क्या ममता बनर्जी पर बन सकती है विपक्षी एकता की सहमति ?

बिहार की राजधानी पटना में आयोजित सीपीआई एमएल के राष्ट्रीय कनवेन्शन में नितीश कुमार ने विपक्षी एकता पर अपनी बात रखते हुए कांग्रेस को सक्रि य होने का संदेश दिया। इतना ही नहीं, नितीश कुमार ने कहा कि वे प्रधानमंत्री की रेस में नहीं हैं और विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा,  इसका निर्णय सभी संगठित दल मिलकर कर लेंगे। नितीश कुमार इतने पर नहीं रुके। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अगर आगे आए तो भाजपा 100 सीटों पर सिमट जाएगी । 
भाजपा का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बनाने के बाद नितीश कुमार न सिर्फ भाजपा पर हमलावर रहे हैं अपितु लगातार विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद में लगे हैं। नितीश कुमार के ऐसे आह्वान से विपक्षी एकता को लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच सरगर्मी फिर से बढ़ गयी है और बयानबाजी का सिलसिला जारी है हालांकि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने नितीश कुमार के इस बयान का जो उत्तर दिया, राजनीति के गलियारे में उसकी चर्चा सर्वाधिक है। सलमान खुर्शीद ने नितीश कुमार के इस संदेश को सीधे स्वीकार करने के बजाय  यह कहा कि प्यार में कभी - कभी ऐसा हो जाता है कि पहले कौन ‘आई लव यू’ बोलेगा उस बात पर बात अटक जाती है। 
अगर कांग्रेस नेता  सलमान खुर्शीद के इस बयान पर गौर किया जाए तो बहुत स्पष्ट है कि वे कहना चाहते हैं कि गठबंधन तो संभव है लेकिन बात समर्पण की है अर्थात जो भी आगे आकर गठबंधन की कवायद करेगा, उस पर सामने वाले की शर्त को स्वीकार करने का दबाव अवश्य होगा । अगर सीधे शब्दों में कहें तो कह सकते है कि कांग्रेस इस शर्त पर गठबंधन के लिए हां कर सकती है अगर विपक्षी दल राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लें लेकिन विपक्षी दलों की एकता की राह इतनी सरल नहीं है क्योंकि विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री के तौर पर उम्मीदवारी की दावेदारी की महत्वाकांक्षा अकेले राहुल गांधी की नहीं है। आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर ही राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की थी। एक दृष्टि से देखें तो भारत जोड़ो यात्रा धीरे-धीरे सुसुत होती कांग्रेस में जान डालने की ही कोशिश थी तथा भारत के कोने- कोने में पहुंचकर अपनी खोई जमीन को पुन: पाने की कोशिश है । 
कांगेस  वर्षों तक केन्द्र की सत्ता में रही है एवं विपक्षी दलों के बीच इकलौती ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसकी साख कमोबेश देश के हर राज्य में है। ऐसे में कांग्रेस खासकर लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन तो करना चाहेगी लेकिन उसकी कोशिश यही रहेगी कि कांग्रेस को बड़े भाई का दर्जा मिले।  इतना ही नहीं, राहुल गांधी ने जिस तरह से भारत जोड़ो यात्र में व्यकिगत रूप से भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, उसका कुछ लाभ तो कांग्रेस को जरूर आगामी लोकसभा के चुनाव में मिलेगा क्योंकि अगर हम सी वोटर और इंडिया टुडे के ताजा सर्वे पर नज़र डाले तो भले भाजपा आज भी केन्द्र में बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है लेकिन उसकी सीटों में कमी आई है। अगस्त 2022 के सर्वे में एनडीए को 307 सीटें मिलती दिख रही थी लेकिन अभी 298 सीटें मिलती दिख रही हैं। अगस्त 2022 में कांग्रेस के साथ यूपीए को 125 सीटें मिलती दिख रही थी लेकिन ताजा सर्वे में 156 सीटें मिलती दिख रही हैं। 
इसका सीधा मतलब है आमजन पर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव कुछ न कुछ तो ज़रूर पड़ा है। कांग्रेस को निश्चित रूप से यह उम्मीद होगी कि आने वाले समय में सीटों की संख्या में इजाफा होगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस लोकसभा चुनाव विपक्षी एकता के नाम राहुल गांधी के बजाय किसी दूसरे नेता के नेतृत्व में लड़े, ऐसा प्रतीत होता है कि यह संभव नहीं है लेकिन सवाल उठता है कि अगर सभी विपक्षी दल कांग्रेस को दरकिनार कर एका की कोशिश करें तो वह कितना सफल होगा और किसके नाम पर सहमति बन सकती है, यह भी एक बड़ा प्रश्न है ।
