प्रांतीय चुनाव परिणामों का सन्देश

उार-पूर्व के तीन प्रदेशों नागालैंड, त्रिपुरा तथा मेघालय में चुनाव परिणाम, मतदान के बाद भिन्न-भिन्न एजेंसियों द्वारा लगाये जा रहे अनुमानों के आस-पास ही रहे हैं। इन छोटे प्रदेशों के विधानसभा क्षेत्रों  में मतदाताओं की संया ख्भ् हज़ार से ब् हज़ार तक ही है। ये तीनों ही प्रदेश देश के छोटे  प्रांतों में गिने जाते हैं परन्तु इनके चुनाव परिणाम आगामी वर्ष देश में हो रहे आम चुनावों के लिए एक सन्देश की भांति ज़रूर हैं। चाहे इन्हें देश के निकट भविष्य की राजनीति का अस तो नहीं कहा जा सकता, योंकि देश बड़ा होने के कारण तथा हर प्रांत की अपनी बनी राजनीतिक पहचान के कारण उार-पूर्व के इन प्रदेशों तथा देश के दक्षिण प्रदेशों की राजनीतिक स्थिति तथा सोच में बड़ा अन्तर ज़रूर देखा जा सकता है।
त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी की जीत की उमीद की जा रही थी। मुयमंत्री डा. मानिक साहा को  चाहे दस महीने पहले ही प्रदेश का प्रशासन सौंपा गया था परन्तु उन्होंने जहां अपनी पार्टी की पिछली सरकार के नकारात्मक प्रभावों को काफी सीमा तक कम किया, वहीं अपनी स्वच्छ छवि से पार्टी की जीत में भी अहम भूमिका निभाई। नागालैंड में भी भारतीय जनता पार्टी की जीत आगामी समय में उसके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होगी। मेघालय में चाहे किसी पार्टी को बहुमत तो नहीं मिला परन्तु वहां कोनार्ड संगमा के नेतृत्व वाली नैशनल पीपल्स पार्टी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसकी ओर से भाजपा तथा अन्य छोटे दलों को लेकर सरकार बनाए जाने की सभावना है।
इन प्रदेशों में किसी समय कांग्रेस तथा वामपंथी पार्टी की तूती बोलती थी। त्रिपुरा में वर्ष ख्क्त्त् के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने वामपंथी पार्टी पर जीत दर्ज करके सरकार बनाई थी। उसे मौजूदा चुनावों में भी फिर सफलता मिली है परन्तु इस बार उसे पिछली ब्फ् सीटों के मुकाबले फ्फ् सीटें ही मिली हैं। त्रिपुरा में एक नई उभरी कबायलियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी को क्फ् सीटें मिली हैं। सी.पी.एम., जिसकी ख्क्त्त् में मानिक के नेतृत्व में सरकार थी, पिछले चुनावों में क्म् सीटों पर सिमट गई थी। इस बार कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ने पर भी दोनों पार्टियों को क्ब् सीटें ही मिली हैं। निःसन्देह इन चुनावों में यहां बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले में दर्जनों ही प्रांतीय पार्टियों का उभार बना देखा जाता रहा है। इस बार उन्हें मिले समर्थन से यह अवश्य प्रतीत होता है कि आगामी समय में भी क्षेत्रीय पार्टियों के राजनीतिक प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकेगा। इन तीनों प्रदेशों में वामपंथी पार्टी तथा कांग्रेस को मिली नमोशीजनक पराजय से आगामी समय में जहां इन्हें पूरी सतर्कता से अपनी नीतियों के नवीकरण की ज़रूरत होगी, वहीं राष्ट्रीय राजनीति में भी ये परिणाम इन पार्टियों के लिए एक गभीर सन्देश हैं।
हम समझते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को मिले बड़े समर्थन के बाद उसकी ज़िमेदारी में वृद्धि हुई है। उससे यह और उमीद रखी जानी चाहिए कि आगामी समय में जहां वह देश की समरसता को बनाये रखने के लिए यत्नशील होगी, वहीं साझेदारी की एक भावना पैदा करके देश के विकास में भी अपना अच्छा योगदान डालने में सहायक होगी।
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द