दु:खद घटनाक्रम


रामनवमी के अवसर पर देश के कई भागों में हिंसा की घटनाओं का घटित होना तथा समुदायों द्वारा आपस में बुरी तरह उलझना तथा दंगे होना निश्चित रूप में देश के माथे पर कलंक की तरह है। ऐसा कलंक जिसे धोया जाना कठिन है। देश के चेहरे को बदरंग करने के लिए लगातार घटित होती ऐसी घटनाएं ही काफी हैं। इस बार ऐसे कुछ का प्रसार अधिक स्थानों पर देखा गया है। जिन प्रदेशों में ऐसा कुछ बहुत बुरा तथा घिनौना घटित हुआ है, उनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात तथा झारखंड आदि प्रदेश शामिल हैं। इस बात से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह देश में ऩफरत फैल रही है। किस तरह लगातार घृणा का माहौल विस्तृत होता जा रहा है। किस तरह भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय ऐसे घटनाक्रम के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे हैं।
हम ऐसे माहौल के लिए देश में चल रही राजनीति तथा राजनीतिज्ञों को बड़ी सीमा तक दोषी मानते हैं। ऐसे घटनाक्रम के लिए उन प्रदेशों की सरकारें भी बड़ी सीमा तक ज़िम्मेदार हैं, जिनमें ऐसी गड़बड़ होती रहती है। संबंधित प्रशासनों की लापरवाही, सुरक्षा बलों को कोई स्पष्ट तथा कड़ा संदेश न दिया जाना तथा किए जाने वाले ऐसे धार्मिक तथा अन्य आयोजनों से पहले उनके लिए पूरी तैयारी न करना तथा बिगड़ी स्थिति को सम्भालने के लिए शीघ्र कार्रवाई न किया जाना आदि ऐसी बाते हैं जो हिंसक घटनाक्रमों को जन्म देती हैं। यदि बंगाल के कुछ भागों में ऐसा कुछ घटित होता है तथा लगातार कई दिनों तक चलता रहता है तो इसे सरकार की असफलता ही कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की सहायता से प्रदेश में दंगे भड़काने का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ विधानसभा में विपक्षी दल के नेता शुभेन्दु अधिकारी ने जनहित याचिका दायर करके हिंसा के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) से जांच करवाने की मांग की है तथा आरोप लगाया है कि हिंसा के दौरान बम भी फैंके गये थे। उन्होंने क्षेत्र में सुरक्षा के लिए केन्द्रीय बलों को तैनात करने की अपील की है। कई दिनों से लगातार हुल्लड़बाज़ों द्वारा कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने तथा वाहनों को आग लगाए जाने ने स्थिति को और भी खराब किया है।
इस संबंध में पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल की कड़ी टिप्पणियों को दृष्टिगत लाया जाना भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा है कि आपराधिक तत्वों को कानून अपने हाथों में लेने की इजाज़त नहीं दी जाएगी तथा यह भी कि भीड़ तन्त्र को जड़ से उखाड़ने के लिए केन्द्र तथा प्रदेश सरकार मिल कर काम करेंगी तथा कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा शरारती तत्वों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए केन्द्र तथा प्रदेश सरकार, राजनीतिक पार्टियां, मीडिया तथा सभी लोग एकजुट हो कर भीड़ तन्त्र को जड़ से उखाड़ने के लिए हाथ मिलाएंगे। इसमें सन्देह नहीं कि यदि राज्यपाल आनंद बोस की ऐसी टिप्पणियों पर क्रियान्वयन किया जाये तो हालात के सुधरने की उम्मीद की जा सकती है। कम से कम साम्प्रदायिक दंगों के लिए पुलिस की सख्ती तथा कानून पर अमल घटना की मैरिट के आधार पर ही होना चाहिए। यदि प्रशासन ईमानदारी दिखाए तो धार्मिक यात्राओं के ऐसे सड़क मार्ग तय किए जा सकते हैं, जिनमें किसी भी तरह की गड़बड़ की सम्भावना न हो। शरारती तत्वों की पहचान करके उन्हें कड़ी सज़ाएं देना ज़रूरी है। यह बात भी सुनिश्चित है कि यदि लगातार घटित होती ऐसी साम्प्रदायिक घटनाओं को हर पक्ष से पूरी सतर्कता के साथ न रोका गया तो इस देश में  सामाजिक भाईचारे के खंडित होने का ़खतरा बन जाएगा।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द