नितीश कुमार के बयान के बाद अगर विपक्षी दलों के बीच किसी दल का सबसे अधिक मुखरित जवाब आया है तो वह है पश्चिम बंगाल में काबिज ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस। विधानसभा चुनाव के पहले से ही ममता बनर्जी विपक्षी एकता की कवायद में लगी थी  लेकिन विगत विधान सभा चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीति की महत्वाकांक्षा को बेहद स्पष्ट रूप से जग जाहिर किया है। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी विपक्षी दलों के बड़े नेताओं से लगातार मिलकर इस कोशिश में लगी रही हैं  कि विपक्ष एकजुट हो लेकिन साथ ही साथ ममता बनर्जी लगातार कांग्रेस पर हमलावर रही हैं। कई बार ममता बनर्जी के बयानों से इसकी स्पष्ट झलक मिलती है कि वो किसी भी स्थिति में कांगेस गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव में नहीं जाएंगी। कहीं न कहीं ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खड़ा करने की कोशिश कर रहीं हैं और विपक्षी दलों के द्वारा प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार्यता में कांग्रेस को ही अपने राह का रोड़ा मानती हैं। 
शायद यही कारण है कि नितीश कुमार के बयान के बाद तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं सांसद अभिषेक बनर्जी ने सीधे कांग्रेस के आदर्शों पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। अभिषेक बनर्जी ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस ने बंगाल में वाम मोर्चा के साथ चुनाव लड़ा लेकिन केरल के उसके खिलाफ लड़ी। असम में एआईडीएफ से समझौता किया और महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ सरकार में रही। अगर तृणमूल कांग्रेस चाहती तो त्रिपुरा में कांग्रेस और वाम मोर्चा के साथ समझौता करके चुनाव लड़ सकती थी लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। अभिषेक बनर्जी इतने पर नहीं रुके। उन्होंने आगे बढ़कर कहा कि किसी मसले पर ट्वीट करना एक बात है लेकिन लड़ाई लड़ना और बात है। देश में ममता बनर्जी इकलौती महिला मंत्री हैं जो भाजपा से लडाई लड़ रहीं हैं। ऐसे में यह समझा जाना चाहिए कि तृणमूल कांग्रेस ही असली कांग्रेस है और ममता बनर्जी एकमात्र चेहरा है, विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री की उम्मीद बन सकती हैं। 
इतना ही नहीं, बिहार में जेडीयू-राजद गठबंधन की बुनियादी कोशिश भी यही है कि तेजस्वी यादव को आने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाए और नितीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में सक्रि य हो।  ऐसे में  राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों का एकजुट होकर एनडीए का विकल्प बनना तो मुश्किल लगता है लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ न सिर्फ लड़ाई लड़ी हैं अपितु राजनीति के हर  दांव पेंच में भाजपा को पटकनी देने में सफल हुई हैं। इतना ही नहीं, तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव के बाद हुए सभी उपचुनाव में भी भाजपा को पराजित करने में सफल रही है। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस द्वारा भाजपा को बुरी तरह पराजित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 
ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव के बाद अगर विपक्ष एकजुट होता है, तब भी सिर्फ एक ही स्थिति में ममता बनर्जी को मौका मिल सकता है कि तृणमूल कांग्रेस लोकसभा की तकरीबन सभी सीटें जीतने में सफल हो और उसकी सीटों की संख्या बाकी क्षेत्रीय दलों की सीटों की संख्या से अधिक हो। तभी सभी विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही सत्ता से बाहर रखने हेतु ममता बनर्जी को अपने नेता के तौर पर स्वीकार कर सकते हैं  और कांग्रेस को एनडीए को सत्ता से बाहर करने के दबाव में ममता बनर्जी का समर्थन करना पड़े। सिर्फ इस स्थिति में ममता बनर्जी के चेहरे पर सहमति बन सकती।। (युवराज)