भारत-आस्ट्रेलिया संबंधों का बढ़ता दायरा

आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ की चार दिवसीय भारत यात्रा के दौरान सम्पन्न हुई गतिविधियों के दृष्टिगत नि:सन्देह रूप से कहा जा सकता है कि इससे दो मित्र देशों के बीच अतीत के मैत्री संबंध और मज़बूत हुए हैं। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच एक समझौते के तहत आयोजित हुए पहले द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने हेतु भारत आए हैं। यह समझौता विगत वर्ष ही सम्पन्न हुआ था। यह भी इस दौरे का एक अहम पक्ष है कि इसका आयोजन नई दिल्ली में सम्पन्न हुए क्वाड सम्मेलन और उससे भी पूर्व नई दिल्ली में ही आयोजित हुए जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन के दृष्टिगत उपजी नवीनतम स्थितियों  के दौरान हुआ है। नि:सन्देह ये दोनों सम्मेलन भारतीय प्रशांत क्षेत्र और एशियाई क्षेत्र के देशों के लिए बेहद अहम घटनाओं जैसे रहे। यह भी कि इन दोनों समागमों ने वैश्विक और खास तौर पर हिन्द महासागर के धरातल पर भारत की छवि और उसकी महत्ता को उजागर किया है। आस्ट्रेलिया क्वाड का भी एक अहम सदस्य राष्ट्र है। ऐसी स्थिति में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ का भारत आना और फिर यहां क्रिकेट कूटनीति के ज़रिये भारत के साथ अपने बढ़ते संबंधों का संकेत देना एक बहुत बड़ा संदेश बनता है।
एंथनी अल्बनीज़ ने पिछले ही वर्ष अपने देश की सत्ता सम्भाली थी, और यह भी कि वर्ष 2017 के बाद से अल्बनीज़ पहले आस्ट्रेलियाई शिखर नेता के रूप में नई दिल्ली आए हैं। क्रिकेट कूटनीति के अन्तर्गत उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अहमदाबाद में चौथे क्रिकेट टैस्ट मैच को निकट से देखा और उनके साथ एक छोटे वाहन में खड़े होकर मैदान का चक्कर भी लगाया। वहीं उन्होंने होली के रंगोत्सव में भाग लेकर अपनी सांस्कृतिक एवं खेल भावना वाली सूझ-बूझ का भी परिचय दिया।  नि:सन्देह इससे दोनों देशों के बीच मज़बूत होते राजनयिक संबंधों के साथ-साथ जन-साधारण के धरातल पर सहयोग बढ़ाये जाने की ललक भी दिखाई दी। इसका प्रमाण इस पहले शिखर सम्मेलन के दौरान खेलों और सांस्कृतिक क्षेत्र में समझौते सम्पन्न होने से भी मिल जाता है। आस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों की संख्या सात लाख से अधिक है, और कि वहां के विश्वविद्यालयों में  90 हज़ार से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच वार्षिक रूप से 27.5 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार भी होता है। इस सबके दृष्टिगत दोनों देशों में सांस्कृतिक और खेलों के धरातल पर संबंधों का महत्त्व और बढ़ जाता है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों की मज़बूती के अवसर भी बढ़ जाते हैं। शिक्षा के धरातल पर दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे की डिग्रियों को मान्यता देना भारतीय विद्यार्थियों के लिए बड़ा अहम फैसला माना जाएगा।
 कट्टरपंथी घटनाओं और वर्ग-भेदी हिंसा को रोकने हेतु दोनों देशों के बीच सहमति बनना भी एक बड़ी महत्त्वपूर्ण कवायद सिद्ध हो सकती है। विगत कुछ समय से कथित कट्टरपंथी तत्वों द्वारा आस्ट्रेलिया के विभिन्न हिस्सों में हिन्दू मंदिरों पर हुए हमलों की घटनाओं ने एक वर्ग विशेष में चिन्ता और रोष की भावना उपजाई थी, किन्तु एंथनी अल्बनीज़ द्वारा ऐसी कार्रवाइयों को दृढ़ता से रोकने के आश्वासन ने बड़े सुखद माहौल का सृजन किया है। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के स्तर पर ऐसे नाज़ुक मुद्दे पर बातचीत होना अपने आप में आशावाद को भी जगाता है। इसके साथ ही दोनों नेताओं के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर सहमति बनना भी भारतीय पक्ष को मान्यता मिलने का आधार समझा जा सकता है। भारत चिरकाल से वैश्विक धरातल पर आतंकवाद का विरोध और इस म़कसद हेतु विश्व जनमत तैयार करते आ रहा है। सबसे बड़ी बात दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग को और मज़बूत किये जाने के धरातल पर हुई है। विगत कुछ समय से चीन ने एक नियोजित म़कसद के तहत समुद्री क्षेत्रों खास तौर पर दक्षिण चीन सागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ाया है। इससे भारत और जापान जैसे देशों की नौसैनिक और नौवहन सीमाओं पर आंच आने का ़खतरा भी उपजता है। ऐसी स्थिति में आस्ट्रेलिया के साथ समुद्री क्षेत्र की सुदृढ़ता हेतु समझौता होना भारतीय रणनीति और हितों के लिए उपयुक्त हो सकता है।
दोनों देशों के बीच इस उच्चस्तरीय सम्मेलन के वार्षिक आयोजन की सहमति हालांकि विगत वर्ष ही हो गई थी, किन्तु दोनों शीर्ष नेताओं की आपसी बातचीत में एक बार फिर इसकी पुष्टि होना एक शुभ संकेत जैसा है। दोनों नेताओं द्वारा अपने-अपने तौर पर आर्थिक सहयोग बढ़ाने हेतु सहमत होना भी खास तौर पर भारत के लिए अच्छा फैसला हो सकता है। एंथनी अल्बनीज़ द्वारा दक्षिणी विश्व धरा पर भारत को सफल नेतृत्व-प्रदाता कहना नि:सन्देह भारत की बढ़ती महत्ता की पुष्टि के लिए काफी है। उन्होंने वैश्विक तौर पर पर्यावरणीय सहयोग हेतु भी भारतीय पक्ष को अहम करार दिया। उन्होंने यहां तक भी कहा कि भारत के बिना इस क्षेत्र में पर्यावरणीय सहयोग की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हम समझते हैं कि आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री का चार दिवसीय भारत दौरा न केवल देश के निजी हित-साधन हेतु स्वीकार्य है, अपितु यह वैश्विक धरातल और खास तौर पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में राजनीतिक और सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी बड़ा अहम सिद्ध होगा। इसके अच्छे परिणाम काफी दूरगामी होने की सम्भावना बनती है। इससे दोनों देशों के बीच बहुविध तौर पर संबंधों की मजबूती का पक्ष दृष्टिगोचर होता है। नि:सन्देह इस दौरे के बाद दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार और सैनिक साजो-सामान के लिए सहयोग बढ़ने की सम्भावना उपजेगी। भारतीय दृष्टिकोण से नि:सन्देह आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की भारत यात्रा लाभकारी फलदायक सिद्ध होगी।