अरुणाचल को लेकर अमरीका ने भारत को खुल कर दिया समर्थन

भारत समेत एशिया के दूसरे देशों के प्रति चीन की आक्रामकता किसी से छिपी नहीं है। भारत की ही यदि बात की जाए तो उसकी आक्रामकता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश से लगती सीमा पर सामरिक महत्व के ठिकानों के अलावा अनाधिकृत रूप से गांव बसाने की तैयारी में जुटा हुआ है। चीन का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश जिसे वह दक्षिण तिबत का जंगनान क्षेत्र कहता है, से जुड़ी नीति में उसने कोई परिवर्तन नहीं किया है। चीन लबे समय से अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताता रहा है। लगभग दो वर्ष पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश की वास्तविक सीमा के करीब साढ़े चार किलोमीटर अंदर घुसकर सुबनसिरी जिले में एक गांव बसा दिया था। नवबर ख्ख् में उपग्रह से ली गई तस्वीरों के माध्यम से भारत सरकार को इस बात की जानकारी मिल पाई थी। हालांकि इस घटना के लगभग एक वर्ष बाद उपग्रह से ली गई तस्वीरों में यह गांव नहीं दिखाई दिया, परन्तु इस संबंध में भारत सरकार को अभी भी पूर्णतया सचेत रहना होगा। वस्तुतः सुबनसिरी जिले की सीमा लबे समय से विवाद का हिस्सा रही है। इसे लेकर सशस्त्र संघर्ष भी हो चुका है। इसके बावजूद यह पूरी घटना देश की खुफिया एजेंसियों के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है।
चीन तिबत के सीमांत क्षेत्रों में तेज़ी से रेल और सड़क मार्गों का निर्माण कर रहा है ताकि इस क्षेत्र में संरचनात्मक ढांचे को मज़बूत बनाया जा सके। भारतीय सीमा के अंदर चीन द्वारा गांव बसाना उसके विस्तारवादी षड्यंत्र का ही परिणाम है। चीन की इस तरह की मंशा को भांपकर ही अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद तापिर गावो ने संसद में कहा था कि राज्य में चीन की घुसपैठ निरन्तर बढ़ रही है। यह सभी घटनाएं बताती हैं कि चीन के प्रति भारत को और सजग रहने की आवश्यकता है।
भारत चीन की मंशा को अच्छे से जानता है। अतएव पिछले एक दशक में समूचे अरुणाचल प्रदेश में ढांचागत विकास को बहुत तेज़ किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीमा पर विकास कार्यों को निरन्तर प्रोत्साहित कर रहे हैं। भारत सरकार द्वारा सीमा पर किया जाने वाला  विकास कार्य चीन के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। दरअसल वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश से लगे सीमाई इलाकों में भारत सरकार म्फ् सड़कें बना रही है। इनमें से कई सड़कें और पुल आवागमन के लिए खोल भी दिए गए हैं। परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों की सीमा तक पहुंच आसान हो गई है। सनद रहे कि वर्ष क्-म्ख् में सड़कें नहीं होने के कारण ही भारतीय सेना को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। चीन की घुसपैठ रोकने के लिए तवांग समेत अरुणाचल प्रदेश के अन्य सीमा क्षेत्र में भारत ने अपने सैनिकों की संया और हथियारों के जखीरे बड़ा दिए हैं। इसलिए चीन जिस रास्ते से भी घुसने की कोशिश करता है, उसे भारतीय सेना तत्काल समुचित जवाब दे देती है।
चीन ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए एक ऑनलाइन मानचित्र सेवा शुरू की है, जो कमोबेश गूगल अर्थ की तरह ही काम करती है। इसमें उसने भारतीय भूभाग अरुणाचल और असाईचिन को अपने देश का हिस्सा बताया है और इसे चीनी भाषा मंदारिन में लिखा है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिबत का हिस्सा बताया है।
चीन की मंशा को अब अमरीका समेत सभी पश्चिमी देश जान चुके हैं। यही वजह है कि अमरीका अब भारत के समर्थन में खुलकर आ गया है। अमरीकी आसमान में चीन के कथित जासूसी गुबारे की घटना के बाद अमरीका की सोच में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला है।
अमरीका से चीन के खराब होते संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भारत के प्रति अमरीका की सोच तेजी से बदल रही है। अमरीकी संसद में अरुणाचल प्रदेश को भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने का एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया गया। यह बिल डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर जैफ मर्कले और रिपलिकन पार्टी के नेता बिल हैगर्टी ने मिलकर पेश किया है। इंडिया काकस के सह-अध्यक्ष एवं सीनेटर जान कार्निंन ने इस प्रस्ताव को संयुत रूप से तैयार किया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि अमरीका अरुणाचल प्रदेश को एक विवादित क्षेत्र के रूप में नहीं, बल्कि भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देता है। प्रस्ताव में चीन द्वारा भारतीय सीमा क्षेत्र में सैन्य बल के इस्तेमाल, भारतीय क्षेत्रों में अनाधिकृत गावों का निर्माण, अरुणाचल के शहरों एवं क्षेत्रों का मंदारिन भाषा में अपने देश के मानचित्र में प्रकाशन करने और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की घोर निंदा की है। चीन अरुणाचल पर अपना दावा करने के साथ इसे दक्षिण तिबत कहता है, जो पूर्णतया गलत है।
अमरीका ने चीन और भारत के बीच मैकमोहन रेखा को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देने की पुष्टि भी की है। इसमें चीन द्वारा भूटान के क्षेत्रों में सीमा विस्तार समेत चीनी उकसावे की भी निंदा की गई है। इन सांसदों का कहना है कि चीन मुत और खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए खतरा पैदा कर रहा है। ऐसे में हमारे लिए अपने रणनीतिक सहयोगियों के साथ खड़ा होना आवश्यक है। अमरीका की यह सोच उसके आकाश में कुछ दिनों पहले मार गिराए गए चीन के कथित जासूसी गुबारे के बाद बदली है।  बिना भारत के सहयोग के बिना चीन पर दबाव बनाना संभव नहीं है। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में भारत की मदद से ही ऐसे खतरों से निपटा जा सकता है।