कर लेगा।
वर्ष 1991 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद रूस के अलावा दर्जन भर नये देश बन गये थे। इनमें यूक्रेन सबसे बड़ा देश था। वर्ष 1999 में पुतिन ने पहली बार सत्ता सम्भालने के बाद ही उसका अपने पड़ोसी बन चुके यूक्रेन के प्रति हमलावर रवैया रहा था। रूस की सीमाओं के साथ लगते यूक्रेन के ज्यादातर क्षेत्रों में रूसी बोलने वाले लोग रहते थे। उन क्षेत्रों में यूक्रेन से स्वतंत्र होने के लिए ब़गावत भी शुरू हो गई थी। पुतिन ने पहले रूस से समुद्र मार्ग द्वारा क्रीमिया क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे वह पहले से ही रूस का एक भाग मानते आये थे। बाद में रूस ने यूक्रेन की सीमाओं पर अपने सैनिक तैनात किये तथा आखिर में 24 फरवरी, 2022 को बाकायदा हमला कर दिया। इसके बाद रूस ने सीमांत प्रांतों दोनतस्क एवं लुहांसक पर कब्ज़ा कर लिया परन्तु यूक्रेन ने अपने राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में उसे इस प्रकार कड़ी टक्कर दी, जिसकी पुतिन को उम्मीद नहीं थी।
यूक्रेन के साथ रूस का इस कारण भी टकराव बना रहा था क्योंकि वह अपने पड़ोसी यूरोपीय देशों के अधिक नज़दीक हो रहा था। यहां तक कि ज़ेलेंस्की यूरोप के दो दर्जन से भी अधिक देशों पर आधारित सैनिक संगठन नाटो का सदस्य बनने का भी इच्छुक था। नाटो में जो भी देश शामिल होते हैं, उनकी सुरक्षा करना इस संगठन का प्राथमिक काम होता है। पुतिन को  यह बात किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं थी कि उसका पड़ोसी इस संगठन में शामिल हो, क्योंकि उसे डर था कि इससे नाटो के परमाणु हथियार उसके द्वार तक आ सकते थे। इस टकराव का एक बड़ा कारण भी ज़ेलेंस्की का नाटो के देशों की ओर झुकाव था। युद्ध के दौरान चाहे रूस ने यूक्रेन के बड़े भाग को नष्ट कर दिया है तथा सीमाओं के निकट उसके बड़े क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है, जिससे उसका क्रीमिया के साथ ज़मीनी संबंध जुड़ जाता था। दूसरी ओर ज़ेलेंस्की ने पूरी दृढ़ता दिखाते हुए यूक्रेनी सेना  का नेतृत्व किया तथा युद्ध में रूसी सेना का डट कर मुकाबला किया। चाहे लगातार किये गये हवाई हमलों में जहां आज यूक्रेन का बड़ा भाग मलबे के ढेर में बदल चुका है, वहीं इसी कारण करोड़ों ही यूक्रेनी अन्य देशों में शरणार्थी बने बैठे हैं परन्तु ज़ेलेंस्की ने हिम्मत नहीं छोड़ी, जिसे देखते हुए अमरीका तथा यूरोपीय देशों द्वारा जहां उसे लगातार आधुनिक हथियारों की खेप भेजी जा रही है, वहीं खाद्य एवं अन्य वस्तुओं के रूप में विश्व भर से उसे सहायता मिल रही है। चाहे पुतिन का हमलावर रुख अभी भी जारी है परन्तु वर्ष भर के सभी यत्नों के बावजूद वह राजधानी कीव पर कब्ज़ा करने में असमर्थ रहा है। इसी दौरान विश्व भर के तथा खास तौर पर यूरोपीय देशों के बड़े नेता यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को मिलते रहे हैं तथा उन्हें हथियारों के अलावा अन्य हर प्रकार की सहायता भी प्रदान करते रहे हैं। इसी क्रम में ही अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन के कीव के संक्षिप्त दौरे को भी देखा जा सकता है। इस दौरे के दौरान न सिर्फ अमरीकी राष्ट्रपति ने उन्हें और बड़ी आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है, अपितु ज़ेलेंस्की तथा यूक्रेन वासियों की बहादुरी की भी बड़ी प्रशंसा की है।
चाहे पुतिन को अपनी इच्छानुसार इस युद्ध में बड़ी सफलता तो नहीं मिली परन्तु उनके द्वारा आगामी दिनों में इसे खत्म करने की सम्भावना भी दिखाई नहीं देती। इससे जहां यूक्रेन का और विनाश होगा, वहीं विश्व भर में खाद्यान्न एवं तेल की किल्लत भी और अधिक हो जाएगी तथा इससे भी अहम बात यह कि उत्पन्न हुआ ऐसा तनाव कभी भी परमाणु युद्ध में बदल सकता है, जो विश्व के लिए एक भयावह सन्देश होगा। इस स्थिति में भारत तथा अन्य प्रभावशाली देशों को इस भयानक युद्ध को खत्म करवाने हेतु और भी बड़े यत्न करने चाहिएं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द